आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच फिर एक बार फिर युद्ध शुरू हो गया है। दोनों देशों ने एक दूसरे के ऊपर पहले गोलीबारी का आरोप लगाया है। समाचार एजेंसी रायटर के मुताबिक दोनों देशों के लगभग 100 सैनिकों की मौत हुई है।आर्मेनिया ने कहा कि उसके कम से कम 49 सैनिक मारे गए है, वहीं अजरबैजान ने कहा कि उनके 50 सैनिक मारे गए है।
अर्मेनिया के रक्षा मंत्रालय ने अज़रबैजान के सैनिकों पर रात भर "जर्मुक" के अर्मेनियाई रिसॉर्ट की दिशा में लड़ाकू ड्रोन लॉन्च करने और सेवन झील के पास जर्मुक और वेरिन शोरझा गांव की दिशा से तोपखाने और मोर्टार से गोलाबारी करने का आरोप लगाया। बदले में, अज़रबैजानी सेना ने आरोप लगाया कि अर्मेनियाई सेना ने अलगाववादी नार्गोनो-कराबाख क्षेत्रों में कलबजार और लाचिन जिलों में गोलाबारी की।
दोनों देश नागोर्नो-कराबाख पर दशकों से संघर्ष करते आ रहे है, जो अज़रबैजान का हिस्सा है, लेकिन 1994 में एक अलगाववादी युद्ध समाप्त होने के बाद से आर्मेनिया द्वारा समर्थित जातीय अर्मेनियाई सैनिकों के नियंत्रण में है। अज़रबैजान ने 2020 में छह सप्ताह तक चले युद्ध के बाद नागोर्नो-कराबाख के व्यापक क्षेत्रों को पुनः प्राप्त किया, उस युद्ध में 6,600 से अधिक लोग मारे गए। रूस के दखल के बाद दोनो देश के बीच शांति समझौते पर समाप्त हुआ।
मॉस्को ने इस समझौते के तहत शांति सैनिकों के रूप में काम करने के लिए इस क्षेत्र में लगभग 2,000 सैनिकों को तैनात किया है। रूसी विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को दोनों पक्षों से "आगे बढ़ने से परहेज करने और संयम दिखाने" का आग्रह किया।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी शांति की अपील की। अर्मेनियाई सरकार ने कहा कि वह आधिकारिक तौर पर देशों के बीच दोस्ती संधि के तहत रूस से सहायता मांगेगी और संयुक्त राष्ट्र और सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन, पूर्व-सोवियत राष्ट्रों के मास्को-प्रभुत्व वाले सुरक्षा गठबंधन से भी अपील करेगी।
क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने आर्मेनिया के अनुरोध पर टिप्पणी करने से परहेज किया, लेकिन पत्रकारों के साथ एक कॉन्फ्रेंस कॉल के दौरान कहा कि पुतिन, तनाव को कम करने में मदद करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे है।
क्या है विवाद के कारण?
दोनों ही देश आजादी के समय से ही एक दूसरे के कट्टर दुश्मन रहे हैं। आर्मीनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। नागोर्नो काराबाख 4400 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ इलाका है। यह इलाका अंतरराष्ट्रीय रूप से अजरबैजान का हिस्सा है लेकिन उस पर आर्मेनिया के जातीय गुटों का कब्जा है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया। उनके इस चाल को अजरबैजान ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच कुछ समय के अंतराल पर अक्सर संघर्ष होते रहते हैं।