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अनूठे बिरजू महाराज की सुरभीनी यादें

कथक के शिखर पुरूष पंडित बिरजू महाराज की अनूठी कला से देश देशांतर में उनकी कीर्ति की पताका खूब फहरी।...
अनूठे बिरजू महाराज की सुरभीनी यादें

कथक के शिखर पुरूष पंडित बिरजू महाराज की अनूठी कला से देश देशांतर में उनकी कीर्ति की पताका खूब फहरी। उनके अवदान की कलात्मकता और सृजनशीलता से नृत्य में एक अलग धारा का बना शुरू हुआ। कथक में नृत्य संरचना का द्वार भी महाराज जी ने खोला और इस क्षेत्र में उन्होनें एक अपूर्व अध्याय जोड़ा। गुरू के रूप में भी महाराज जी का बड़ा नाम और प्रतिष्ठा रही है। उनके शिष्य - शिष्याओं में कई कुशल कलाकार बनकर उभरे जिन्होंने नृत्य के जरिए अपना और गुरू का नाम रोशन किया। तकरीबन दो साल पहले इस महान हस्ती का निधन हो जाने से कथक नृत्य में शून्यता आ गई। अब उनकी कला की विरासत को संभालने और जीवंत रखने में एक बीड़ा उनके ज्येष्ठ पुत्र पं. जय किशन महाराज और बहू रूबी मिश्रा ने उठाया है और नियोजित ढंग से पं. बिरजू महाराज पंरपरा को लोकप्रियता प्रदान करने में कथक परंपरा नृत्य का आयोजन कर रहे हैं।

हाल ही नई दिल्ली के कमानी सभागार में जय किशन महाराज रूबी ने अपने शिष्यों द्वारा महाराज को भावभीनी श्रृद्धांजली देने के लिए वार्षिक उत्सव का आयोजन किया। इस अवसर पर परंपरा का संगीत समृद्धि सम्मान बांसुरी वादन के प्रखर वादक पं. अजय प्रसन्नता को प्रदान किया। उसके उपरांत मंगला चरण के रूप में कार्यक्रम का आरंभ सरस्वती वंदना से हुआ। महाराज जी द्वारा राग बसंत में रचित वंदना को जय किशन रूबी के शिष्यों ने भक्ति भाव में डूब कर प्रस्तुत किया। अगली प्रस्तुति चतुरंग पर आधारित थी।

हिन्दुस्तानी संगीत में चतुरंग संगीत के प्रकार ध्रुपद, तिरवट, सरगम और तराना में निबद्ध है। यह प्रस्तुति कलात्मक सौन्दर्य में काव्य, संगीत के स्वर बोल, आदि की संरचना पर परवावज और तबला संगत में रंगभारती है इसे इन गुरूओं के शिष्यों ने बड़े चाव से शुद्ध चलन में पेश किया। अगली प्रस्तुति बहार वरन राग बसंत पर आधारित थी। इसमें बसंत के मौसम आने पर जो बहार आकर जनमानस के मन में उल्लास भर देती है। उसके मनोरम परिदृश्य को नृत्यांगनाओं ने नृत्य के जरिए दर्शाया इस समारोह में दरबार ऐ सलामी की प्रस्तुति खास थी। नवाबों खासकर अवध के दरबार में बादशाह और मौजूद रसिकों का अभिवादन करने में उन्हे सलाम करने का जो रिवाज था उसका सुन्दर रूप रूबी के नृत्य में उजागर हुआ। रूबी ने शिष्याओं समूह नृत्य के साथ खास लखनवी अन्दाज में पेश किया।

शायरी पर कथक और भाव को अभिव्यक्त करने में रूबी की शोखी भरी नजरों की चितवन बहुत आकर्षक थीं। परंपरा के छात्रों ने एक लघु कथा केा पेश करने में बुराई पर अच्छाई की जीत को अवधारणा को सजागता और खूबसूरती से पेश किया। कार्यक्रम के आखिर में नवाब वाजिद अली शाह के सरंक्षरा में लखनऊ घराने का उदय हुआ। और लखनवी अन्दाज में ठुमरिया रची गई। इस क्षेत्र में सबसे बड़ा योगदान पं. बिन्दादीन महाराज का था। उनमें गोपियों और कृष्णा के श्रृंगारिक रास की ठुमरी बहुत मुग्धकारी थी। उसकी मनोरम अलक ठुमरी मल्लिका में बिखरती नजर आई

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