माइक्रोफाइनेंस इंडस्ट्री देश के ग्रामीण इलाकों में जहां बैंकों की पहुंच अब तक नहीं हुई है अथवा कम है, वहां लोगों को वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराती है। इसका अधिकांश हिस्सा कर्ज वितरण का है। ग्रामीण इलाकों में छोटे कर्ज की मांग को देखते हुए इन कंपनियों की पहुंच काफी अधिक है। इन कंपनियों की तरफ से कर्ज वितरण और वसूली दोनों काम पूरी तरह नकदी पर आधारित हैं।
नोट बंद होने के बाद माइक्रोफाइनेंस उद्योग की परेशानी बढ़ती जा रही हैं। माइक्रोफाइनेंस इंडस्ट्री का सालाना कारोबार करीब 65000 करोड़ रुपये का है। इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का मानना है कि इसमें से 20000 करोड़ रुपये का कारोबार प्रभावित हो चुका है। जैसे-जैसे नोटबंदी का असर बढ़ेगा इंडस्ट्री को लगने वाली चोट भी और गहरी होती जाएगी।
उद्योग सूत्रों के मुताबिक नोटबंदी के बाद नवंबर के आखिरी सप्ताह तक उद्योग को करीब 4500 करोड़ रुपये की वसूली करनी थी। लेकिन इसमें से तीन हजार करोड़ रुपये से कुछ अधिक राशि का कर्ज ही ये कंपनियां इस अवधि में वसूल कर पायी हैं।
इसी तरह इस दौरान कंपनियों को करीब 4800 करोड़ रुपये का कर्ज वितरित करना था। लेकिन नकदी की कमी के चलते कंपनियों की तरफ से मात्र 1680 करोड़ रुपये का ही वितरण किया जा सका है। जहां तक राज्यों की स्थिति है कर्ज वसूली के मामले में बड़े राज्यों में सबसे खराब हालत उत्तर प्रदेश की है।
इस दौरान प्रदेश में कर्ज वसूली में जितनी राशि मिलनी थी, उसमें 55 फीसद की कमी दर्ज की गई है। जबकि महाराष्ट्र में यह गिरावट 26 फीसद और मध्य प्रदेश में 25 फीसद की रही है। कर्ज वितरण के मामले में उत्तर प्रदेश के साथ साथ मध्य प्रदेश की हालत भी खराब है। उत्तर प्रदेश में कर्ज वितरण में 90 फीसद तो मध्य प्रदेश में 81 फीसद की कमी आई है। हाल में माइक्रोफाइनेंस के क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में से काफी कम कंपनियां ऐसी हैं जिनकी कर्ज वसूली में गिरावट दस फीसद से कम है। जबकि बीस से अधिक कंपनियां ऐसी हैं जिनके वितरण में 75 फीसद की कमी आई है। सूत्रों का मानना है कि नोटबंदी का असर ग्रामीण क्षेत्रों में धीरे-धीरे पहुंच रहा है। दिसंबर के मध्य तक माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के प्रदर्शन में और गिरावट होने की आशंका है।