रिजर्व बैंक और सरकार में कई दिनों से जारी तनातनी के बीच सोमवार को केंद्रीय बैंक के निदेशक मंडल की मैराथन बैठक हुई। समझा जाता है कि इस बैठक में कई मुद्दों मसलन केंद्रीय बैंक को कितनी पूंजी की जरूरत है, लघु एवं मझोले उद्यमों को कर्ज देने और कमजोर बैंको के नियमों पर चर्चा हुई।
नौ घंटे तक चली मैराथन बैठक में कई बिंदुओं पर सहमति बनी। अब लघु व मझोले उद्यमों के लिए कर्ज के नियम आसान बनाए जाएंगे। लघु व मझोले उद्योगों को 25 करोड़ तक का कर्ज जारी किया जा सकेगा। रिजर्व बैंक और सरकार की एक संयुक्त कमेटी गठित की जाएगी, जो रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष की पूंजी सरकार को जारी करने के रास्ते तैयार करेगी।
रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल और केन्द्रीय बैंक के सभी डिप्टी गवर्नरों के बोर्ड में सरकार द्वारा मनोनीत निदेशकों, आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग और वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार तथा स्वतंत्र निदेशक एस गुरुमूर्ति के साथ विवादित मुद्दों पर कोई बीच का रास्ता निकालने के लिये आमने-सामने बातचीत हुई।
बैठक के बारे में हालांकि, आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है। सरकार और गुरुमूर्ति केंद्रीय बैंक पर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को अधिक नकदी उपलब्ध कराने, छोटे कारोबारियों के लिए कर्ज नियमों को उदार करने, कमजोर बैंकों के लिए नियमों में ढील देने और रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष में से कुछ राशि अर्थव्यवस्था को प्रोत्सोहन देने के लिए उपलबध कराने को लेकर दबाव बनाते रहे।
इस तरह के संकेत हैं कि रिजर्व बैंक सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) के लिए कर्ज के नियमों को सरल करने को तैयार है, लेकिन एनबीएफसी को नकदी के मुद्दे पर गतिरोध है। केंद्रीय बैंक बांडों की मुक्त बाजार के जरिए खरीद मामले में नकदी डालने को तैयार दिखता है, लेकिन वह बैंकों के लिये अपने पूंजी स्टॉक के नियमों में ढील देने के पक्ष में नहीं लगता है।
9.69 लाख करोड़ रुपये के आरक्षित कोष पर भी चर्चा
बैठक में संभवत: रिजर्व बैंक के पास उपलब्ध भारी भरकम 9.69 लाख करोड़ रुपये के आरक्षित कोष पर भी चर्चा हुई। गुरुमूर्ति और वित्त मंत्रालय चाहते हैं कि केन्द्रीय बैंक के पास उपलब्ध आरक्षित कोष की सीमा को वैश्विक स्तर के अनुरूप कम किया जाना चाहिये।
पीसीए की रूपरेखा और एमएसएमई क्षेत्र को ऋण देने के प्रावधानों में ढील पर सहमति
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सूत्रों ने कहा कि सरकार और रिजर्व बैंकोंं में त्वरित सुधारात्मक उपायों (पीसीए) की रूपरेखा तथा एमएसएमई क्षेत्र को ऋण देने के प्रावधानों में ढील को लेकर आपसी सहमति से किसी समाधान पर पहुंचने के पक्ष में हैं।
सूत्रों के अनुसार, यदि इस बैठक में सहमति नहीं भी बन पायी तो अगले कुछ सप्ताह में त्वरित सुधारात्मक कदम को लेकर समाधान हो जायेगा। इसके तहत कुछ बैंक चालू वित्त वर्ष के अंत तक इस रूपरेखा ढांचे के दायरे से बाहर आ सकते हैं। फिलहाल 21 सार्वजनिक बैंकों में से 11 बैंक पीसीए के दायरे में हैं, जिससे उन पर नये कर्ज देने को लेकर कड़ी शर्तें लागू हैं।
इन बैंकों में इलाहाबाद बैंक, यूनाइटेड बैंक आफ इंडिया, कॉरपोरेशन बैंक, आईडीबीआई बैंक, यूको बैंक, बैंक आफ इंडिया, सैंट्रल बैंक आफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, ओरियंटल बैंक आफ कॉमर्स, देना बैंक और बैंक आफ महाराष्ट्र शामिल हैं।
सेक्शन-7 से बढ़ा था गतिरोध
केंद्रीय बैंक के साथ बढ़ते गतिरोध के बीच वित्त मंत्रालय ने रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा सात के तहत विचार-विमर्श शुरू किया था। इस धारा का इससे पहले कभी इस्तेमाल नहीं हुआ है। इसके तहत सरकार को रिजर्व बैंक गवर्नर को निर्देश जारी करने का अधिकार होता है।
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने पिछले महीने केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का मुद्दा उठाया था। वहीं एस गुरुमूर्ति ने पिछले सप्ताह कहा था कि केंद्र और केंद्रीय बैंक के बीच गतिरोध को किसी भी तरीके से अच्छी स्थिति नहीं कहा जा सकता।
आरबीआई गवर्नर पर इस्तीफे का बनाया गया दबाव
पिछले महीने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने कहा था कि रिजर्व बैंक गवर्नर सरकार के हिसाब से काम करें अन्यथा इस्तीफा दे दें।
वहीं बैठक से पहले पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि यदि बोर्ड आरक्षित भंडार में से कुछ राशि देने या नियमों में ढील देने का निर्देश देता है तो गवर्नर उर्जित पटेल को इस्तीफा दे देना चाहिए।