आउटलुक अपने पाठको के लिए अब हर रविवार एक कहानी लेकर आ रहा है। इस कड़ी में आज पढ़िए तेजेन्द्र शर्मा की कहानी। यह कहानी आकर्षण की कहानी है, जो कभी भी किसी व्यक्ति से उपज सकता है। लेकिन फिर भी इसे प्लेटॉनिक लव नहीं कहा जा सकता। अक्सर जिंदगी में ऐसे पल आते हैं, जब उम्र, वर्ग से परे किसी के बारे में उत्सुकता ही धीरे-धीरे आकर्षण में बदल जाती है। इस आकर्षण को भले ही कोई और नाम न दिया जा सकता हो, लेकिन किसी व्यक्ति में दिलचस्पी बताती है, कि कहीं न कहीं उस व्यक्ति से कोई न कोई तार जरूर जुड़ा हुआ है।
वह आज भी वहां नहीं बैठी।
पिछले छह महीने से नरेन उसे हेन्डन सेंट्रल अंडरग्राउंड स्टेशन के बाहर क्वींस रोड के बस स्टॉप के पीछे बैठते देख रहा है। उसके बाल खिचड़ी रंग के हैं, जिसे अंग्रेज सॉल्ट एंड पैपर लुक कहते हैं। दूर से देखने पर पता ही नहीं चलता कि किस आयु-वर्ग की होगी। उसे वैसे ही अंग्रेज औरतों की उम्र का अंदाज लगाने में बहुत मुश्किल होती है।
नरेन सोचता है कि उसका नाम क्या हो सकता है। अंग्रेजी लड़कियों के कई नाम उस चेहरे पर फिट करने का प्रयास करता है। जूली, ऑड्री, क्लेयर, शिनेड.... सभी नाम सोचता है... मगर नहीं... भला ऐसे आकर्षक चेहरे पर जाने-पहचाने नाम कैसे चिपका देता। फिर भी कोई नाम तो देना था। भला उसके बारे में सोचे तो कैसे, किसी से बात करे तो क्या कहे? नरेन ने उसका नामकरण भी कर दिया, कैलिप्सो, एटलस की बेटी। ग्रीक भाषा में उसका अर्थ होता है, वह जो कुछ छिपाए। यह औरत तो अपने भीतर न जाने क्या क्या छिपाए बैठी है।
कैलिप्सो अगर समुद्र की देवी थी, तो नरेन की कैलिप्सो रेलवे की देवी कही जा सकती है। हेन्डन सेंट्रल स्टेशन की रेल लाइन के ऊपर बने पुल पर अपने ही बैग अपने नीचे रख बैठी रेलवे की देवी, रेलवे निम्फ!
कैलिप्सो यहां क्यों बैठती है, कबसे बैठती है, इसका दुनिया में कोई अपना है या नहीं। उसे बहुत सी कहानियां याद आने लगीं। चार्ल्स डिकेंस का नॉवल ग्रेट एक्सपेक्टेशंस याद आया और याद आई मिस हैविशाम, जिसका प्रेमी विवाह की शाम अपनी दुल्हन से विवाह रचाने आया ही नहीं। जिसने अपने घर की हर चीज उस शाम के नाम स्थिर कर दी थी। उसके घर की घड़ी भी उसी समय पर रोक दी गई थी, जब उसके प्रेमी को उसे दुल्हन बनाने आना था। उसे याद आई अपने मित्र की कहानी, ग्रेसी रेफल जिसके पति ने उसे लूट कर सड़क पर घिसटने को छोड़ दिया था। वह बेचारी बरसों तक मुंबई के चर्चगेट स्टेशन के बाहर पागलों की तरह गुदड़ी में लिपटी बैठी रहती।
नरेन वापस अपने बचपन में दिल्ली के पुराने रोहतक रोड किशन गंज के डिस्पेंसरी बस स्टॉप तक पहुंच गया। उसी डिसपेंसरी में एक नर्स काम किया करती थी। सांवली सलोनी उस नर्स का नाम अनामिका था। अचानक किसी के प्रेम में उसका दिमागी संतुलन बिगड़ गया था। उसके प्रेमी ने उसे गर्भवती कर शादी से इनकार कर दिया था। अनामिका ने दोस्तों की राय पर बच्चा गिरवा लिया मगर उस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाई। नौकरी छूट गई। वह बिना नहाई, उलझे बाल, फटी रजाई, मैल से गंदी कोहनियां, चिकट्ट पांव में गहरी बिवाइयां लिए उस बस स्टॉप पर आ गई।
