दिल्ली का साहित्य जगत, फिर दिल्ली का ही क्यों पूरे देश के लेखक, साहित्य प्रेमी और संस्थाएं तीन साल बाद उनके शतायु होने की कामना के साथ उनकी 75वीं सालगिरह यानी रजत जयंती मनाएगा। अगर आदतन समुदाय, समाज, धारा और वाद जैसी उखमजी हावी न हुई तो देश ही नहीं विदेश भी इस अपनी तरह के अकेले साहित्यकार के कृतित्व और व्यक्तित्व के गुण गाएगा। मैं सश्रद्धा नमन करते हुए बात उनकी कर रहा हूं जो ‘मैं हिंदू हूं’ जैसी चुनौतीपूर्ण किताब के लेखक, नाटककार, उपन्यासकार, आलोचक, अनुवादक, संस्मरण, वृत्तांत एवं टिप्पणीकार के साथ एक सरल स्वभाव के मिलनसार व्यक्ति भी हैं।
असगर वजाहत नाम के इस महान व्यक्ति ने 72 साल पहले आज ही की तारीख यानी पांच जुलाई 1946 में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में जन्म लिया था। मानो यह संदेश लेकर आया हो कि देशवासियो अब सिर्फ तेरह महीने ही बाकी हैं देश को आजादी मिलने में। गोकि, बड़े होने पर विभाजन के दर्द से वे भी अन्य संजीदे लेखकों की तरह उनके भी दिल-दिमाग और कलम ने भी गहरे से महसूस किया।
दिल्ली स्थित जामिला मिलिया इस्लामिया के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके प्रो. असगर वजाहत की कृतियां भी अर्धशतक की ओर अग्रसर हैं। इनमें उपन्यासः सात आसमान, कैसी आगी लगाई, रात में जागने वाले, पहर-दोपहर, मन माटी, चहारदर, फिरंगी लौट आये, जिन्ना की आवाज, वीरगति, नाटक : जित लाहौर नईं वेख्या वो जन्म्या ई नईं, अकी, समिधा नुक्कड़ नाटक : सबसे सस्ता गोश्त कहानी संग्रह : मैं हिंदू हूँ, दिल्ली पहुँचना है, स्वीमिंग पूल, सब कहाँ कुछ यात्रा संस्मरण : चलते तो अच्छा था, इस पतझड़ में आना आलोचना : हिंदी-उर्दू की प्रगतिशील कविता वगैरह शामिल हैं।
कथा क्रम सम्मान, हिंदी अकादमी, इंदु शर्मा कथा सम्मान के साथ ही शलाका सम्मान जैसे अलंकरण से विभूषित और पिछले दिनों आई विशिष्ट कहानी संग्रह ‘डेमोक्रेसिया’ के लेखक असग़र वजाहत उन विरले कहानीकारों में गिने जाते हैं जिन्होंने पूरी तरह अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखते हुए भाषा और शिल्प के सार्थक प्रयोग किए हैं। उनकी कहानियाँ आश्वस्त करती हैं कि कहानी की प्रेरणा और आधारशिला सामाजिकता ही हो सकती है।
मौजूदा शासन के दो साल बीतने पर साहित्य अकादेमी के साहित्य मंच कार्यक्रम में अपने नए नाटक महाबली के पाठ के समय उन्होंने बताया था कि उनका यह नाटक सत्ता और कला के बीच के संबंधों पर आधारित है। नाटक का अंतिम भाग का पाठ उनके कथन को सार्थक कर रहा था। और कला में सत्ता के दखल के आईने के तौर पर था। इसमें मुगल सम्राट अकबर और तुलसीदास की बातचीत है। सपने में की गई यह बातचीत सत्ता और कला के संबंधों पर विस्तृत रूप से प्रकाश डालती है। तुलसीदास सम्राट अकबर को महाबली नाम से संबोधित करते हैं। यह नाम अब्दुल रहीम खानखाना द्वारा दिया गया है। सम्राट अकबर तुलसीदास को गोस्वामी नाम से संबोधित करते हैं और उनसे सीकरी न आने का कारण पूछते हैं। पूरा संवाद बहुत ही सरल, छोटे वाक्यों में और तीक्ष्ण व्यंग्य लिए हुए था। नाटक के अन्य पात्रों में तुलसीदास के शिष्य और टोडरमल और अब्दुल रहीम खानखाना प्रमुख हैं। जिन्हें आज की सत्ता में भी पहचाना जा सकता है।
उन्होंने बताया था कि यह साहसिक और सत्ता संस्कृति पर व्यंग्य प्रहार के इस नाटक की रचना प्रक्रिया में एक दशक का समय लगाया।
आज देश-विदेश में उनके चहेते पाठक और विचारक यही शुभकामना कर रहे होंगे कि वे शतायु हों और अनेक महत्वपूर्ण कृतियों की रचना करें।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    