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अड्डे पर साझा उदासी

अड्डे पर लोग सात बजे शाम से जुटने लगते हैं। साढ़े सात तक प्राय: सभी पहुंच जाते हैं। जो नहीं पहुंच पाता उसकी तलाश शुरू हो जाती है।
अड्डे पर साझा उदासी

अड्डे पर लोग सात बजे शाम से जुटने लगते हैं। साढ़े सात तक प्राय: सभी पहुंच जाते हैं। जो नहीं पहुंच पाता उसकी तलाश शुरू हो जाती है। सघन तलाश। पूरी इनक्वायरी। कहां है? कब तक पहुचेंगे? उधर से बताने वाला बताता, 'ट्राफिक बहुत है। सिगनल पर हूं। अभी पहुंचता हूं। बस, दो मिनट।Ó अड्डे में जान आ जाती है और अगर उधर से जानकारी मिले, 'आज नहीं आ पाऊंगा काम बहुत है।Ó तो अड्डा उदास हो जाता है। लेकिन ऐसे मौके कम आते हैं जब अड्डा उदास हो। अड्डा अधिकतर तब उदास होता है जब उसका कोई अपना किसी परेशानी में फंसा दिखाई दे। परेशानी में फंसे आदमी का चेहरा बता देता है कि परेशानी छोटी है या बड़ी। अब जब मानुष जनम मिला है तो जब तक सांस तब तक फांस। इसलिए कोई न कोई, किसी न किसी परेशानी से जूझता दिखता है। किसी की परेशानी तात्कालिक होती है तो किसी की स्थायी। जैसे आज अगर अड्डा गुप्ताजी को देखे तो बिना कुछ जाने जान जाएगा कि गुप्ताजी तात्कालिक रूप से परेशान हैं। अड्डे पर साझा उदासी तैर जाती है। सबकी एक ही कोशिश कि संबंधित व्यक्ति का मसला किसी तरह सुलझे। लेकिन पहले अड्डे के बारे में जानना जरूरी है।

शहर के इस इलाके को टूरिस्ट क्लब एरिया कहते हैं। इस सघन बस्ती में भारतीयों की संख्या बहुत है। इसी बस्ती की एक बिल्डिंग में देवता भाई की लॉन्ड्री है। देवता भाई की परेशानी स्थायी है। उनकी पत्नी प्रतापगढ़ में है और उनके घर पर भाइयों ने भूत-प्रेत का धावा चढ़वा दिया है, जिससे वह हमेशा बीमार रहती है। उनका इलाज मुंबई में रहने वाले एक पंडित जी टेलीफोन से करते रहते हैं। देवता भाई को जब तब उस पंडित जी के साथ फोन पर लटके देखा जा सकता है। इन दिनों एक और बात हुई है। बल्दिया (नगर महापालिका) ने उनको एक नोटिस दे दिया है कि लॉन्ड्री तीस वर्ग मीटर से कम में नहीं चल सकती। इस नोटिस ने उनको ही नहीं सभी लॉन्ड्री वालों को मुसीबत में डाल दिया है। सब अपने-अपने अरबी स्पॉन्सर के पीछे-पीछे घूम रहे हैं कि वह कुछ करे। देवता भाई की लॉन्ड्री में कुल बाईस वर्ग मीटर जगह है। खैर, इसी लॉन्ड्री पर पिछले बीस वर्षों से अड्डेबाजी हो रही है।  अड्डेबाजी एक नशा है, जहां चार यार हों अड्डा गुलजार रहता है।

