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अब अशोक वाजपेयी ने लौटाया साहित्य अकादमी पुरस्कार

देश में लगातार बढ़ रही सांप्रदायिक घटनाओं के विरोध में प्रसिद्ध लेखिका नयनतारा सहगल के बाद हिंदी के जाने-माने साहित्‍यकार अशोक वाजपेयी ने भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की है। इससे पहले उदय प्रकाश भी कन्‍नड़ विद्वान एमएम कलबुर्गी की हत्‍या के विरोध में यह पुरस्‍कार लौटा चुके हैं।
अब अशोक वाजपेयी ने लौटाया साहित्य अकादमी पुरस्कार

दादरी के गांव में गोमांस खाने की अफवाह पर एक व्‍यक्ति को पीट-पीट कर मार डालने की घटना और बढ़ रही कट्टरता के विरोध में प्रसिद्ध साहित्‍यकार अशोक वाजपेयी ने भी साहित्‍य अकादमी सम्‍मान लौटाने की बात कही है। 

इससे पहले प्रसिद्ध लेखिका और जवाहरलाल नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल ने भी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर देश की सांस्कृतिक विविधता कायम न रख पाने का आरोप लगाते हुए अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था। नयनतारा सहगल को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार वर्ष 1986 में उनके अंग्रेज़ी उपन्यास 'रिच लाइक अस' के लिए दिया गया था। सहगल अपने राजनीतिक विचारों को बेबाक तरीके से व्यक्त करने के लिए जानी जाती हैं। 

वाजपेयी ने कहा कि अब समय आ गया है जब लेखकों को कट्टरता के खिलाफ़ एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए। उन्‍होंने सवाल उठाया कि ऐसे संवेदनशील मामले में पीएम नरेंद्र मोदी चुप क्‍यों हैं। पिछले एक साल में कट्टरता बढ़ी है, सरकार को भी अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। वाजपेयी ने कहा कि इतने मुखर होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी देश को ये सुनिश्चित क्यों नहीं करते हैं कि उनकी सरकार देश की बहुलतावादी संस्कृति को हर हाल में बनाए रखेगी। वहीं लेखिका नयनतारा सहगल ने भी एक वेबसाइट पर ‘अनमेकिंग ऑफ इंडिया’ शीर्षक से जारी एक बयान में दादरी कांड और इससे पहले एमएम कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पनसारे की हत्याओं का जिक्र करते हुए लिखा है कि जो बुद्धिजीवी अंधविश्वास और हिंदुत्व के विकृत रूप पर सवाल करते हैं, उन्हें या तो धमकाया जा रहा है या उनकी हत्या की जा रही है। आज लोगों का खान-पान और जीवनशैली अपने हिसाब से तय करने की कोशिशें की जा रही हैं। ऐसे खतरनाक समय में प्रधानमंत्री की चुप्पी इस बात की ओर इशारा करती है कि वे इन सब पर रोक लगाने में असमर्थ हैं।

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