नरेन सोचता है, क्या कैलिप्सो के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ होगा। वह शायद चाहता भी है कि इस महिला के साथ कुछ ऐसा ही हुआ हो जिसे वह रोमेंटेसाइज कर सके। एक दिन तो वह बस स्टॉप से उस रहस्यमयी चेहरे की तरफ बढ़ने लगा। वह चाहता था कि महसूस कर सके कि कैलिप्सो नहाई धोई, साफ-सुथरी महिला है या फिर वह भी अनामिका की तरह बू मारता शरीर मात्र है।
उसके पास से गुजरता नरेन चोर निगाह से देखने का प्रयास करता है कि कहीं यह सीधी-सादी भिखारिन तो नहीं। मगर वह तो अच्छे भले कपड़े पहने है। नीले फूलों वाला टॉप और गहरी नीले रंग की जींस के साथ एडिडॉस के जूते पहने एक नारी भला भिखारिन कैसे हो सकती है? कैलिप्सो को कनखियों से देखता नरेन बस स्टॉप से उस तक आहिस्ता आहिस्ता चक्कर लगाता रहा।
कैलिप्सो के पास एक ‘लाते कॉफी’ का पेपर गिलास रखा था। गिलास कोस्टा कॉफी का था। यानि कि वह दो पाउंड पैंतीस पैंस की कॉफी खरीदने की कूवत रखती है। तो पैसे कहां से लाती होगी? यह भी तो हो सकता है कि यह कोई अपनी मर्जी वाली होमलेस हो। जो अपने परिवार के साथ रहना ही न चाहती हो। मगर इसके परिवार में और कौन-कौन होगा? क्यों यह अपने परिवार के साथ नहीं रहना चाहती? अंग्रेज लोगों की सोच भारतीय सोच से अलग होती है। उन्हें निजी स्वतंत्रता बहुत प्यारी होती है। न जाने ऐसी क्या बात होगी, जो उसे इस बस स्टॉप के पीछे रेल के पुल के ऊपर बैठने को मजबूर करती है।
उसे लगने लगा है कि वह कैलिप्सो में बहुत अधिक रुचि लेने लगा है। कहीं सीमा को पता चल गया तो वह जरूर बुरा मान जाएगी। अगर सीमा न होती तो वह कभी इस बस स्टॉप पर आता ही नहीं। सीमा हेण्डन में ही रहती है, शेरवुड रोड में उसका बड़ा सा घर है। एक बेटी है। तलाकशुदा है। नाटक में अभिनय का शौक है। नरेन के नाटक में अभिनय करते-करते नरेन को अपने दिल में जगह दे बैठी है।
नरेन केंटन लाइब्रेरी के बस स्टॉप से 183 नंबर की बस में बैठ कर क्वींस रोड के हेन्डन सेंट्रल के बस स्टॉप तक केवल सीमा से मिलने आता है। सीमा से उसका प्रेम कोई तीन साढ़े तीन वर्ष पुराना है। वह आमतौर पर सीमा से पहले ही बस स्टॉप पर आकर खड़ा हो जाता है। सीमा अपनी होंडा एकॉर्ड पर आती है और नरेन को अपने साथ ले जाती है। दोनों किसी रेस्टोरेंट में बैठ कर कॉफी पीते हैं, कभी-कभी पैनीनी खाते हैं, तो कभी कैरट केक। आजकल सीमा ‘हनीमून’ नाटक की स्क्रिप्ट पढ़ रही है। नरेन ने ही लिखी है स्क्रिप्ट।
