तकरीबन सभी ने माना कि ‘स्वयंसिद्ध’ एक ऐसे शख्सियत की जीवनी है जो मूलतः राजनेता हैं लेकिन आजीवन राष्ट्र, समाज और व्यापक मानवता की सेवा के मद्देनजर शरद पवार को केवल राजनेता कह देने से उनकी पूरी छवि नहीं उभर सकेगी। उनका पूरा जीवन और कार्यक्षेत्र इतना विविध और गतिशील रहा है कि वह किसी भी लेखक के लिए विस्मय और चुनौती का विषय हो सकता है। लेकिन त्रिपाठी ने इस चुनौती को बखूबी स्वीकारते हुए अपनी सरल एवं जुमलेदार, काव्यात्मकता के पुट वाली भाषा के जरिए, केंद्रीय राजनीति और वैश्विक दखल रखने वाले वयोवृद्ध नेता के जीवन का रेशा-रेशा ऐसे खोला है कि पाठक को भरपूर जानकारियों के साथ फिक्शन का आनंद मिलता है। डीपीटी नाम से जगचर्चित त्रिपाठी राजनीति के साथ ही इतिहास और साहित्य के प्रखर अध्येता रहे हैं और जेएनयू की छात्र राजनीति में न केवल सक्रिय रहे, बल्कि उसे एक दिशा दी है। साहित्य कविता से शुरू कर लेख, समीक्षा, आलोचना और संपादन (थिंक इंडिया) में महत्वपूर्ण रचनाएं उन्होंने दी हैं। उनके उत्कृष्ट लेखन का ही ताजा उदाहरण है यह पुस्तक।
पवार सन 1967 में ही महाराष्ट्र विधान परिषद में सदस्य के रूप में शामिल हुए। दो दशकों तक बारामती से सांसद रहे और आठवें और नवें दशक में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शासन, सेवा और कर्मठता का आदर्श प्रस्तुत किया। खेल को प्रोत्साहित करने के लिए भारत स्काउट एंड गाइड्स, बीसीसीआई और आईसीसी के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने निर्णायक फैसले लेकर देश के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को इतिहास रचने का अवसर प्रदान किया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना, भारत सरकार के कैबिनेट में अहम मन्त्रालयों का कार्यभार और फिर राज्यसभा के सम्मानित सदस्य के रूप में आज तक राजनीतिक यात्रा जारी रखे शरद पवार जी ने अपने संसदीय जीवन के लगभग पचास वर्ष पूरे कर लिए हैं।
वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल ने आगंतुकों के प्रति आभार प्रकट किया|