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डर

उमाशंकर चौधरी की कविताएं
डर

चार साल की बेटी को

तमाम वर्दीधारियों के बीच सिखलाया जाता है स्कूल में

कि आग लगे तो भागना है किस तरफ

किस तरफ छिप जाना है उसे

किस तरफ है वह खास दरवाजा जिसके बाहर

बचा सकती है वह अपनी जान

बेटी को दी जाती है ढेर सारी नसीहतें

कि कैसे नहीं मिलना चाहिए उसे किसी अनचीन्ही मिट्टी और पानी से

नहीं करनी है उसे दोस्ती किसी अंजान आदमी, बच्चे या स्त्री से

कैसे नहीं पहुंचनी चाहिए उस तक

कोई अंजान चॉकलेट-टॉफी, कोई लोभ

कोई खुशबू या कोई अपिरिचित हवा

कैसे वह नहीं बताए किसी भी अंजान आदमी को

अपने स्कूल के बारे में कुछ भी

यहां तक कि अपने स्कूल के सेक्शन

अपने स्कूल बैग का रंग

अपने स्कूल के नोटिस बोर्ड पर चिपकाई गई खास हिदायतें

अपने सबसे प्यारे दोस्त का नाम

या फिर यहां तक कि अपने सबसे जिगरी दोस्त की

नाक सुड़कने की खास आदत

चार साल की बेटी को उन वर्दीधारियों की कदमताल के बीच

दीजाती है नसीहत

कि कैसे कोई हमला कर दे स्कूल के भीतर

तब छिप जाना है उसे

उस डेस्क के नीचे जिस पर हर दिन लंच के समय

निकाल कर खाती है वह

अपने मां के हाथका दिया हुआ स्वादिष्ट भोजन

स्कूल में चार साल की बेटी

उन वर्दीधारियों के बीच कदमताल मिलाकर

अपने आपको बनाने की करती है कोशिश

मजबूत और हिम्मती

चार साल की बेटी

लौटती है स्कूल से और छिप जाती है

अपनी मां की गोदमें दुबक कर

चार साल की बेटी के चेहरे का रंग जर्द पड़ चुका है।

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