Advertisement

प्रिंट मेकिंग आर्टिस्टों का कमाल

एक जमाना था जबकि देश में तीन चार तीन चार प्रिंट मेकर आर्टिस्ट होते थे लेकिन आज इनकी संख्या करीब 1000 हो गई...
प्रिंट मेकिंग आर्टिस्टों का कमाल

एक जमाना था जबकि देश में तीन चार तीन चार प्रिंट मेकर आर्टिस्ट होते थे लेकिन आज इनकी संख्या करीब 1000 हो गई है और इनमें करीब 100 सवा सौ महिला प्रिंट मेकर आर्टिस्ट हैं। कल शाम रजा फाउंडेशन ने दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम की श्रीधरणी गैलरी में 60 युवा प्रिंट मेकर आर्टिस्टों की एक प्रदर्शनी "युवा सम्भव "लगाई जिनमें करीब 30 महिला युवा प्रिंट मेकर के चित्र शामिल थे। इस दृष्टि से देखा जाए तो कला की दुनिया में स्त्री सशक्तिकरण का यह एक नया प्रदर्शन था क्योंकि इस क्षेत्र में पहले बहुत कम महिला प्रिंट मेकर हुआ करती थी। इसका एक कारण तो यह भी था कि यह विधा बहुत ही श्रम साध्य है और इसका बाजार अभी बड़ा नहीं है इसलिए यह मुनाफे का काम कम है। 60 कलाकारों के प्रिंट की इतनी बड़ी प्रदर्शनी हालके दिनों में कला की बड़ी घटना है।

 

रजा फाउंडेशन की इस प्रदर्शनी का उद्घाटन देश की सबसे बड़ी प्रिंट मेकर आर्टिस्ट अनुपम सूद ने किया जो अब करीब 80 वर्ष की हो चली हैं। स्लेड स्कूल ऑफ फाइन आर्ट्स यूनिवर्सिटी कालेज लंदन से 1971--72 में प्रिंट मेकिंग में डिग्री प्राप्त करने वाली अनुपम जी ने मुख्य अतिथि के रूप में इस प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर एक कैटलग का भी विमोचन किया गया जिसमें सभी कलाकारों का परिचय तो है ही उनकी पेंटिंग्स भी हैं।इस तरह यह कैटलॉग युवा रचनात्मकता का एक दस्तावेज बन गया है।भविष्य के लिए एक संदर्भ स्रोत भी।

इस अवसर पर रजा फाउंडेशन के प्रबंध न्यासी प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी तथा प्रर्दशनी के संयोजक अशोक वाजपेयी ने कहा कि रजा फाउंडेशन पिछले कुछ सालों से कला की दुनिया में युवा प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के लिए कटिबद्ध है और इस दिशा में उसने पहले 100 युवा कलाकारों की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया था, उसके बाद 20 आदिवासी कलाकारों की भी प्रदर्शनी आयोजित की थी,उसके बाद तीस युवा आदिवासी चित्रकारों की प्रदर्शनी की थी।उन्होंने बताया कि जेस्वामीनाथन ने भारत भवन में प्रिंट कलाकारों की एक बड़ी प्रदर्शनी लगाई थी। 

 

अब रजा फाउंडेशन प्रिंट ,स्कल्पचर ,सेरामिक्स और अन्य मीडिया में युवा कलाकरों की प्रदर्शनियां आयोजित कर रहा है। इस कड़ी में आज हम प्रिंट के क्षेत्र में कार्यरत युवा कलाकारों की इस प्रदर्शनी को आयोजित कर रहे हैं। इसमें 60 कलाकारों ने भाग लिया है जो 18 राज्यों के 43 शहरों से आये हैं ।इनमें 30 महिला कलाकार हैं।इस इस प्रदर्शनी में कला के क्षेत्र में हो रहे नवाचार नई अभिव्यक्तियों नई शैलियां और नए रूपों को देखा जा सकता है। रजा फाउंडेश कला की दुनिया में युवा कलाकारों में नवाचार को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प है।

उन्होंने कहा कि" प्रिंट की दुनिया में जरीना हाशमी जैसी मशहूर कलाकार हो चुकी हैं जिनका पिछले दिनों निधन हो गया ।अब हमारे बीच लक्षमागौड़ और अनुपम सूद जैसी वरिष्ठ और दिग्गज प्रिंट मेकर आर्टिस्ट हैं।" अनुपम सूद ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि" हमारे जमाने में स्त्री और पुरुष कलाकार का कोई भेद नहीं था और हम लोग यह सोचकर पेंटिंग नहीं करते थे कि फलां पुरुष है और फलां महिला आर्टिस्ट है लेकिन यह सच है कि हमारे जमाने में प्रिंट में आर्टिस्ट बहुत कम होती थी। मुझसे वरिष्ठ केवल एक प्रिंट मेकर आर्टिस्ट थी जो मेरी तरह सोमनाथ होर की शिष्या थी दूसरी जरीना हाशमी थी जिनका अब निधन हो चुका है ।गोगी सरोज पाल तो मुझसे छोटी थी लेकिन आज के जमाने में बहुत सारी युवा महिला प्रिंट मेकिंग के क्षेत्र में सामने आई है। इस प्रदर्शनी में भी मैंने कई महिला प्रिंट आर्टिस्टों के काम को देखा। उनके काम ने मुझे प्रभावित किया तथा देश में प्रिंट मेकिंग आर्ट के भविष्य को लेकर में आशान्वित हूँ ।उनमें गज़ब का आत्मविश्वास और नवाचार है।"

