नई दिल्ली। जीएम फाउंडेशन के प्रोडक्शन हाउस ग्लोबल मिडास कैपिटल ने "कानपुर फाइल्स" शीर्षक से फिल्म बनाने की घोषणा की है। शुक्रवार को दिल्ली प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस वार्ता में फिल्म के निर्माता इंदर प्रीत सिंह ने बताया कि उनकी फिल्म 1984 हुए सिखों के नरसंहार की वास्तविक घटनाओं पर आधारित होगी। फिल्म का पूरा नाम है 'कानपुर फाइल्स- 1984 सिखों का नरसंहार'।
इस डॉक्यू-ड्रामा फिल्म में 1984 के दौरान उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में सिखों के खिलाफ हुईं पूर्व नियोजित सामूहिक हत्याएं, लूटपाट और हिंसक घटनाओं को तथ्यों, सबूतों, गवाहों और पीड़ितों के साथ पर्दे पर उतारा जाएगा। इंदर प्रीत सिंह ने कहा कि यह घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण थी। लेकिन अफसोस इस बात का है कि घटना के इतने बरस बाद भी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई और ना ही पीड़ितों को इंसाफ मिला।
फिल्म 'कानपुर फाइल्स- 1984 सिखों का नरसंहार' की रिलीज डेट 31 अक्टूबर 2023 तय की गई है। इंदर प्रीत सिंह का कहना है कि उनकी यह फिल्म नरसंहार पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में मामले को उठाने, लोकतांत्रिक अधिकारों, नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के लिए लड़ने वालों को एक मजबूत आधार प्रदान करेगी।
उन्होंने बताया कि कानपुर में सिखों की हत्या में शामिल 127 लोगों को सजा दिलाने और पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए घटना के 35 वर्ष बाद 5 फरवरी 2019 को पहली बार अखिल भारतीय दंगा पीड़ित राहत समिति, 1984 के अध्यक्ष सरदार कुलदीप सिंह भोगल और सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रसून कुमार के प्रयासों से एसआईटी का गठन किया था, जिसने हत्याओं में शामिल लोगों की पहचान की और उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया। लेकिन नरसंहार में अपना सब कुछ खोने वाले अभी तक न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस प्रेस वार्ता में अखिल भारतीय दंगा पीड़ित राहत समिति, 1984 के अध्यक्ष सरदार कुलदीप सिंह भोगल और सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रसून कुमार भी मौजूद थे। इन्होंने भी 1984 में कानपुर में हुए सिखों के नरसंहार का जिक्र किया।
इससे पहले ग्लोबल मिडास कैपिटल (जीएमसी) ने 30 अक्टूबर 2022 को ग्लोबल मिडास फाउंडेशन (जीएमएफ) के सहयोग से निर्मित शॉर्ट डाक्यूमेंट्री रिलीज की थी, जिसका शीर्षक था "1984 - सिखों का नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध"। इस डॉक्यूमेंट्री में 1984 के दिल्ली दंगों के पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के इंटरव्यू शामिल हैं। जिनके माध्यम से दिल्ली, कानपुर और बोकारो में 31 अक्टूबर 1984 से 7 नवंबर 1984 के बीच हुई घटनाओं को समझने की कोशिश की गई है। इसमें कानपुर के 127 सिख नरसंहार के मामलों को कवर किया गया था।