देश में कानूनों का इस्लामीकरण करने में सरकार की मदद के लिए 1973 के संविधान के हिस्से के तौर पर गठित काउंसिल ऑफ इस्लामिक आईडियोलॉजी (सीआईआई) की कल दो दिनों की बैठक समाप्त हुई। संगठन ने एक बयान में कहा कि सह शिक्षा ना तो समाज की जरूरत है और ना ही इस्लामिक सिद्धांतों के अनुकूल है।
बयान में कहा गया, सरकार को निश्चित तौर पर पूर्व राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक द्वारा घोषित दो महिला विश्वविद्यालयों की (इस्लामाबाद में) स्थापना करनी चाहिए। पूर्व सैन्य शासक जनरल जिया उल हक ने कई इस्लामी कानून बनाए थे और माना जाता है कि उन कानूनों ने देश में सांप्रदायिकता एवं चरमपंथ को बढ़ाया। सीआईआई ने अपनी सिफारिश दोहराते हुए कहा कि महिलाओं को अपने चेहरे, हाथ और पांव ढंकने की जरूरत नहीं है। उसने सुप्रीम कोर्ट के हाल के एक फैसले का स्वागत किया जिसमें सरकार को उर्दू को आधिकारिक भाषा के तौर पर लागू करने का आदेश दिया गया था।
संगठन ने कहा, उर्दू को राष्ट्रीय एवं आधिकारिक भाषा मानते हुए संघीय सरकार को प्रांतीय सरकारों को अपनी भाषाओं को आधिकारिक भाषा के तौर पर अपनाने की मंजूरी देनी चाहिए। सीआईआई ने साथ ही सिफारिश दी कि प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्रों को सवालों के उर्दू में जवाब देने की मंजूरी मिलनी चाहिए।