साल 2014-2015 का आम बजट पेश करने से पहले मोदी सरकार और वित्त मंत्री अरुण जेटली को कई मोर्चों पर जूझना पड़ सकता है। भाजपा गठबंधन वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की सबसे बड़ी चिंता फिलहाल महंगाई से जूझना है। मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं मेक इन इंडिया और स्वच्छता अभियान के अलावा सबसे बड़ी प्राथमिकता राज्यों को ज्यादा धन देने के सुझाव पर भी काम करना होगा। अलग-अलग क्षेत्रों से मिल रही सिफारिशों पर वित्त मंत्रालय ने विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया है जिसका असर इस बार बजट के जोड़-घटाव पर पड़ना स्वाभाविक है। मोदी सरकार का दूसरा आम बजट 28 फरवरी को पेश किया जाना है।
अच्छी बात यह है कि इस वित्त वर्ष में कई सरकारी विभागों ने योजनागत खर्च की पूरी राशि का इस्तेमाल ही नहीं किया है जिस कारण सरकार के पास अतिरिक्त 80 हजार करोड़ रुपये बचे हुए हैं। यह राशि वित्त मंत्री को वित्तीय घाटा कम करने का लक्ष्य साधने में मदद कर सकती है। इस साल के लिए वित्तीय घाटे को जीडीपी के 4.1 प्रतिशत पर रोकने का लक्ष्य है। लेकिन राज्यों को ज्यादा धन देने पर केंद्र के पास अपने इस्तेमाल के लिए कम धन बचेगा और इसलिए सरकार कुछ कड़े कदम भी उठा सकती है। फिलहाल केंद्र की ओर से राज्यों को कुल कर राजस्व का 42 प्रतिशत दिया जाता है लेकिन नए साल के बजट के तहत यह हिस्सेदारी 50 प्रतिशत भी हो सकती है। वैसे भी मोटे तौर पर केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति अभी नाजुक है और 50 प्रतिशत कर राजस्व राज्यों को देने पर उसकी मुश्किल और बढ़ जाएगी। केंद्र सरकार राज्यों को तीन मदों- करों में हिस्सेदारी, गैर-योजनागत अनुदान तथा राज्यों की योजनाओं में मदद के लिए धन मुहैया कराती है।
सरकारी सूत्रों की मानें तो वित्त मंत्रालय बजट के तहत गैर-योजनागत अनुदान और राज्यों की योजनाओं में कुछ कटौती भी कर सकती है। इन दोनों मदों में मौजूदा वित्तीय वर्ष के दौरान राज्यों को लगभग 1.8 लाख करोड़ रुपये दिए गए हैं और यह कुल कर राजस्व का 14.5 प्रतिशत है। अब सरकार चाहती है कि राज्यों को एकमुश्त रकम मुहैया कराने का प्रावधान किया जाए। राज्य भी चाहते हैं कि केंद्र सरकार अपनी योजनाएं थोपने के बाद राज्यों के विकास के लिए जरूरी योजनाएं बनाने के लिए उन्हें धन मुहैया कराए।
वित्तीय घाटा कम करने के लिए वित्त मंत्री ने 31 मार्च तक एक से ज्यादा सरकारी कंपनी में सरकारी हिस्सेदारी बेचने का भी संकेत दिया है। इसके तहत सरकार ने विनिवेश प्रक्रिया को प्राथमिकता पर रखा है और सरकारी हिस्सेदारी बेचकर 43,425 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। मौजूदा वित्त वर्ष में अभी तक विनिवेश से 1,715 करोड़ रुपये हासिल किए गए हैं। विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि सरकार पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन और रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉर्प के शेयर बेचकर करीब 3,000 करोड़ रुपये जुटाएगी।
महंगाई के मोर्चे पर आम जनता को मनमोहन सरकार की तुलना में मोदी सरकार से बहुत कम ही राहत मिली है। मोदी सरकार के दौर में कीमतें भले ही थोड़ी कम हुई हो लेकिन इसका प्रभाव बजट पर पड़ रहा है। सीमित आय वाले लोगों की बढ़ती मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए ही जेटली को कुछ राहत भरी घोषणाएं करनी होंगी।