प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को ब्रिक्स सम्मेलन से दुनिया को बड़ा संदेश दिया और कहा कि वैश्विक दक्षिण अक्सर "दोहरे मानदंडों" का शिकार रहा है और विश्व अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदान देने वाले राष्ट्रों को निर्णय लेने वाली मेज पर स्थान नहीं मिल पाता। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सहित प्रमुख निकायों में तत्काल सुधार की मांग की।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अपने संबोधन में मोदी ने कहा कि 20वीं सदी में गठित वैश्विक संस्थाओं में मानवता के दो-तिहाई हिस्से को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ के बिना ये संस्थान ऐसे मोबाइल फोन की तरह प्रतीत होंगे जिसमें सिम कार्ड तो है लेकिन नेटवर्क नहीं है।
वार्षिक ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की शुरुआत समूह के सदस्य देशों के नेताओं की समूह फोटो के साथ हुई, जिसके बाद ब्राजील के राष्ट्रपति लुईस इनासियो लूला दा सिल्वा ने संबोधन दिया।
मोदी ने कहा, "वैश्विक दक्षिण अक्सर दोहरे मानदंडों का शिकार रहा है। चाहे वह विकास का मामला हो, संसाधनों के वितरण का मामला हो या सुरक्षा संबंधी मुद्दे हों।"
प्रथम पूर्ण अधिवेशन में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि वैश्विक दक्षिण को जलवायु वित्त, सतत विकास और प्रौद्योगिकी पहुंच जैसे मुद्दों पर प्रायः नाममात्र के इशारों के अलावा कुछ नहीं मिला है।
उन्होंने कहा, "आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदान देने वाले देशों को निर्णय लेने वाली मेज पर जगह नहीं दी गई है। यह सिर्फ प्रतिनिधित्व का सवाल नहीं है, बल्कि विश्वसनीयता और प्रभावशीलता का भी सवाल है।"
मोदी ने कहा कि आज विश्व को एक नई बहुध्रुवीय और समावेशी व्यवस्था की जरूरत है और इसकी शुरुआत वैश्विक संस्थाओं में व्यापक सुधारों से होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, "सुधार केवल प्रतीकात्मक नहीं होने चाहिए, बल्कि उनका वास्तविक प्रभाव भी दिखाई देना चाहिए। शासन संरचना, मताधिकार और नेतृत्व पदों में बदलाव होना चाहिए।"
प्रधानमंत्री ने तर्क दिया कि नीति-निर्माण में वैश्विक दक्षिण के देशों की चुनौतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि ब्रिक्स का विस्तार इस बात का प्रमाण है कि यह एक ऐसा संगठन है जो समय के अनुसार खुद को बदलने की क्षमता रखता है।
उन्होंने कहा, "अब हमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन और बहुपक्षीय विकास बैंकों जैसी संस्थाओं में सुधार के लिए भी यही इच्छाशक्ति दिखानी होगी।" उन्होंने कहा, "कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में, जहां हर सप्ताह तकनीक अपडेट होती है, यह स्वीकार्य नहीं है कि कोई वैश्विक संस्था 80 वर्षों में एक बार भी अपडेट न हो।"
मोदी ने कहा, "21वीं सदी के सॉफ्टवेयर को 20वीं सदी के टाइपराइटर से नहीं चलाया जा सकता। भारत ने हमेशा अपने हितों से ऊपर उठकर मानवता के हित में काम करना अपना कर्तव्य माना है। हम ब्रिक्स देशों के साथ मिलकर सभी विषयों पर रचनात्मक योगदान देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।"