नरेन जानता है कि सीमा उसे लेकर बहुत हक की भावना रखती है। इर्ष्या की हद तक उसे प्यार करती है। वह भी अपना बाकी जीवन सीमा के साथ ही बिताने के सपने देखता है। मगर अपने भीतर के लेखक से कैसे लड़े। उसके भीतर का लेखक कैलिप्सो के बारे में जानने को उत्सुक है। उसे बस इतना ही समय मिलता है। मन में कहीं इच्छा भी जागती है कि किसी दिन कैलिप्सो से आकर बात करे। उसके जीवन में झांक कर देखे। कितना खूबसूरत नाटक लिखा जा सकता है और फिर यही रोल सीमा को करने को कहेगा। सीमा के चेहरे पर सॉल्ट एंड पैपर लुक वाले बाल कैसे लगेंगे? बहुत खूबसूरत लगेगी। फिर सोचता है कि सीमा से एक दिन बात कर ही लेगा।
नरेन कैलिप्सो को बस उतनी देर ही देख पाता है जितनी देर वह सीमा की प्रतीक्षा करता है। क्या यह संभव नहीं कि वह किसी दिन केवल कैलिप्सो से मिलने ही आए? मगर क्या सीमा उसके दिल की बात समझ पाएगी? वह सीमा से किसी भी कीमत पर अपना रिश्ता नहीं तोड़ना चाहेगा। सीमा की ईर्ष्यालू तबीयत को अच्छी तरह समझता है। उसे यही लगेगा कि वह कैलिप्सो में रुचि लेने लगा है। पिछली बार जब एक नाटक देखने वाटरमेंस थियेटर गए थे, तो वहां एक महिला ने उसे गले से लगा लिया था। तीन दिन तक सीमा का मुंह फूला रहा। बस एक ही सवाल पूछती रही, “यह औरतें तुम्हें ही क्यों गले लगाती हैं? कभी देखा है कि कोई पुरुष मुझे गले लगाने की हिम्मत करे? तुम्हारे सर्कल में किसी और पुरुष को मैंने किसी महिला को गले लगाते नहीं देखा। तुम पता नहीं किस तरह के मर्द हो।”
वह कभी सीमा को समझा नहीं पाया कि नाटक के क्षेत्र में कलाकार एक दूसरे को सहज रूप से गले लगा लेते हैं। मगर सीमा को समझाना आसान भी तो नहीं। फिर अपनी बात को सही साबित करने के लिये कह देगी, “देखो वह जो लेस्टर वाली रीना वर्मा हैं अगर वह तुम्हें गले लगाए तो मुझे बुरा नहीं लगता। कॉवेन्टरी वाली स्नेहलता भी जब तुम्हें गले लगाती है, तो उसकी आंखों में वासना नहीं होती। मगर तुम जब अपनी कलाकारों को गले लगाते हो तो तुम्हारी आंखों में एक गंदी सी सोच साफ दिखाई दे जाती है और उस दिन जब वह रूसी लेडी बड़े गले की ड्रेस पहने मिली थी तो कितनी बेहूदगी से झांक-झांक कर देख रहे थे तुम!”
नरेन ने बहुत बार सोचा भी है कि सीमा ऐसा व्यवहार क्यों करती है? क्या इस तरह सीमा के साथ उसका रिश्ता लंबी दूरी तक चल पाएगा? क्या उसे सीमा से इसी तरह डरते रहना होगा? मगर वह स्वयं भी तो सीमा से प्यार करता है। उसकी बेटी भी उसे पसंद करती है। जब कभी हेन्डन के लाहौर रेस्टोरेंट में तीनों खाना खाने जाते हैं, तो प्राची नरेन के साथ बैठ कर बतियाती है। कई बार तो नरेन के हाथों से ही खाना खाती है। फिर सीमा उसकी हर जरूरत का कितना खयाल रखती है! उसके रुमाल और जुराबों से ले कर कोलोन तक खुद ले कर आती है। क्या किसी पत्नी से कम निभाती है अपना कर्तव्य? उसने तो साफ-साफ बताया भी है कि उसका अपने पति से तलाक क्यों हुआ। उसके पति का हमेशा दूसरी औरतों में ध्यान लगा रहता था। उसने नरेन से कह दिया था कि वह दूसरी औरत कभी बरदाश्त नहीं करेगी। फिर वह सीमा को यह सब बताए या नहीं?
