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हाशिये के लोगों पर काम करने वाले सम्मानित

रमणिका फाउंडेसन का सम्मान समारोह हाशिए के शब्दों को रेखांकित करने और पूरी शक्ति के साथ उनके समर्थन में खड़े होने के अपने संकल्प की ओर बढ़या गया एक ठोस और सार्थक कदम है
हाशिये के लोगों पर काम करने वाले सम्मानित

रमणिका फाउंडेशन आदिवासियों, दलितों और स्त्रियों के अधिकारों के लिए किए जा रहे संघर्षों को स्वर देने वाला ऐसा मंच है जो इस दिशा में वर्षों से प्रयासरत है। आदिवासी, दलित और स्त्री विमर्श के साथ जनवादी लेखन तथा अनुवाद के क्षेत्र में काम करने वाले साधकों के लिए फाउंडेशन मंच प्रदान करता है। पिछले दिनों इस दिशा में काम करने वालों को सम्मानित किया गया। ये सम्मानहाशिए के शब्दों को रेखांकित करने और पूरी शक्ति के साथ उनके समर्थन में खड़े होने के अपने संकल्प की ओर बढ़या गया एक कदम था। ये सम्मान हिंदी के प्रख्यात कवि केदार नाथ सिंह के हाथों, वरिष्ठ पत्रकार- जनसत्ताके संपादक ओम थानवी की अध्यक्षता में हुए कार्यक्रम में प्रदान किए गए। सम्मान प्राप्त करने वाले लेखकों में महादेव टोप्पो, जोराम यालम नाबाम, अजय नावरिया, अनिता भारती, असगर वजाहत और जे.एल. रेड्डी हैं। सभी साधकों को सम्मान स्वरूप 21000 हजार रुपये की राशि, प्रतीक चिन्ह, शॉल और प्रशस्ति पत्र भेंट किए गए।

रमणिका फाउंडेशन की अध्यक्ष रमणिका गुप्ता के स्वागत भाषण तथा अखिल भारतीय आदिवासी साहित्यिक मंच के अध्यक्ष हरिराम मीणा के बीज वक्तव्य से शुरू हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, वरिष्ठ कवि केदार नाथ सिंह ने सम्मानित लेखकों को बधाई देते हुए कहा कि समर्पित भाव से वंचित समाज के लिए एक मिशन की तरह काम करना रमणिका गुप्ता की पहचान बन गई है। आज अपने हाथों इन समर्पित लेखकों को सम्मानित करते हुए वह गौरव का अनुभव कर रहे हैं। अपने अध्यक्षीय भाषण में ओम थानवी ने रमणिका फाउंडेशन द्वारा किए जा रहे कार्य को प्रेरणास्पद बताया। उन्होंने आदिवासियों से आहवान् किया कि वे अपनी भाषा संस्कृति और अस्मिता की रक्षा के लिए इमानदारी से प्रयास करें। रमणिका गुप्ता ने अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मान समारोह के उद्देश्य की विस्तृत गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए पुरस्कृत लेखकों की विशिष्टताओं से परिचित कराया। उन्होंने देशभर में आदिवासियों की दुर्दशा की ओर संकेत करते हुए कहा कि आखिर हम कब तक उनके साथ ऐसा सलूक करेंगे। हरिराम मीणा ने अपने बीज भाषण में रमणिका फाउंडेशन की सराहना करते हुए कहा कि यह एक ऐसा मंच है जिसने आदिवासी संस्कृति और साहित्य को सदैव आगे बढ़ाने और उसे पहचान दिलाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि आज हिंदी संसार में जो भी बड़ा आदिवासी नाम सुना जा रहा हैजैसे, निर्मला पुतुल, व्हारू सोनवणे, भुजंग मेश्राम, ग्रेस कुजूर आदि को यहीं से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। कार्यक्रम का संचालन युवा कथाकार विवेक मिश्र ने किया और धन्यवाद ज्ञापन अखिल भारतीय आदिवासी साहित्यिक मंच के महासचिव गंगा सहाय मीणा ने किया। सम्मानित लेखकों के प्रशस्ति पत्र अमृता बेरा, विपिन चौधरी, केदार प्रसाद मीणा एवं रॉकी ने पढ़े। बन्नाराम मीणा ने रमणिका फाउंडेशन का परिचय पत्र पढ़ा।

रमणिका फाउंडेशन द्वारा ये सम्मान प्रत्येक तीन वर्ष पर दिए जाते हैं। इस बार महादेव टोप्पो को उनकी कविताओं, कहानियों और लेखों में आदिवासी संस्कृति एवं राजनीतिक स्थिति को अत्यंत मजबूती से विश्लेषित करने के लिए आदिवासी विमर्श के अंतर्गत बिरसा मुंडासम्मान से, अरुणाचल प्रदेश में रहकर हिंदी में लिखने वाली जोराम यालम नाबाम को कथा साहित्य के माध्यम से अरूणाचल प्रदेश के आदिवासी समूहों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेबाकी से चित्रित करने के लिए, दलित लेखक अजय नावरिया को उनके लेखन में दलित लेखन के सच और चिंतन को विभिन्न विधाओं में सक्षम और रोचक शैली में उजागर करने के लिए आम्बेडकर सम्मानसे, दलित लेखिका अनिता भारती को उनके कथाकविता और पत्राकारिता में स्त्री-मुक्ति और स्त्री सशक्तिकरण को उभारने के लिए सावित्री बाई फुलेसम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा प्रसिद्ध कहानीकारनाटककार असगर वजाहत को साहित्य की विभिन्न विधाओं में सांप्रदायिक सद्भाव और जनवादी विमर्श को रेखांकित करने के लिए सफदर हाशमीसम्मान से तथा जे.एल. रेड्डी को तेलुगु से हिंदी और हिंदी से तेलुगु में अनुवाद कर भाषाओं में एक सेतु और संवाद कायम करने के लिए सम्मान दिया गया। 

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