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पाकिस्तान में फांसी राज

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के अलग-अलग जेलों में आज तड़के दी गई चार फांसियों के साथ पिछले तीन महीने में फांसी पर लटकाए जाने वालों की संख्या 52 हो चुकी है और अगले एक हफ्ते में 40 और लोगों को फांसी दी जानी है। कल और परसों देश भर के विभिन्न जेलों में क्रमशः 9 और 12 सज़ायाफ्ता कैदियों को फांसी दी गई थी। इस तरह ताबड़तोड़ दी जा रही फांसियों के मद्देनज़र वहां के मीडिया, सामाजिक कार्यकताओं और आम लोगों के बीच कई तरह के सवाल उठने लगे है।
पाकिस्तान में फांसी राज

न्याय प्रणाली कि  खामियों और मानवाधिकार के सवालों के साथ-साथ लोग शंका व्यक्त कर रहे हैं कि सरकार का यह कदम आतंकवाद के मुद्दे पर अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिश तो नहीं।

सरकार के इस कदम को "अंधा न्याय" बताते हुए पाकिस्तान के अंग्रेजी दैनिक डेली टाइम्स ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि ठीक ढंग से हुए सुनवाई और पूरी न्यायिक प्रक्रिया के पालन किये बगैर इस तरह धड़ाधड़ फांसी देने के ग़लत निर्णय पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए। अख़बार के अनुसार परसों जिन 12 लोगों को फांसी दी गई थी उनमें से एक गिरफ़्तारी के वक़्त मात्र 16 साल का था.

पाकिस्तान में 2008 से मौत कि सज़ा पर कानूनन रोक लगी हुई थी, लेकिन पिछले साल 16 दिसंबर को पेशावर के आर्मी स्कूल पर हुए आतंकी हमले के बाद आतंक के मामलों में मिली फांसी कि सज़ा पर रोक को हटा ली गई थी और इस महीने की 10 मार्च से फांसी की सज़ा पर लगी रोक को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया,  यानि अब उन सभी मामलों में मौत की सज़ा हो सकती है जिनमें मुजरिम की दया याचिका राष्ट्रपति ने ख़ारिज़ कर दी हो। ग़ौरतलब है हाल के दिनों में फांसी पर लटकाए ज़्यादातर लोग आतंक या चरमपंथ के मामले में अभियुक्त नहीं थे।

एक और  अख़बार, द नेशन, ने अपने सम्पादकीय में सरकार के इस कदम को "अन्याय का एक और रूप" बताते हुए लिखा है, "अच्छी तरह विचार-विमर्श के बाद एक नीतिगत निर्णय लेने के बजाय सैन्य अदालतों की स्थापना और मौत की सजा पर लगी रोक हटाना एक भयानक त्रासदी के सामने घुटने टेक देने जैसा है।"

सरकार के इस कदम पर नाराज़गी दिखाते हुए इस्लामाबाद में रहने वाली फ़ातिमा भुट्टो ट्विटर पर लिखती हैं मौत की सज़ा पर ख़ुश हो रहे लोगों को शायद पता नहीं कि "पाकिस्तान की अदालतों में भ्रष्टाचार और राजनैतिक हस्तक्षेप" किस हद तक व्याप्त है।

इस बीच पाकिस्तान में शफकत हुसैन नामक एक युवक को बचाने की क़वायद भी तेज़ हो गई है जिसे ग्यारह साल पहले एक 7 साल की बच्ची के साथ बलात्कार के आरोप में आज फांसी दी जानी थी, लेकिन इसे तीन दिनों के लिए टाल दिया गया है।

 सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शनों के साथ-साथ सोशल मीडिया में भी शफकत को बचने की और उस पर 'जुवेनाइल जस्टिस प्रणाली' के तहत मुक़दमा चलाने मांग तेज़ हो रही है क्योंकि 2004 में जब उसे मौत की सजा सुनायी गई थी, वह महज 14 साल का था। 

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