आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में एलजी पॉलीमर्स के प्लांट में गैस लीकेज के बाद भोपाल गैस त्रासदी की दुखद यादें ताजा हो गईं। भोपाल गैस त्रासदी के बाद औद्योगिक हादसों के शिकार लोगों को पर्याप्त मुआवजा और राहत देने के लिए कई कानूनों में बदलाव किया गया। कहा गया कि बेहद कड़े कानूनों से दोषी कंपनियों के संचालक आसानी से बच नहीं पाएंगे। लेकिन इन कानूनों में कुछ प्रावधानों पर सवाल भी उठाए गए और कहा गया कि इससे वास्तविक दोषी बच सकते हैं।
कंपनी निदेशकों को जिम्मेदार माना गया
औद्योगिक हादसों के लिए दोषी लोगों को कानूनी तौर पर जिम्मेदार बनाने के लिए एन्वायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट (ईपीए) 1986 लागू किया गया। इस कानून में मुख्य तौर पर कंपनी के निदेशकों को जिम्मेदार माना गया क्योंकि उन्हें कंपनी के प्लांटों का वास्तविक नियंत्रणकर्ता माना गया। प्लांट में सुरक्षा की सीधी जिम्मेदारी इन्ही पर डाली गई।
प्लांट के बाहर के पीड़ितों को भी अधिकार
एक और बदलाव किया गया कि हादसे के शिकार लोगों में आसपास के लोगों को भी शामिल किया गया जो प्लांट के बाहर हादसे के कारण प्रभावित हुए। पहले सिर्फ प्लांट के परिसर में उपस्थित लोगों को हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार माना जाता था।
विशाखापत्तनम के पीड़ित भी दायरे में
कानूनी मामलों के जानकारों के अनुसार विशाखापत्तनम में गैस की लीकेज से आसपास के कई किलोमीटर में रहने वाले गांववासी बीमार हो गए। प्लांट के बाहर के ज्यादा लोगों पर असर पड़ा। कई लोगों की जान जा चुकी है और कई मौत से लड़ रहे हैं। नए कानून के मुताबिक कंपनी इन लोगों को मुआवजा देने के लिए बाध्य होगी।
मगर इस क्लॉज से बचने का रास्ता
लेकिन इसी संशोधन में कंपनियों को बचने का रास्ता दे दिया गया कि अगर खतरनाक तकनीक का इस्तेमालकर्ता यह लिखकर देता है कि तकनीक स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है, अगर कर्मचारी इसका सही से इस्तमाल करें, ताे इसके आधार पर निर्माता का बचाव हो जाता है। यह नियम भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी युनियन कार्बाइड कंपनी (यूसीसी) और उसकी तरह की दूसरी कंपनियों को जिम्मेदारी से बचाने में सहायक हो गया। 51 फीसदी हिस्सेदारी होने के बावजूद यूसीसी इसी के आधार पर भोपाल गैस त्रासदी से बचने का प्रयास करती रही क्योंकि प्लांट पर नियंत्रण उसकी सहायक कंपनी यूसीआइएल के हाथों में था।
हादसों की देनदारी के लिए बीमा
1991 में पब्लिक लायबिलिटी इंश्योरेंस एक्ट (पीएलआइए) लागू किया गया जिसके अनुसार इस तरह के हादसे के लिए जिम्मेदारी और लापरवाही साबित किए बिना ही पीड़ित लोगों को अंतरिम मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसके अनुसार प्लांट की स्वामी कंपनी को उस इकाई की पेड-अप कैपिटल के बराबर रकम की इंश्योरेंस पॉलिसी लेनी होती है, जो कम से कम 50 करोड़ रुपये की होगी। लेकिन मुआवजे की रकम असीमित होने के कारण बीमा पॉलिसी बेचने के लिए कंपनियां अनिच्छुक दिखीं, तो इस कानून में संशोधन करके मुआवजे की राशि सीमित की गई। इसके अलावा फैक्ट्रीज एक्ट, 1948 और एनवायरनमेंट रिलीफ फंड सहित कई दूसरे नियम भी बनाए गए हैं।