नहीं, नहीं, सीमा को कुछ नहीं बताएगा। जीवन में पहले क्या कम समस्याएं हैं जो और मुसीबत अपने सिर पर डाल ले? लेकिन समस्या खुद चली आती है। नरेन अपनी बस से उतरा तो उसने देखा कि कोई व्यक्ति कैलिप्सो से बातें कर रहा है। न जाने क्यों उसे जलन महसूस होने लगी। पिछले कुछ दिनों से उसके दिल में कैलिप्सो पर एकाधिकार की सी भावना घर करती जा रही थी। थोड़ी देर में वह आदमी कैलिप्सो से कुछ कहता हुआ उसके पास से हट कर सड़क पार कर सामने जाने लगा। नरेन का ध्यान कैलिप्सो से हट कर उस आदमी की तरफ ही लगा रहा।
करीब चालीस-पैंतालीस वर्ष का रहा होगा। देखने में पूरा ब्रिटिश गोरा लग रहा था। भला यह कैलिप्सो का क्या लगता होगा? वह कैसे मुस्करा-मुस्करा कर उस पुरूष से बात कर रही थी! भला उसके हिस्से की मुस्कुराहट किसी गैर को कैसे नसीब हो गई? अचानक उसे लगा कि उसका एक रकीब पैदा हो गया है। नरेन ने तय कर लिया कि आज वह कैलिप्सो से बात कर ही लेगा। अब नहीं करेगा किसी की परवाह।
परवाह तो करनी ही पड़ेगी। क्योंकि नरेन के दिल पर पांव रखता वह आदमी वापिस आ गया है और उसके हाथ में दो गिलास कॉफी है। सामने वाले इटैलियन कैफे से लाया है। भला वहां की कॉफी कोस्टा से महंगी होगी या सस्ती? सुना है कि कोस्टा कॉफी तो सबसे महंगी होती है और सबसे टेस्टी भी। किसी दिन वह भी कैलिप्सो को कोस्टा कॉफी खरीद कर देगा। सीमा के आने से आधा घंटा पहले ही पहुंच जाएगा। पता लगा कर रहेगा कि आखिर यह महिला यहां आकर क्यों बैठती है। किसी से डरती भी तो नहीं है।
डर तो पूरे लंदन में फैला हुआ है। आतंकवादियों का डर। वेस्ट हेण्डन में तो खास तौर पर दहशत है। कहीं यह कैलिप्सो आतंकवादियों से मिली तो नहीं हुई? किसी दिन हेन्डन सेंट्रल स्टेशन पर बम न फट जाए। सात जुलाई का वह मनहूस दिन याद है उसे जब लंदन अंडरग्राउंड में बम विस्फोट हुए थे। बसें, गाड़ियां सभी आतंकवादियों के निशाने पर थे। लेकिन इतना भला लगने वाला चेहरा क्या आतंकवादी हो सकता है?
एक दिन हिम्मत कर ही बैठा। चल कर कैलिप्सो के पास पहुंच गया। गला सूखने लगा। जबान तालू से चिपकती जा रही थी। देखा कि वह नहाई-धोई, साफ-सुथरी औरत है। सामने एक कोस्टा कॉफी के गिलास में लोगों के दिए कुछ पैसे रखे हैं। उसने भी एक पाउंड का सिक्का उसमें डाल दिया और कहा, “आप कॉफ़ी पीना चाहेंगी?”
