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पुस्तक समीक्षा: सिलक्यारा के सत्रह दिन संघर्ष और आशा की कहानी

पुस्तक: वो 17 दिन लेखक  : कु. राजीव रंजन सिंह मूल्य   : रु 599 प्रकाशक: डायमंड बुक्स समाज में...
पुस्तक समीक्षा: सिलक्यारा के सत्रह दिन संघर्ष और आशा की कहानी

पुस्तक: वो 17 दिन

लेखक  : कु. राजीव रंजन सिंह

मूल्य   : रु 599

प्रकाशक: डायमंड बुक्स

समाज में होने वाली घटनाएँ और हादसे अक्सर हमारे दिलों पर गहरा असर छोड़ते हैं, और जब उन घटनाओं को लेखक अपनी लेखनी के माध्यम से सजीव बना देता है, तो पाठक उसमें खो जाता है। वो 17 दिन, कुमार राजीव रंजन सिंह द्वारा लिखित एक ऐसी ही पुस्तक है जो उत्तराखंड के सिलक्यारा सुरंग हादसे पर आधारित है और पाठकों को एक ऐसी यात्रा पर ले जाती है, जहाँ वे हर उस पल का अनुभव करते हैं जो उस भयानक त्रासदी के दौरान घटा।

12 नवंबर 2023 की सुबह, जब पूरा देश दीपावली की तैयारियों में व्यस्त था, उत्तरकाशी के धरासू-यमुनोत्री मार्ग पर बन रही सिलक्यारा-बड़कोट सुरंग का एक हिस्सा ढह गया। इस हादसे में सुरंग में काम कर रहे 41 मजदूर फंस गए। ये वह पल था जिसने हर किसी के दिल में एक सन्नाटा भर दिया और इस घटना पर पूरे देश की निगाहें टिक गईं। वो 17 दिन एक ऐसी पुस्तक है जो न केवल इस घटना का ब्योरा देती है बल्कि मानवीय धैर्य, जिजीविषा और जीवन के प्रति अटूट विश्वास को भी गहराई से प्रस्तुत करती है।

कुमार राजीव रंजन सिंह की इस पुस्तक में उस 17 दिनों की यात्रा का विस्तार से वर्णन किया गया है जिसमें रेस्क्यू ऑपरेशन की हर कठिनाई को दर्शाया गया है। लेखक ने इस ऑपरेशन में शामिल टीमों के प्रयास, उनके सामने आने वाली चुनौतियाँ और मजदूरों के जीवन के लिए की गई हरसंभव कोशिश को इतने बारीकी से उकेरा है कि हर पंक्ति पाठकों को बाँधे रखती है।

खास बात यह है कि इस किताब में लेखक ने रेस्क्यू ऑपरेशन में इस्तेमाल हुई ‘रैट-होल’ खनन तकनीक और अन्य महत्वपूर्ण प्रयासों का उल्लेख किया है, जो इस घटना को समझने में सहायक सिद्ध होते हैं।

रेस्क्यू ऑपरेशन की कामयाबी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की भूमिका को भी पुस्तक में महत्व दिया गया है। प्रधानमंत्री मोदी इस पूरे ऑपरेशन पर व्यक्तिगत नजर रख रहे थे और हर दिन घटनाओं की अपडेट ले रहे थे। इसी तरह, मुख्यमंत्री धामी ने खुद घटनास्थल पर कैंप बनाकर पल-पल की जानकारी प्राप्त की। इन राजनैतिक और प्रशासनिक प्रयासों के साथ-साथ वहां मौजूद हर एक रेस्क्यू कर्मी की मेहनत, रैट माइनर्स का साहस, और मजदूरों की जीवटता ने मिलकर इस ऑपरेशन को सफल बनाया।

लेखक की लेखन शैली सरल, संजीदा और स्पष्ट है, जिससे पाठक हर घटना को गहराई से महसूस कर पाते हैं। उन्होंने घटनाओं का वर्णन करते हुए तकनीकी और संवेदनशीलता का अद्भुत संतुलन बनाए रखा है। लेखक ने इस पुस्तक में पत्रकारिता के दृष्टिकोण को बनाए रखते हुए इसे कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे पाठकों की उत्सुकता हर पृष्ठ के साथ बढ़ती जाती है।

किताब की एक और विशेषता इसका व्यवस्थित विभाजन है। 22 अध्यायों में बंटे इस दस्तावेज़ में हर अध्याय एक नए दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है, जो पाठकों को बांधे रखने में सक्षम है। त्रासदी के बीच फंसे मजदूरों के संघर्ष, उनके धैर्य, और बचाव दल के प्रयासों को दर्शाने में लेखक ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। यह पुस्तक इस त्रासदी के हर पहलू को गहराई से प्रस्तुत करती है और इसमें केवल घटनाओं का वर्णन नहीं है, बल्कि उन घटनाओं के पीछे की मानवीय संवेदनाओं का भी बखूबी चित्रण है।

कुल मिलाकर, वो 17 दिन एक ऐसी पुस्तक है जो न केवल सिलक्यारा सुरंग हादसे की जानकारी देती है बल्कि इस घटना से जुड़े हर व्यक्ति के प्रयास और धैर्य को श्रद्धांजलि अर्पित करती है। कुमार राजीव रंजन सिंह ने अपनी लेखनी से इस त्रासदी को सजीव बना दिया है, जिससे यह पुस्तक पाठकों के दिल में एक गहरी छाप छोड़ जाती है। यह पुस्तक किसी भी पाठक के लिए संग्रहणीय है और यह उम्मीद की जा सकती है कि लेखक भविष्य में भी इसी तरह की संवेदनशील और समाजोपयोगी कृतियों का सृजन करेंगे।

 

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