अड्डों की किस्मत होती है। जब जम जाते हैं तो जमते रहते हैं। जमते-जमते यह अड्डा भी जमा है। लोग आएं-जाएं लेकिन जब अड्डा एक बार जम जाता है तो फिर उसकी किस्मत में जमना कुछ ऐसे लिख जाता है जैसे कोई पत्थर पर अपना पता लिख दे। पहले मैं वहां बैठने लगा फिर शर्मा जी रुकने लगे और उसके बाद पुजारी जी, गुप्ता जी, मसूद भाई, काके, किशोर भाई, भट्ट जी, खुर्शीद भाई, यादव जी, गुप्ता जी, पीटर और वह अच्छा वाला लड़का। लेकिन जैसा कि होता है कुछ भी स्थायी नहीं है वैसा ही यहां इस अड्डे के साथ भी हुआ। काके पहले पागल हुआ फिर उसे पुलिस ने अस्पताल पहुंचाया और फिर वह भगवान को प्यारा हो गया। किशोर भाई की नौकरी छूट गई। उनका वीजा कैंसिल हुआ तो वह भारत वापस चले गए। पुजारी जी ने नाराज होकर आना बंद कर दिया। असल में लोग उनकी खानदानी गुंडई से बोर हो गए थे। पुजारी जी के भाई उत्तर प्रदेश की एक राजनैतिक पार्टी से चुनाव जीतकर दूसरी किसी पार्टी में शामिल हो गए और फिर मंत्री भी बन गए। पुजारी जी हरदम यही बताते थे कि भारत में उनके घर पर कितनी राइफल और कितनी पिस्टल हैं। अब किसको मतलब है कि उनके घर में क्या है और क्या होने वाला है। खुर्शीद भाई का ट्रांसफर शारजांह हो गया। पीटर रिटायर होकर गोवा अपने घर चले गए। भट्ट जी को सिंगापुर में यहां से अच्छे वेतन पर नौकरी मिल गई तो वह वहां चले गए। अच्छा वाला लड़का पासपोर्ट में अपनी उम्र बढवाकर जब यहां आया था तो सत्रह साल से बड़ा नहीं था। एक बड़ी कंपनी से मसाला लेकर छोटी दूकानों में देता था। आठ साल तक घर नहीं गया था। कसम खाए बैठा था, जब तक भारत में घर नहीं बनवा लेगा, कुछ खेती नहीं खरीद लेगा तब तक घर नहीं जाएगा। घर वाले पीछे पड़े हुए थे कि वह जल्दी आ कर शादी कर ले। लेकिन प_ा बात का पक्का निकला। घर बनवाने और कुछ खेती खरीदने के बाद जब गया तो मां-बाप ने आने ही नहीं दिया। अब वह आन्ध्र प्रदेश के टुकड़े हुए प्रदेश तेलंगाना के किसी जिले में परेशान है कि उसके यहां बच्चा नहीं हो रहा।

तो इस तरह लोग जाते गए और नए लोग अड्डे पर धीरे-धीरे आते गए। धीरे-धीरे मतलब, अड्डे पर नए जुडऩे वाले शुरुआत के पहले कुछ दिन दस-पंद्रह मिनट रुकते और समझने की कोशिश करते हैं कि उनकी कोई जगह उस अड्डे में बनेगी या नहीं। लेकिन अपनी जांच-पड़ताल के संक्षिप्त दौर में जब खुद बेचैन हो जाते कि अड्डे पर पहुंचे बिना मुक्ति नहीं है तो अड्डे का हिस्सा बन जाते। अड्डे पर जमने के लिए अच्छा किस्सागो और अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी है। अब जबकि बहुत लोग जा चुके हैं, कुछ नए लोग जुड़े हैं, इन्हीं में से एक हैं, मिश्रा जी। दरभंगा के जय ठाकुर, अशोक बालानी, गुप्ता जी और यादव जी तो खैर शुरू से इस अड्डे की पहचान हैं। इस अड्डे पर ओबामा हों, बगदादी हो, अडवाणी या फिर सोनिया। सलमान हो या आमिर। अब मोदी हों या राहुल सबका पोस्टमार्टम होता रहा है। राजनीति की दुनिया हो या फिल्म की। माफिया राज की बात करना हो या खेल-खिलाड़ी दुनिया के दांवपेंच। कबीर, सूर और तुलसी की दुनिया हो या रॉक स्टॉर से ले कर पॉप स्टार तक हर वर्ग के व्यक्ति की खाल यहां उधड़ जाती है। खाल उधेडऩे के लिए मसाले की तो कोई कमी है नहीं। चौबीसों घंटे चलने वाले टेलीविजन चैनल दिन भर इतना कुछ बता देते हैं कि हर आदमी उस विषय का विशेषज्ञ बन जाता है। एक शाम तो अड्डा इसी बात से लहूलुहान होता रहा कि स्कॉटलैंड, इंगलैंड के साथ रहेगा या अलग हो जाएगा। जब मतदान के बाद यह फैसला आया कि स्कॉटलैंड, इंगलैंड के साथ ही साथ रहेगा तो परेशानी इस बात की हो गई कि मनुष्य की गुलामी का अंत नहीं। यह भूल कर की किसी कि नौकरी करना भी गुलामी ही तो है...। दरअसल परदेस में अड्डे पर बतियानी एक तरह का सुकून है। अपना घर-द्वार जब याद आता है तो अड्डे पर बातें घूम-फिरकर अपने मसलों पर ही आ जाती हैं। अंतरर्राष्ट्रीय मसले तो बस परदे की तरह होते हैं अपने दुख-दर्द छुपाने के लिए।