कैलिप्सो ने हां में सिर हिला दिया। कैलिप्सो की आवाज उस दिन भी नरेन की किस्मत में नहीं थी। सामने वाले कैफे की तरफ चल दिया। मन में कहीं डर भी था कि कहीं सीमा न आ जाए। सामने वाले कैफे से जा कर कॉफी खरीदी। वहां कॉफी कोस्टा के मुकाबले आधे दाम पर थी। एक गिलास एक पाउंड दस पैंस में। तसल्ली हुई कि एक पाउंड कैलिप्सो को दिया और एक पाउंड दस पैंस में कॉफी खरीदी, फिर भी पंद्रह पैंस की बचत हो गई। उसकी इसी सोच को सीमा लोअर मिडल क्लास थिंकिंग कहती है।
“थैंक यू।” कैलिप्सो की आवाज ने अपना संगीत बिखेरा था। जल्दी से बिना कुछ बोले ही नरेन बस स्टॉप पर आकर खड़ा हो गया। सीमा के आने का समय हो चुका था। वह कभी भी आ सकती थी। मगर एक बात उसे पता चल गई थी कि कैलिप्सो पैसे भी लेती है और कॉफी भी पीती है। कहीं यह धंधा तो नहीं करती? मगर उसने तो कैलिप्सो को हमेशा वहीं बैठे देखा है। लेकिन वह तो वहां दस से पंद्रह मिनट से अधिक कभी भी खड़ा नहीं हुआ। उसके जाने के बाद क्या करती है, कहां जाती है, यह किसे पता है। क्या बात करने के सेशन के भी पैसे मांगती होगी? प्रोफेशनल लड़कियों के बारे में कुछ भी तो पता नहीं चलता। कब क्या मांग बैठें।
हिम्मत करके सीमा से अनुमति मांग ही बैठा। दरअसल सीमा ने खुद ही एक दिन कहा, “यह औरत हमेशा यहीं बैठी दिखाई देती है। कौन हो सकती है।”
“मैं भी बहुत दिनों से इसे देख रहा हूं। मैं चाहता हूं कि इससे बात करके इसकी पूरी कहानी जान लूं। फिर उस पर एक नाटक लिखूं और उस नाटक की मुख्य भूमिका तुम करो।”
सीमा के चेहरे पर एकाएक गंभीर चुप्पी छा गई। नरेन को कुछ समझ नहीं आया कि वह अब करे तो क्या करे। उसे तीन सप्ताह के लिए भारत जाना था। सीमा की चुप्पी का सामना करने से भारत में तीन सप्ताह बिताना कहीं अधिक श्रेयस्कर था। तीन सप्ताह तक रोज सीमा का फोन आता रहा। हर फोन में हिदायत रहती कि किसी औरत को ज्यादा अपने नजदीक न आने दे। नरेन तीन सप्ताह सीमा की इस सीख को भारत में याद करता रहा, चाहे वह दिल्ली में रहा या फिर मुंबई में।
सीमा के लिए सूट, साड़ियां और परफ़्यूम लिए जब नरेन वापिस लंदन पहुंचा, “नरेन, मैंने तुम्हारे पीछे बहुत सोचा तुम्हारी कैलिप्सो के बारे में। मुझे कोई ऑब्जेनक्शन नहीं है। तुम उससे बातचीत कर सकते हो।”
नरेन को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे। बस चुप रह गया। उसे मालूम था कि अगर वह खुशी दिखाएगा तो सीमा कहेगी, “मैं जानती थी कि तुम तड़प रहे होगे अपनी कैलिप्सो से गुटरगूं करने के लिए। तुम मुझ से सैटिस्फ़ाइड क्यों नहीं हो? क्या कमी है मुझ में?” और अगर वह कहता कि उसे कैलिप्सो से मिलने में कोई रुचि नहीं तो वह खट से कह देती, “तो ठीक है। बाद में मुझे मत कहना कि मैनें तुमको उससे बात करने को रोका था। तुम तो किसी भी करवट बैठने लगते हो।”
अगले ही दिन हेन्डन स्टेशन के बस स्टॉप पर पहुंचा नरेन, ठीक तीन बज कर पैंतीस मिनट पर। बस से उतर कर सीधे कैलिप्सो की तरफ कदम बढ़ाए। मगर वह वहां नहीं बैठी थी।
आज छठा दिन है और कैलिप्सो वापिस नहीं आई। आखिर वह कौन थी… कहां से आई थी और चली कहां गई?
तेजेन्द्र शर्मा
21 अक्टूबर 1952 (जगरांव) पंजाब में जन्मे तेजेन्द्र शर्मा दर्जनों कहानी संग्रह लिख चुके हैं। उनकी कई कहानियां भारतभर के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। वे अग्रणी प्रवासी साहित्यकार हैं। उन्हें ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय एम.बी.ई. (मेम्बर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर) की उपाधि 2017 से स्मानित कर चुकी हैं। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा का डॉ. मोटुरी सत्यनारायण सम्मान, यू.पी. हिन्दी संस्थान का प्रवासी भारतीय साहित्य भूषण सम्मान, हरियाणा राज्य साहित्य अकादमी सम्मान, मध्य प्रदेश सरकार का साहित्य सम्मान के अलावा उन्हें महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है। फिलहाल वे ब्रिटिश रेल (लंदन ओवरग्राउण्ड) में कार्यरत हैं।