समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की अध्यक्षता में कथाकार मैत्रयी पुष्पा, प्रताप सहगल तथा अखिलेश एवं प्रकाशन के संचालक श्री सत्यव्रत ने उपन्यास को लोकार्पित किया तथा इससे पहले विवेक मिश्र को सम्मानित करते हुए उत्तरीय, स्मृति चिन्ह और इक्यावन हजर रुपये की राशि भेंट की। विवेक मिश्र ने अपने वक्तव्य में बताया कि उनके इस उपन्यास के केंद्र में एक नाटक है जो प्रेम पर आधारित है। प्रेम का नाटक सफल होता है पर जीवन में प्रेम छीजता जाता है। उन्होंने कहा कि अच्छे समय में कलाएं हम में और बुरे समय में हम कलाओं में जीवित रहते हैं। उन्होंने जीवन के विमर्श को किसी भी विमर्श से बड़ा बताया।
समारोह में ‘हिंदी उपन्यास : नयेपन की अवधारणा’ विषय पर बोलते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा, ‘हर रचनाकार नया ही लिखता है लेकिन वास्तव में नयापन दृष्टि में होता है। एक ही यथार्थ को देखने की जाने कितनी प्रविधियां साहित्य में हैं पर मेरा इतना कहना है कि लेखन नया तो हो लेकिन अजूबा न लगे।’ मुख्य वक्ता मैत्रयी पुष्पा ने कहा कि हर लेखक की नयेपन की अपनी समझ और अवधारणा होती है। मैंने अपने लेखन में यह नयापन बिसरा दिए गए लोक से लिया है। कथाकार अखिलेश ने विवेक मिश्र को उनके उपन्यास के लिए बधाई देते हुए कहा कि वर्तमान परिदृश्य उपन्यास के क्षेत्र में उत्साहजनक है। भाषा, शिल्प और कथ्य की दृष्टि से कथा साहित्य में लगातार नए प्रयोग हो रहे हैं पर असली नयापण तो लेखक की दृष्टि, उसके विजन से तय होता है।
कथाकार प्रताप सहगल ने कहा कि रचना में नवाचार किसी फैशन के तहत नहीं बल्कि कथानक की जरूरत के अनुसार आना चाहिए। उन्होंने कहा कि विवेक मिश्र का यह उपन्यास न केवल अपने कहने के ढंग में नया है बल्कि उन्होंने इसके माध्यम से कला और जीवन के संदर्भ में कई नई बातें भी कही हैं। कार्यक्रम का संचालन व्यंग्यकार सुशील सिद्धार्थ ने किया। कार्यक्रम में कथाकार संजीव, नरेंद्र नागदेव, राजेश जैन, नरेंद्र मोहन, बलदेव वंशी, शेरजंग गर्ग, प्रेम तिवारी, बली सिंह, विजय किशोर मानव, ओम निश्छल, हरि सुमन बिष्ट, उपेन्द्र कुमार, अंजलि देशपांडे, अमृता बेरा और विवेकानंद सहित कई गणमान्य साहित्यकार एवं श्रोता उपस्थित थे।