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मध्य पूर्व में बदलती अमेरिकी नीति

क्या ईरान के मुद्दे पर अमेरिका और इस्राइल के दशकों पुराने संबंध फीके पड़ जाएंगे? क्या ईरान इन दोनों चिर मैत्री में बंधे देशों के बीच दरार डाल देगा? अगर इ्स्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के वर्तमान अमेरिका दौरे की घटनाओं को देखें तो आभास कुछ-कुछ ऐसा ही होता है।
मध्य पूर्व में बदलती अमेरिकी नीति

ऐसा शायद पहले कभी नहीं हुआ कि इस्राइल का कोई शीर्ष नेता अमेरिका के दौरे पर हो और अमेरिकी राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति ने उससे शिष्टाचार भेंट करने की जहमत भी नहीं उठाई। लेकिन इस बार ऐसा हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने तो नेतन्याहू से मुलाकात नहीं ही की उप राष्ट्रपति जोए बिडेन भी इसी समय मध्य अमेरिका के दौरे पर निकल लिए इसलिए उनसे भी नेतन्याहू की मुलाकात नहीं हो पाई। नेतन्याहू ने इसकी खीज अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करते हुए निकाली जहां ओबामा के विरोरिधों रिपब्लिकन सांसदों का बहुमत है।

कांग्रेस को संबोधित करते हुए इस्राइली नेता ने कहा, ईरान के साथ आप लोग जो समझौता कर रहे हैँ वह बहुत बुरा है, बहुत ही बुरा जो इ्स्राइल के अस्तित्व को खतरे में डाल देगा। इस समझौते के बाद ईरान को परमाणु बम बनाने से नहीं रोका जा सकेगा। अपने भावनात्मक भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामनई ट्वीट के जरिये कह चुके हैं कि इस्राइल को नेस्तनाबूद कर दिया जाना चाहिए।

नेतन्याहू ने कहा कि इस समझौते के दो मुख्य तत्व हैं जिसमें पहले के तहत ईरान के पास उसका विशाल परमाणु ढांचा बरकरार रहेगा और दूसरे उसपर लगाए गए प्रतिबंध एक दशक की समयावधि में समाप्त कर दिए जाएंगे। उन्होंने सवाल उठाया कि इस समझौते से ईरान को बम बनाने से कैसे रोका जा सकता है? जब नेतन्याहू भाषण दे रहे थे तब बार-बार रिपब्लिकन सदस्य अपनी सीटों से खड़े होकर और मेजें थपथपाकर उनका समर्थन कर रहे थे जबकि अल्पमत में बैठे डेमोक्रेट सदस्य इससे नाखुश दिखे क्योंकि उन्हें लग रहा था कि नेतन्याहू ईरान और अमेरिका के बीच चल रही बातचीत को पटरी से उतारना चाहते हैं। इस समझौते के प्रति नेतन्याहू की नाखुशी समझी जा सकती है क्योंकि उन्हें दो हफ्ते बाद ही अपने दोबारा निर्वाचन के लिए जनता के बीच जाना है और वह सख्त छवि के साथ ही ऐसा कर सकते हैं।

दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने नेतन्याहू के इस भाषण के बाद फिर से कहा है कि उनका देश ईरान को बम बनाने की इजाजत नहीं देगा। उन्होंने यह भी कहा कि नेतन्याहू इस समझौते पर सवाल उठा रहे हैं मगर इससे बेहतर कोई प्रस्ताव उनके पास नहीं है। गौरतलब है कि ईरान पर लंबे समय से आर्थिक प्रतिबंध लगे हुए हैं मगर ईरान इससे अविचलित रहा है इसलिए अमेरिका अब बातचीत के दरवाजे पर लौटना चाहता है। ओबामा ने कहा कि जबतक ईरान को यह नहीं लगेगा कि उसे प्रतिबंधों में कुछ ढील मिल सकती है तब तक वह अपने वर्तमान रास्ते से हटने के बारे में नहीं सोचेगा। इसी वजह से अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी स्विटजरलैंड में अपने ईरानी समकक्ष के साथ बातचीत में जुटे हैं। जब नेतन्याहू अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित कर रहे थे तब भी केरी 3 घंटे से वार्ता में व्यस्त थे। अमेरिकी पक्ष ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अब तक ईरान के साथ कोई समझौता हुआ नहीं है।

इस वार्ता का नतीजा चाहे जो हो इतना तय है कि ओबामा प्रशासन के साथ इस्राइल के संबंधों में कड़वाहट आ गई है जो कि दशकों में पहली बार हुआ है। मध्य पूर्व में अमेरिका इस्राइल को अपना सबसे बड़ा सहयोगी करार देता रहा है। वैसे भी अमेरिका में यहूदी लॉबी सबसे मजबूत मानी जाती है जो कि हर अमेरिकी प्रशासन को इस्राइल के पक्ष में झुकने के लिए मजबूर कर देती है। इस बार ओबामा अब तक इस लॉबी के दबाव में नहीं आए हैं मगर भविष्य में क्या होगा कहा नहीं जा सकता। ईरान के साथ होने वाले किसी भी समझौते को अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी दिलाना भी ओबामा के लिए मुश्किल होगा क्योंकि वहां पहले से ही उनके विरोधी रिपब्लिकनों का कब्जा है।

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