 

 

इस प्रदर्शनी के क्यूरेटर भोपाल के वरिष्ठ चित्रकार युसूफ है तो संयोजक मनीष पुष्कले हैं।प्रसिद्ध चित्रकार परमजीत सिंह ने कहा कि उनके ज़माने में गिने चुने प्रिंट आर्टिस्ट होते थे।उन दिनों तीन चार थे जिनमें कुछ कोलकाता के थे लेकिन अब तो इतने सारे कलाकार मैदान में आ गए।यह प्रदर्शनी इसका प्रमाण है।"

 मनीष का कहना है कि वह इस प्रदर्शनी के आयोजन में सहयोग कर रहे है और उत्साहित भी हैं लेकिन करीब डेट अरब की आबादी वाले इस देश में आज अगर करींब1000 प्रिंट आर्टिस्ट है तो यह बहुत कम है और उसमें महिला आर्टिस्ट करीब सवा डेढ़ सौ होंगी ,जो संख्या की दृष्टि से कम है ,लेकिन यह सच है या कला क्षेत्र में इतनी महिलाएं सामने आ रही हैं जिसका प्रमाण यह प्रदर्शनी है। लेकिन बाजार की दृष्टि से अभी प्रिंट मेकिंग का भविष्य उज्जवल नहीं है ।"

इस प्रदर्शनी में भाग लेने वाली कुछ महिला चित्रकारों ने बड़े उत्साह से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। भोपाल की शिवानी दुबे का कहना था कि वह कुछ सालों से इस आर्ट की दुनिया में आई है और उन्होंने अभी बहुत कम प्रिंट आर्ट का काम किया है ।उनका कहना था कि एक प्रिंट आर्ट बनाने में काफी मेहनत करनी पड़ती है ।उन्होंने पारंपरिक शैली के साथ कुछ नवीन शैली का भी उपयोग किया है और अब डिजिटल माध्यमों का सेविंगकर नवाचार करने की कोशिश की है।

इस प्रदर्शनी में सबसे अधिक आयु( 43र्ष) की चित्रकार अलका चावड़ा थी जो गुजरात के सामा से हैं ।सबसे युवा दिव्या ककानी (22 वर्ष) है यानी सबसे नई आर्टिस्ट है।वह धारवाड़ की है।उड़ीसा की संगीता नायर भी काफी युवा हैं और उनमें आगे बढ़ने की तमन्ना है।कणिका शाह, निधि मिश्र मेघा मदन, सुजाता महापात्र ,प्राची सहस्त्रबुद्धे ,माधवी श्रीवास्तव, रंजना पॉल सिमी दास, नीतिक्षा डावर ,पद्मा कर्मकार ऋषिकादत्ता पायल रोकड़े निशा धीनवा आदि आर्टिस्टों ने मन मोह लिया।

हरियाणा के हिसार के अजय तंवर सबसे कम उम्र के कलाकार है।वेभी महज 22 साल के हैं।कैटलग में पहली पेंटिंग उनकी है जो गाय की है।उनकी गाय मनजीत बाबा की गाय से अलग है।उसमें एक लोक कला है।वुड कट पर बना यह प्रिंट बहुत ही ला जवाब है।दूसरी पेंटिंग भी गाय पर है पर वह लिथियोग्राफी में है।अधिकतर कलाकार की उम्र 30 से 40 के बीच की है।

इनमें कानपुर इलाहाबाद, उदयपुर बंगलोर नागपुर बड़ोदरा सीकर हिसार गोआ आंध्रप्रदेश कर्नाटक सरकार बालसोर दिल्ली असम आदि के आर्टिस्ट शामिल हैं।कैटलग में प्रकाशित चित्रों को देखकर लगता नहीं कि ये प्रिंट आर्ट है।इन युवा कलाकारों के काम मेंबहु विविधता है।इनमें आधुनिककला और लोक कला की खूबियां हैं ।इनके स्टाइल भी नए हैं।श्वेत श्याम और रंगीन प्रिंट के भाव भी अलग हैं।

इन युवा कलाकारों का विकास देखना दिलचस्प होगा।सबसे बदबात यह है कि इनकी मार्केटिंग कैसे हो।मीडिया अगर उनको जगह दे तो कोई रास्ता निकल सकता है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad