कारोबारियों का कहना है कि वे तीन माह पहले ही त्योहारों में बिकने वाले माल को चीन से मंगा चुके हैं और अब उसे वापस भी नहीं कर सकते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, सिर्फ दिल्ली में दशहरा व दीपावली के दौरान सजावट, गिफ्ट व पटाखे जैसे आइटम की 1,000 करोड़ रुपये की बिक्री होती है।
सदर बाजार के थोक कारोबारी कहते हैं, जो माहौल चल रहा है उसमें अगर 20 फीसदी लोगों ने भी चीनी आइटम का बहिष्कार कर दिया तो व्यापारियों को बड़ा नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि चीनी आइटम को न तो कारोबारी वापस कर सकते हैं और न ही उसे अगले साल बेच सकते हैं। स्माल स्केल कॉस्मेटिक मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन के पदाधिकाारी ने बताया कि बाजार में चीनी सामान के बहिष्कार का सिलसिला शुरू हो गया है। उनके जैसे मैन्यूफैक्चरर्स व व्यापारियों ने भी अब उपभोक्ताओं के सामने चीनी माल का विकल्प रखना कम कर दिया है।
कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महामंत्री, प्रवीण खंडेलवाल कहते हैं कि उड़ी हमले व सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राष्ट्रवाद की जो भावना भड़की है, उससे चीनी आइटम की बिक्री निश्चित रूप से प्रभावित होने जा रही है और कारोबारी भी अब अगले साल से चीनी आइटम की बिक्री और आयात के पक्ष में नहीं है। लेकिन पहले से माल मंगाने वाले कारोबारियों को घाटा उठाना पड़ेगा।
सदर बाजार के पटाखा कारोबारियों ने बताया कि वे भी देश के साथ हैं और चीनी पटाखे या कोई भी चीनी माल बेचने के पक्ष में नहीं है, लेकिन पहले से जो माल मंगा लिया गया है उसका क्या किया जाए। गौर हो कि भारतीय बाजार में गैर जरूरी चीनी सामान के बढ़ते दबदबे को सरकार ने गंभीरता से लिया है। द्विपक्षीय व्यापार नियमों से इतर घरेलू उत्पादों की बिक्री को प्रभावित करने वाली वस्तुओं का आयात रोकने के कदम सरकार ने उठाने शुरू कर दिए हैं। ताजा कदम विदेशी पटाखों के आयात पर रोक लगाने को लेकर उठाया गया है। बीते माह ही सरकार ने अधिसूचना के तहत विदेशी पटाखों की बाजार में बिक्री को अवैध करार दिया है।
भारतीय बाजार में चीनी उत्पादों की बढ़ती घुसपैठ को लेकर कई मंचों से आवाज उठायी जा रही है। चीनी पटाखों से लेकर खिलौनों और बिजली के सामान से बाजार अब तक पटे रहे थे। यही नहीं चीन की तरफ से स्टील, केमिकल उत्पादों की डंपिंग को लेकर भी घरेलू उद्योग जगत सवाल खड़े करता रहा है। लेकिन केंद्र सरकार कुछ क्षेत्रों में चीनी कंपनियों को अगर बढ़ावा दे रही है तो पिछले कुछ महीनों से गैर जरूरी आयात पर सरकार ने शिकंजा कसना भी शुरू किया है।दुनिया के बदले आर्थिक हालात में अब चीन के लिए वैश्विक कारोबार में दबदबा कायम रखना मुश्किल होता जा रहा है। अभी तक चीन आक्रामक निर्यात नीति अपनाकर पूरी दुनिया के बाजारों पर इसलिए कब्जा कर सका क्योंकि लागत के लिहाज से वह बाकी सभी देशों की तुलना में काफी फायदे की स्थिति में था। सस्ता श्रम, तेज औद्योगिक विकास और चीन की सरकार की नीतियां निर्यात के पक्ष में रहीं। अपनी मुद्रा को महंगा रखना भी उसके निर्यात के लिए फायदेमंद रहा। लेकिन अब स्थितियां बदल रही है। चीन में श्रमिक लागत तेजी से बढ़ी है। अंतरराष्ट्रीय दबावों के चलते उसे अपनी मुद्रा का भी अवमूल्यन करना पड़ा। इसकी वजह से उसके कच्चे माल की लागत भी बढ़ी है।
वाणिय व उद्योग मंत्रलय के अधिकारी बताते हैं कि इसके चलते चीन के लिए कीमतों को लेकर प्रतिस्पर्धी बने रहना मुश्किल हो गया है। यहां तक कि चीन की उत्पादन लागत कई उत्पादों के मामले में भारत से भी अधिक हो गई है। यही वजह है कि चीन की कई कंपनियों ने अब भारत का रुख करना शुरू कर दिया है।