चीन के सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में कहा गया, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में प्रवेश पाने में असफल रहने पर भारतीय लोगों के लिए इसे स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है। ग्लोबल टाइम्स में यह लेख ‘चीन, भारत को सहयोग के लिए पुराने रुख को त्याग देना चाहिए’ शीर्षक से छपा है। लेख में कहा गया है, कई भारतीय मीडिया संस्थान केवल चीन पर दोष मढ़ रहे हैं। वे आरोप लगा रहे हैं कि इस विरोध के पीछे चीन के भारत विरोधी एवं पाकिस्तान समर्थक उद्देश्य हैं। कुछ लोग चीन एवं चीनी उत्पादों के खिलाफ विरोध करने के लिए सड़कों पर भी उतर आए और कुछ समीक्षकों ने कहा कि इस घटना से भारत एवं चीन के संबंध ठंडे पड़ जाएंगे।
समाचार पत्र ने कहा कि भारत 1960 के दशक में चीन के साथ हुए युद्ध के साये में अब भी अटका हुआ प्रतीत होता है और कई लोग अब भी उसी पुराने भूराजनीतिक दृष्टिकोण को पकड़े हुए हैं कि चीन भारत को विकास करते नहीं देखना चाहता। लेख में कहा गया, नई दिल्ली ने बीजिंग को संभवत: गलत समझ लिया है, जिसके कारण इसके रणनीतिक निर्णयों में बड़ा अंतर पैदा हो सकता है। दरअसल चीन अब भारत को केवल एक राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में ही नहीं देखता, बल्कि वह उससे अधिक उसे एक आर्थिक परिप्रेक्ष्य में देखता है। एनएसजी में प्रवेश के लिए पिछले महीने भारत के जोर लगाने के मद्देनजर ग्लोबल टाइम्स ने कई लेख छापे हैं जिनमें दावा किया गया है कि चीन का रुख नैतिक आधार पर सही है और पश्चिम ने भारत को शह दी। ग्लोबल टाइम्स सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के प्रकाशनों का हिस्सा है।
भारत के प्रवेश को रोकने के चीन के रख को सही ठहराते हुए आज के लेख में भी वही तर्क दिया गया कि एनएसजी में शामिल होने के लिए भारत का एनपीटी पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य है और नए सदस्यों के प्रवेश के लिए सर्वसम्मति आवश्यक है। लेख में कहा गया, भारत को चीन के रुख को निष्पक्ष होकर देखने की आवश्यकता है। भारत अपवाद के रूप में सदस्य तभी बन सकता है जब उसे एनएसजी के सभी 48 सदस्यों की सहमति मिल जाए। लेकिन चीन के अलावा भी कई देशों को इस मामले में आपत्तियां हैं। लेख में कहा गया, यदि भारत चीन की बात को गलत तरीके से पेश करने और उसे बदनाम करने के बजाए अंतरराष्ट्रीय विश्वास जीतने के तरीके खोजने के प्रयास करे, तो बेहतर होगा। लेख में राजनीतिक शास्त्री झोंग योंगनियान के हवाले से कहा गया कि चीन और अमेरिका के संबंधों के बाद जिन संबंधों का महत्व है वह चीन और भारत के राजनयिक संबंध हैं।