सरकार आम जनता के बजाय कंपनियों और कारोबारियों के लिए ज्यादा काम कर रही है। यही वजह है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में भारत की रैकिंग इस साल भी 14 पायदान सुधरकर 64वें स्थान पर आ गई लेकिन आर्थिक सक्रियता, स्वास्थ्य और जीवन स्तर के मामले में महिल-पुरुषों के बीच असमानता और बढ़ गया। आज जारी वार्षिक सर्वे के अनुसार जेंडर गैप में भारत की रैंकिंग चार पायदान गिरकर 112वें पर पहुंच गई। दो क्षेत्रों में तो भारत की रैंकिंग गिरकर बॉटम-5 में पहुंच गई है।
पाक को छोड़ सभी पड़ोसी भारत से बेहतर
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की जेंडर गैप रिपोर्ट के अनुसार आइसलैंड सबसे अधिक जेंडर न्यूट्रल देश का रुतबा बरकरार रखने में कामयाब रहा। जबकि भारत की रैंकिंग पिछले साल के 108वें स्थान से चार पायदान गिर गई। भारत इस मामले में अपने पड़ोसी देशों से बहुत पीछे है। रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल रैंकिंग मंे चीन 106वें, श्रीलंका 102वें, ब्राजील 92वें, इंडोनेशिया 85वें और बांग्लादेश 50वें स्थान पर रहा। इस सूची में यमन सबसे नीचे 153वें, इराक 152वें और पाकिस्तान 151वें स्थान पर रहा।
अंतर पाटने में लगेंगे 99.5 साल
डब्ल्यूईएफ ने कहा कि स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक में 2019 में मौजूद विषमता को देखते हुए जेंडर गैप को खत्म करने में 99.5 साल लगेंगे जबकि पिछले साल पिछले साल की स्थिति के अनुसार 108 साल लगने वाले थे। इसका अर्थ है कि इस अंतर को पाटने में किसी व्यक्ति के जीवनकाल से भी ज्यादा समय लगेगा।
दो मामलों में भारत की रैंकिंग बॉटम-5 में
2006 में पहली बार जेंडर गैप पर डब्ल्यूईएफ की पहली रिपोर्ट के समय भारत 98वें स्थान पर था। तब से चार में से तीन मानकों पर भारत की रैंकिंग गिरती गई। राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में भारत की स्थिति सुधरकर 18वें स्थान पर पहुंच गई। लेकिन स्वास्थ्य और जीवन स्तर में रैंकिंग गिरकर 150वें, आर्थिक भागीदारी और अवसरों में 149वें और शैक्षिक सुविधाओं में 112वें स्थान पर रह गई।