71 वर्षीय मुशर्रफ उस समय देश के राष्ट्रपति थे लेकिन जनता के दबाव के बाद 2008 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। बाद में उन पर 2010 में भुट्टो हत्याकांड में मामला दर्ज किया गया।
डॉन की खबर के मुताबिक मुशर्रफ के खिलाफ मामला चार गवाहों- पूर्व गृह सचिव सैयद कमाल शाह, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ के पूर्व महानिदेशक सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर जावेद इकबाल चीमा, पूर्व आईबी महानिदेशक सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर ऐजाज शाह और अमेरिकी लॉबीस्ट मार्क सीगेल के बयान पर आधारित था। मुशर्रफ के कार्यकाल में प्रमुख पदों पर रहे तीन पाकिस्तानी गवाहों में से दो पहले ही मुशर्रफ के खिलाफ अपने बयानों से पलट चुके हैं, वहीं अभियोजन पक्ष ने ऐजाज शाह को गवाह के कठघरे में नहीं बुलाने का फैसला किया क्योंकि उसके बयान की जरूरत नहीं है। कमाल शाह और चीमा ने इस साल जनवरी में आतंकवाद निरोधक अदालत में अपने बयान दर्ज कराए थे।
मुशर्रफ के वकील इलियास सिद्दीकी ने दावा किया कि शाह और चीमा दोनों ने अपने बयानों में एक भी शब्द नहीं बोला जो मुशर्रफ को मामले में शामिल बताता हो। संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) को केवल एक गवाह को पेश करना है जो अमेरिकी लॉबीस्ट सीगेल है। जिसने संयुक्त जांच दल (जेआईटी) रिपोर्ट के अनुसार ऐजाज शाह को हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया था। सीगेल ने मुशर्रफ और ब्रिगेडियर शाह समेत उनके शीर्ष सहयोगियों पर भुट्टो को धमकाने का भी आरोप लगाया था। जेआईटी रिपोर्ट में दावा किया गया कि सीगेल ने अपने बयान में आरोप लगाया कि भुट्टो ने 26 अक्तूबर, 2007 को उन्हें एक ईमेल भेजा था जिसमें उन्होंने असुरक्षा की भावना प्रकट की थी। भुट्टो ने लिखा था कि अगर उन्हें कुछ हो जाता है तो उसके लिए वह मुशर्रफ को तथा उन लोगों को जिम्मेदार ठहराती हैं जिनके नाम 16 अक्तूबर, 2007 को मुर्शरफ को भेजे उनके पत्र में थे।