सू की ने प्रण किया है कि सेना के बनाए हुए विधान में अपने ऊपर लगे प्रतिबंध के बावजूद वह देश के शासन-प्रशासन में प्रमुख भूमिका निभाएंगी क्योंकि काफी संघर्ष के बाद नवंबर में हुए चुनावों में उनकी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) को लाखों लोगों ने वोट देकर भारी जनादेश दिया था।
कई महीनों तक चली अटकलों के बाद तिन क्या के नाम का चयन किया गया है। 69 वर्ष के क्या सू की के साथ स्कूल जाया करते थे और अब उनके धर्मार्थ फाउंडेशन को चलाने में मदद करते हैं। इस बारे में सू की पार्टी के सांसदों को भी अंधेरे में रखा गया क्योंकि पार्टी देश में राजनीतिक बदलाव को लेकर थोड़ा भयभीत है जिसके पीछे वजह देश में सेना का अभी भी मजबूत होना है।
गुरुवार को सू की की पार्टी की वेबसाइट पर जारी उनके बयान में उन्होंने कहा, ‘यह एनएलडी का समर्थन करने वाले मतदाताओं की इच्छाओं एवं उम्मीदों को लागू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।’
पार्टी के निचले सदन के सांसद क्हिन सान लाइंग ने क्या के नाम का प्रस्ताव रखा। देश में बहुत से लोगों का मानना है कि लोकतंत्र की समर्थक 70 वर्षीय सू की अभी भी राष्ट्रपति पद की दावेदार रहेंगी। लेकिन कई महीनों तक मजबूत सेना के साथ उनके रास्ते से कानूनी अड़चनों को हटाने के लिए चली बातचीत विफल रही।
उन पर एक कानूनी उपबंध के द्वारा प्रतिबंध लगा है जो उन लोगों को अयोग्य घोषित करता है जिनके कोई विदेशी नजदीकी रिश्तेदार होते हैं। सू की के दिवंगत पति और दो बेटे ब्रितानी हैं।