इसकी पहल कांग्रेस नीत यूपीए-1 सरकार ने की थी। इसकी बात सबसे पहले 2007-08 का बजट पेश करते हुए तत्कालीन पी चिदंबरम ने उठाई थी। उन्होंने इसे लागू करने के लिए अप्रैल 2010 का समय तय किया था। लेकिन कई स्तर पर विरोध और राज्यों की असहमति के कारण टलता रहा।
भारत के एक राज्य में बनने वाला सामान जब देश के किसी दूसरे हिस्से में पहुंचता है तो उस पर कई बार टैक्स लग जाता है। इसमें जीएसटी से सुधार लाया जा सकेगा। जीएसटी के तहत देश में उत्पादन और खपत की कड़ी में अंतिम छोर पर कर लगाया जाएगा।
जीएसटी प्रणाली के लागू होने के बाद चुंगी, सेंट्रल सेल्स टैक्स (सीएसटी), राज्य स्तर के सेल्स टैक्स या वैट, एंट्री टैक्स, लॉटरी टैक्स, स्टैंप ड्यूटी, टेलीकॉम लाइसेंस फी, टर्नओवर टैक्स, बिजली के इस्तेमाल या बिक्री पर लगने वाले टैक्स, सामान के आवागमन पर लगने वाले टैक्स खत्म कर दिए जाएंगे। अभी भारत के अधिक विकसित इलाकों में, जहां उद्योग हैं, सामान के बनने के तुरंत बाद ही टैक्स लगा दिया जाता है। जीएसटी लागू होने पर वे राज्य सरकारें कर वसूलेंगी, जहां उत्पाद की खपत होती है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे कम विकसित राज्यों को अधिक लाभ मिलेगा, क्योंकि वहां उपभोक्ताओं की बड़ी संख्या है।
अभी देश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर से कुल 14.6 लाख करोड़ रुपये जमा होते हैं, जिसका 34 फीसद अप्रत्यक्ष कर से आता है। इसमें आबकारी की हिस्सेदारी 2.8 लाख करोड़ रुपये, जबकि सेवा कर की 2.1 लाख करोड़ रुपये है। माना जा रहा है कि जीएसटी लागू होने से अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में बदलाव आएगा।
जीएसटी के दायरे में पांच तरह के कर नहीं होंगे- पेट्रोलियम उत्पाद, पंचायत/नगरपालिका/नगर निगम/ जिला परिषद आदि द्वारा लगाया जानेवाला मनोरंजन कर, शराब पीने पर कर, स्टैंप ड्यूटी, कस्टम्स ड्यूटी और बिजली की खपत और बिक्री पर कर।
जीएसटी लागू होने से महंगाई पर कोई खास असर नहीं होगा। सामानों (कन्जूयमर प्राइस इंडेक्स में शामिल 70-75 फीसद) पर प्रभावी कर की दर कम होगी। 35 से 40 फीसद तक सामान (ज्यादातर कृषि उत्पाद) टैक्स के दायरे में नहीं आएंगे। सेवा आधारित क्षेत्रों में अभी कन्जूयमर प्राइस इंडेक्स बास्केट का हिस्सा 25 से 30 फीसद है। इनमें हाउसिंग, ट्रांसपोर्ट और संचार क्षेत्र की बड़ी भागीदारी है। सीपीआई बास्केट में आनेवाले 12 फीसद सेवाओं पर सर्विस टैक्स लागू नहीं हैं और जीएसटी के बाद भी इनके छूट के दायरे में ही रहने की उम्मीद है। उपभोक्ताओं से जुड़े सवाओं पर टैक्स वृद्धि का सीधा नहीं होगा।
जीएसटी से उपभोक्ताओं को कई क्षेत्रों में लाभ की बात कही जा रही है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में फिलहाल 30 से 47 फीसद टैक्स लगता है। जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स 20 से 22 फीसद तक आ जाने की उम्मीद जताई जा रही है। उपभोक्ता वस्तुओं पर सात से 30 फीसद टैक्स लगता है। उन कंपनियों को लाभ जरूर होगा, जिन्हें पहले टैक्स में छूट नहीं मिली है। सीमेंट पर अभी 27 से 32 फीसद टैक्स लगता है। टैक्स की दर घटकर 18 से 20 फीसद होगी। मनोरंजन के क्षेत्र में भी इसी तरह का असर होने की संभावना है। दूरसंचार के क्षेत्र में अभी 14 फीसद कर लगता है। जीएसटी से टैक्स रेट बढ़कर 18 फीसद तक पहुंच सकता है। इससे पोस्टपेड ग्राहकों पर भार बढ़ने की संभावना है।
जीएसटी लागू होने से आर्थिक विकास में 0.9 से लेकर 1.7 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। निर्यात में 3.2 से 6.3 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी। आयात में 2.4 से 4.7 फीसदी तक की बढ़ोतरी होगी। इस मॉडल के तहत टैक्स भुगतान में दोहराव को खत्म किए जाने की उम्मीद जताई जा रही है। हर कर दाता को पैन से जुड़ा हुआ पहचान नंबर जारी किया जाएगा, जिसमें 13 या 15 अंक होंगे। उसके जरिए कर दाता को केंद्रीय और स्टेट जीएसटी अधिकारियों के पास तय अवधि में रिटर्न दाखिल करते रहना होगा। आईडी नंबर और पैन के आपस में जुड़े होने से टैक्स चोरी रोकने में मदद मिलेगी और पारदर्शिता बढ़ेगी। हर ट्रांजैक्शन में सेंट्रल जीएसटी और स्टेट जीएसटी के हिस्से होंगे और वे एक ही कीमत पर लगेंगे। जीएसटी के दायरे में आने के लिए सालाना टर्नओवर कम-से-कम 10 लाख रुपये होगा। यह टर्नओवर गुड्स और सविर्सेज को मिलाकर होगा और पूरे देश में लागू होगा।
राज्यों पर असर दिखेगा। जीएसटी उपभोग आधारित टैक्स है, इसलिए जिस राज्य में गुड्स और सविर्सेज की खपत जितनी अधिक होगी, उसका कर राजस्व उतना ही ज्यादा होगा। ऐसे में जो राज्य पिछड़े हैं, जीएसटी लागू होने के बाद उनका राजस्व घटेगा। केंद्र सरकार ने कहा है कि किसी राज्य को जीएसटी लागू होने के बाद जो घाटा होगा, उसे वह पूरा करेगी। जीएसटी टैक्स वसूली में मदद करेगा और देश में कर चोरी को कम करेगा। यह पूरा तंत्र इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर तैयार किया जा रहा है इसलिए हर भुगतान का एक डिज़िटल निशान होगा। इसके तहत टैक्स संबंधित 75 लाख मामलों को ऑनलाइन लाया जा सकेगा।