वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए ऐलान किए गए पैकेज का असर रुपये पर नहीं हुआ है। सोमवार को भारतीय रूपया एक बार फिर डॉलर के मुकाबले 72 के स्तर को पार कर गिया है। रुपये में गिरावट की प्रमुख वजह अमेरिका और चीन के बीच टेंशन का बढ़ना रहा है। अमेरिका एक बार फिर चीन के उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने की तैयारी में है। इसी की वजह से चीन की मुद्रा युआन 11 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। लेकिन अगर एशिया की दूसरी मुद्रा से तुलना किया जाय तो भारतीय रुपया इस समय सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गया है। 31 जुलाई को जहां भारतीय रूपया 68.75 के स्तर पर था वह 26 अगस्त को डॉलर के मुकाबले 72.24 के स्तर पर पहुंच गया है। पिछले 26 दिन में भारतीय रुपया 3.49 रुपये तक कमजोर हुआ है। जिसमें करीब 5 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। इस चीन की युआन 2.43 फीसदी, फिलीपींस की पेसो 2.94 फीसदी, कोरियाई वान्ग 2.34 फीसदी तक पहले 21 दिनों में कमजोर हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार आने वाले दिनों में अभी रूपया और कमजोर होने की संभावना है।
क्या है वजह
भारतीय रुपये में गिरावट की शुरूआत 31 जुलाई को अमेरिकी फेड रिजर्व द्वारा रेट में कटौती करने के ऐलान के बाद से शुरू हुई है। इसकी वजह से निवेशकों में यह संकेत गया है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी की संभावना बढ़ गई है। इस वजह से निवेशकों ने गोल्ड में निवेश बढ़ा दिया है। सोमवार को गोल्ड की कीमत 40 हजार रुपये को भी पार कर गई है।
अमेरिकी फेड रिजर्व के फैसले के अलावा बजट में विदेशी निवेशकों पर सरचार्ज लगाने का असर भी निगेटिव हुआ है। इसकी वजह से विदेशी निवेशकों ने बिकवाली शुरू कर दी है। ऐसा अनुमान है कि जुलाई और अगस्त में अभी तक विदेशी निवेशकों ने करीब 24 हजार करोड़ रुपये मार्केट से निकाल लिए हैं। इसका असर भी रूपये पर निगेटिव हुआ है।
अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार बढ़ने का भी असर दुनिया भर की करंसी पर हुआ है। इस वजह से रुपये में लगातार कमजोरी बनी हुई है।
क्या हो रहा नुकसान
रुपया कमजोर होने से हमारे आयात पर सीधा असर हो रहा है। इसकी वजह से कच्चे तेल की घटती कीमतों का हमें फायदा नहीं मिल रहा है। कच्चा तेल इस समय करीब 60 डॉलर प्रति बैरल के करीब है। इसके बावजूद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में गिरावट नहीं हो रही है।
रुपया कमजोर होने से महंगा बढ़ने की भी आशंका हो गई है। क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स से लेकर ऑटोमोबाइल कंपनियों की भी लागत बढ़ रही है। ऐसे में कंपनियां आने वाले दिनों में दाम बढ़ा सकती हैं।