केंद्रीय कृषि एंव किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कम ओडेप सामग्री युक्त खेसारी दाल की तीन उन्नत किस्मों को विकसित किया है। रतन, प्रतीक और महातेओरा नाम की इन किस्मों को खेसारी के परंपरागत उगाए जाने वाले क्षेत्रों में सामान्य खेती के लिए जारी किया गया है। इन किस्मों में ओडेप की मात्रा 0.07 से 0.1 प्रतिशत की सीमा में है जो कि मानवीय उपयोग के लिए सुरक्षित है। इस बीच, खाद्य सुरक्षा नियामक एफएसएसएआई ने खेसारी दाल की इन उन्नत किस्मों को मंजूरी देने के लिए सार्वजनिक परामर्श करने हेतु स्वास्थ्य मंत्रालय की मंजूरी मांगी है। आईसीएमआर ने एफएसएसएआई से सिफारिश की थी कि खेसारी दाल की तीन किस्म उपयोग के लिहाज से सुरक्षित हैं इसलिए पाबंदी हटाई जाए।
55 साल तक खेसारी दाल पर प्रतिबंध रहा है क्योंकि माना जाता था कि यह तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाती है और इसे खाने से लकवा जैसी बीमारियां हो जाती हैं। इस दाल में विषाक्त रसायन बीटा एन ओक्सालिल एल बीटा डाइएमीनोपिओनिक अम्ल या ओडेप या ओडीएपी के कारण सन 1961 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। हालांकि, देश के कई इलाकों में यह दाल उगाई जाती रही और लोग इसे खाते भी हैं। लेकिन अब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं राज्य कृषि विश्वविद्यालय द्वारा रतन, प्रतीक और महातेओरा नाम की खेसारी दाल की तीन उन्नत किस्में विकसित की गई हैं।
राधा मोहन सिंह का कहना है कि भारत में खेसारी दाल एक महत्वपूर्ण रबी फसल है जो मुख्यत छत्तीसगढ, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में लगभग 4 - 5 लाख हेक्टेअर क्षेत्रफल में उगाई जाती है। इसका वार्षिक उत्पादन 2.8 से 3.5 लाख टन है और औसत उपज 650 से 700 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर है। 1980 के दशक तक खेसारी लगभग 10 लाख हेक्टेअर में उगाई जाती थी। खेसारी की फसल दाल के साथ-साथ पुश्ओं के चारे के लिए भी उपयुक्त है। सहनशीन प्रकृति के कारण यह फसल नमी के कमी वाले क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त है।
मैंने 15 साल तक खाई खेसारी दाल: राम विलास पासवान
खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान भी मानव उपभोग के लिए सुरक्षित पाए जाने पर खेसारी दाल से प्रतिबंध उठाने के पक्ष में हैं। उनका कहना है कि खेसारी दाल की खेती की अनुमति दिए जाने से दालों की किल्लत कम करने में मदद मिलेगी। पासवान ने कहा, मैंने समाचार पत्रों में पढ़ा है कि खेसारी दाल की तीन नई किस्में विकसित की गई हैं। अगर ये किस्में इंसानों की खपत के लिए उपयुक्त हैं तो मेरा मानना है कि इनकी खेती की अनुमति दी जानी चाहिए। इससे दलहनों के उत्पादन और आयात करने पर दवाब को कम करने में मदद मिलेगी। पासवान ने कहा कि उन्होंने स्वयं 15 वर्ष खेसारी दाल खाई है और उन्हें इससे कभी भी स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या नहीं हुई।