अब गुप्ता जी को ही लीजिए। गुप्ता जी के छोटे बेटे का इकलौता बेटा अब चौथे साल साल में पहुंचा है। उसका बाप यानी गुप्ता जी का बेटा मुंबई में इलेक्ट्रीशियन का काम करता है। जब गुप्ता जी को पोते के पैदा होने की खबर मिली तो उन्होंने अड्डे पर मिठाई बांटते हुए कहा था, 'आ गया...आ गया...मेरे घर करोड़ों का लाल आ गया।Ó आज वही करोड़ों का लाल उनकी चिंता का सबब बन गया है। बित्ते भर का लड़का चोरी सीख गया है। जिस किसी के दुआरे जो सामान रखा पाता है, उठा लाता है। 'यह तो लाठी चलवाएगा गांव में।Ó 'बच्चा है, समझ जाएगा। कितना बड़ा है, तीन ही साल का न। बचपना है। समझाइए उसे।Ó यादव जी, गुप्ताजी को धीरज बंधाते हैं।

'नाहीं जी।Ó गुप्ताजी बताते हैं, 'ई अपने ननिहाल जाके बिगड़ गया है। आजकल गाता है, चार बोतल वोद्का, काम मेरा रोज का। बताइए ई गाना गाने लायक है? उसकी उमिर है यह गाना गाने की?Ó

'पीते आप हैं और और वह केवल पीने का गाना गा रहा है तो आपको प्रॉब्लम है।Ó जय ठाकुर ने चुटकी ली। 'यह मजाक का मौका नहीं है। आप गांव का हाल जानते नहीं जानते, आजकल कोई किसी का नहीं है। दया, माया किसी के पास नहीं है। कोई यह नहीं देखेगा कि बच्चा है। उठा के पटक देगा तो चीं बोल जाएगा।Ó

'कोई नहीं पटकेगा। बच्चा है यार गुप्ताजी।Ó राजस्थानी सिंधी अशोक बालानी ने बात को सहज बनाने की कोशिश की। सभी के अपने मशविरे हैं, किसी ने कहा, 'स्कूल भेजो तो सुधर जाएगा।Ó आज तो लगता है, अड्डे की बहस गुप्ता जी नाम ही होने वाली है। वह किसी को किसी और विषय पर जाने ही नहीं देना चाह रहे हैं। लोग कहीं और जाते हैं वह खींच कर अपने करोड़ों के लाल पर ले आते हैं। जब सारे समाधानों पर गुप्ता जी की नकारात्मक प्रतिक्रिया आई तो अंत में यही तय हुआ कि 'तीन साल का बच्चा है। कायदे से एक-दो तमाचे लग जाएं तो ठीक हो जाएगा। लेकिन उसे तमाचे बताकर लगाएं जाएं कि क्या सही है और क्या गलत। उसे बताएं कि जो वह कर रहा है वह गलत है।Ó 'अरे तमाचा भी मारा गया। मार पडऩे पर ऐसे हबस-हबस कर रोता है और फिर घर से बाहर निकलते ही दूसरे का सामान उठा लाता है।Ó अब तो अड्डे के पास भी गुप्ता की समस्या का कोई हल नहीं है। हां, चलते-चलते पता चला है कि अब बल्दिया इस लॉन्ड्री को एक्सटेंशन नहीं देगी। जगह कम है। पता नहीं दिलों में या जमीन पर।

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