बिजनेस करना है तो रणबीर सिंह और अनुष्का शर्मा की फिल्म बैंड बाजा बाराती से प्रेरणा लीजिए। भारत लालफीताशाही में कैसे जकड़ा हुआ है, इसकी बानगी पिस्टल और रेस्तरां के लाइसेंस के गणित से समझना होगा। युवाओं को नौकरी देनी है तो चीनी मॉडल के अलावा और कोई रास्ता नहीं। यही साल 2019-20 के आर्थिक सर्वे का लब्बोलुबाब है।
दशक के सबसे कठिन आर्थिक परिस्थितियों का सामना कर रही, भारतीय अर्थव्यवस्था को उबरने के लिए अब लीक से हटकर सोचने का समय है। इसी सोच के जरिए स्लोडाउन के भंवर में फंसी अर्थव्यवस्था को बाहर निकाला जा सकता है। आर्थिक सर्वे के अनुसार चालू वित्त वर्ष में जीडीपी ग्रोथ रेट 11 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। इस साल यह 5 फीसदी रहेगी। लेकिन अर्थव्यवस्था में कई सूचकांक सुधार की ओर संकेत कर रहे हैं। ऐसे में सुस्त रफ्तार का दौर नए वित्त वर्ष 2020-21 में खत्म होगा और जीडीपी ग्रोथ रेट 6.0-6.5 फीसदी रहने का अनुमान है। शुक्रवार को पेश 2019-20 के आर्थिक सर्वे में इन बातों के जरिए 5 लाख करोड़ डॉलर के लक्ष्य पाने का रोडमैप पेश करने का साथ आज के चुनौतियों को बताया गया है।
नौकरी के लिए चीन का मॉडल बेस्ट
सर्वे में कहा गया है कि अगर हम चीन के मॉडल को अपनाते हैं, तो अगले पांच साल में 4 करोड़ नौकरियों के अवसर पैदा हो सकते हैं। और 2030 तक 8 करोड़ नौकरियां के अवसर पैदा होंगे। इसके लिए टेक्सटाइल, फुटवियर, खिलौने जैसे कम स्किल वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। सर्वे कहता है कि मोदी सरकार को मेक इन इंडिया के तहत “दुनिया के लिए भारत में बनाओं” रणनीति पर काम करना होगा।
लालफीताशाही नुकसानदेह
सर्वे कहता है कि भारत ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में 79 वें पायदान पर पहुंच गया है। यह बड़ी उपलब्धि है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। वह सरकार को इशारा करता है कि हमें लालफीताशाही के चंगुल से निकलना होगा। सर्वे कहता है कि भारत में पिस्टल के लाइसेंस के लिए तो 19 दस्तावेज की जरूरत पड़ती है लेकिन रेस्तरां खोलना है तो 45 दस्तावेज आप जुटाइए। इस सोच को बदलने की जरूरत है। साथ ही नए बिजनेस के लिए बैंड बाजा बाराती फिल्म में जिस तरह से आंत्रेप्रेन्योरशिप दिखाया गया है। वैसी सोच बनानी होगी। अगर ऐसा होता है तो बड़े शहरों पर निर्भरता कम होगी।
खर्च बढ़ाने के लिए राजकोषीय लक्ष्य में ढील की वकालत
सर्वे ने इस बात की जरूरत को समझा है कि मौजूदा समय में रिवाइवल के लिए सरकार को राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों में ढील देनी चाहिए। यानी सरकार को अपने खर्च बढ़ाने चाहिए। भले ही इसकी वजह से घाटा बढ़ जाय। सरकार ने साल 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटे को 3.3 फीसदी को स्तर पर रखने का लक्ष्य रखा था। लेकिन घटती कमाई की वजह से यह 3.8 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया है। सर्वे ने फूड सब्सिडी बिल में भी कटौती की बात कही है। अभी 1.84 लाख करोड़ रुपये फूड सब्सिडी बिल है
थॉलीनामिक्स समझिए
सर्वे में कहा गया है कि अब औद्योगिक श्रमिकों की दैनिक आमदनी की तुलना में भोजन की थाली और सस्ती हो गई है। उसके अनुसार 2006-2007 की तुलना में 2019-20 में शाहाकारी भोजन की थाली 29 फीसदी और मांसाहारी भोजन की थाली 18 फीसदी सस्ती हुई हैं। संपूर्ण भारत के साथ-साथ इसके चारों क्षेत्रों- उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में यह पाया गया कि शाकाहारी भोजन की थाली की कीमतों में 2015-16 से काफी कमी आई है. हालांकि, 2019 में इनकी कीमतों में तेजी रही. ऐसा सब्जियों और दालों की कीमतों में पिछले साल की तेजी के रूझान के मुकाबले गिरावट का रूख रहने की वजह से हुआ है। इसके कारण 5 सदस्यों वाले एक औसत परिवार को जिसमें प्रति व्यक्ति रोजना न्यूनतम दो पौष्टिक थालियों से भोजन करने के लिए प्रतिवर्ष औसतन 10887 रूपये जबकि मांसाहारी भोजन वाली थाली के लिए प्रत्येक परिवार को प्रतिवर्ष औसतन 11787 रूपये का लाभ हुआ है।
खेती डिमांड आधारित नहीं
सर्वे में कहा गया है कि देश के किसान मांग के आधार पर खेती नहीं कर रहे हैं। बल्कि उनके खेती करने का पैटर्न सरकारी की खरीद नीति और सब्सिडी पर ज्यादा आधारित है। इसकी वजह से डिमांड और सप्लाई में डिसकनेक्शन हो गया है। इसकी वजह से निजी क्षेत्र प्रोक्योरमेंट, भंडारण और प्रोसेसिंग में निवेश नहीं कर रहा है। इसीलिए सर्वे ने कृषि ग्रोथ अगले वित्त वर्ष में 2.8 फीसदी रहने की आशंका जताई है। जबकि इस साल यह 2.9 फीसदी रहने का अनुमान जताया है।
पांच लाख करोड़ डॉलर का मंत्र
सर्वे में कहा गया है कि 2024-25 तक 5,लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में 1,400 अरब डॉलर का निवेश करने की जरूरत होगी, जिससे देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि की राह में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी अड़चन नहीं बन पाएगी। इसके लिए सरकार को ऐसी नीतियों पर जोर देना होगा जोर कारोबार को प्रमोट करने वाली हों। जिससे वेल्थ क्रिएशन हो।