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गठला – आत्माओं का स्थायी पता

मध्य भारत के भील आदिवासियों की संस्कृति में ऐसा माना जाता है कि मृत और जीवित आत्माएं एक ही साथ एक ही क्षेत्र में निवास करती हैं। मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान के इलाकों में पाई जाने वाली इस भील जाति से जुड़ी ऐसी ही कई अन्य परंपराओं और रीति-रिवाजों को विक्रम मोहन ने एक समकालीन नृत्य नाटिका में समेटा है। उन्होंने इसका नृत्य निर्देशन भी किया है।
गठला – आत्माओं का स्थायी पता

आफ्टर डेथ - द स्पिरिचुअल जर्नी नाम की इस नृत्य नाटिका की कहानी भील जाति के एक पुरूष के इर्द गिर्द घूमती है। एक दुर्घटना के बाद उसे बचाने के कई प्रयास असफल हो जाने के बाद उसकी मृत्यु हो जाती है और उसकी आत्मा पूरे गांव में प्रेत बनकर घूमने लगती है। उसकी आत्मा के साथ शांति और आराम से रहने को सुनिश्चित करने के लिए उसके परिजन और मित्रों को एक रीति-रिवाज का अवश्य पालन करना है।

 

नृत्य निर्देशक मोहन ने बताया,  भीलों का मानना है कि आत्माएं कभी भी वातावरण का त्याग नहीं करतीं। मृत्यु के बाद भी। यह हिंदू मान्यतों में मोक्ष के विचार के अनुरूप ही है जिसमें माना जाता है कि मृत व्यक्ति की आत्मा को आराम करने दिया जाए, वहीं भीलों का मानना है कि मृत व्यक्तियों की आत्मा को तब तक शांति नहीं मिलती जब तक उन्हें कोई स्थान रहने के लिए न दिया जाए।

 

नाटिका में भी मृत व्यक्ति की आत्मा उसकी मां के शरीर में प्रवेश कर जाती है और फिर उसे तांत्रिक के पास झाड़-फूंक के लिए ले जाया जाता है। जब आत्मा से पूछा जाता है कि वह क्या चाहता है तो वह रहने के लिए स्थान मांगता है और बाद में तांत्रिक उसे एक गठला रहने के लिए देता है।

 

यही गठला देने की 100 साल से भी ज्यादा पुरानी परंपरा को गठला प्रथा के तौर पर जाना जाता है जो इस नाटिका में दिखाई गई है। गठला लाल रंग का पत्थर होता है जिस पर घोड़े का चित्र अंकित होता है। माना जाता है कि गठला आत्माओं का निवास स्थान है।

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