कहने की जरूरत नहीं है कि इस वर्ष 24 अगस्त से शुरू हुआ सप्ताह भारतीय शेयर बाजार के इतिहास में एक और काले सोमवार के रूप में दर्ज हुआ। बॉम्बे शेयर बाजार के सेंसेक्स के एक ही दिन में करीब छह फीसदी या कहें 1624 अंक गिरने और निवेशकों के 7 लाख करोड़ रुपये डूब जाने की खबरिया सुर्खियों ने इस ड्रामे को और आगे बढ़ाया।
शेयर बाजार के इस सफाये की जड़ें चीन द्वारा अपनी मुद्रा युआन के अवमूल्यन में छिपी थी। अगस्त 11 और 14 के बीच चीन के केंद्रीय बैंक ने डॉलर के मुकाबले युआन का अवमूल्यन किया जो कि पिछले दो दशक में युआन के मूल्य में सबसे बड़ी गिरावट थी और एक डॉलर अब 6.39 युआन के बराबर हो गया है। अन्य बाजारों में बड़े पैमाने पर बिकवाली और धातुओं, ईंधन एवं प्लास्टिक जैसे कमोडिटी पर पड़ी मार जैसे दूरगामी असर के लिए यह कारण पर्याप्त था। स्थिति और बिगाड़ा मुद्रा बाजार ने जहां कई देशों की मुद्राएं बुरी तरह टूट गई। रुपये में भी तेज गिरावट हुई और विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भी अपना निवेश तेजी से बाहर खींचा। भारतीय शेयर बाजार के सूचकांक भी खासे प्रभावित हुए। वैसे शेयर बाजार में तेज उतार-चढ़ाव एक नियमित घटना होती है मगर इस बार अस्थिरता में विस्फोटक बढोतरी देखने को मिली।
यह तो सभी मानते थे कि चीन दुनिया की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, मगर इस बार इसका असर गंभीरता से नजर आया। चीन के इस प्रभाव ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के प्रति चिंता बढ़ाने का ही काम किया है। इसमें यह तथ्य भी जोड़ दें कि पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा अलग-अलग मौद्रिक नीतियां अपनाने के कारण भारत समेत अधिकांश उभरते बाजार अपने वित्तीय क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को स्थिरता प्रदान करने में असमर्थ हैं और इसलिए वे अपनी अर्थव्यवस्थाओं की क्षति को सीमित भी नहीं कर पा रहे हैं।
बाजार की वास्तविकताएं
बाजार की लघु अवधि की चाल ज्यादातर फंड के प्रवाह पर निर्भर करती है। बड़ी संख्या में ऐसे निवेश पोर्टफोलियो डिजाइन किए गए हैं जो उथल-पुथल या अस्थिरता बढऩे की स्थिति में जोखिम को कम करते हैं। यह छोटी अवधि का संकट है और भारत अब भी इतनी बेहतर स्थिति में है कि लंबी समयावधि में किसी भी अन्य उभरते बाजार को मात दे सकता है।
कच्चे तेल का भाव 40 डॉलर प्रति बैरल के आस-पास रहना और महंगाई का नियंत्रण में होना भारत के पक्ष में है, इसलिए गिरता रुपया 2013 की तरह चिंता नहीं पैदा करता जब यह एक डॉलर के मुकाबले 69 रुपये पर पहुंच गया था और कच्चा तेल 110 डॉलर प्रति बैरल था। यदि संकेतकों की मानें तो भारत के विकास की कहानी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक और पूंजीगत माल के ऑर्डरों में वृद्धि के साथ आगे बढऩे के संकेत दे रही है।
मेक इन इंडिया बचाएगा
भारतीय बाजार विदेशी फंड के प्रवाह से निर्देशित होंगे, जिसका अर्थ यह है अस्थिरता बनी रहेगी और ऐसे धैर्यवान भागीदारों के लिए एक अवसर का निर्माण करेगी जो दीर्घावधि में भारतीय विकास से लाभ कमाना चाहते हैं। लंबी अवधि के निवेशकों के लिए घबराने की कोई वजह नहीं है क्योंकि कई संकेत और पुराने आंकड़े यह दिखाते हैं कि यह दौर भी गुजर जाएगा और परिपक्व निवेशक इस सब से बिना किसी नुकसान के निकल जाएंगे। निश्चित रूप से व्यापारियों को लघु से मध्यम अवधि का कष्ट महसूस होगा मगर वे भी इस अस्थिरता से लाभान्वित होंगे।
भारतीय शेयर बाजार में 24 अगस्त के संकटमय दौर के बाद बेहतर उछाल आया है, इससे भी भारत में नई दिलचस्पी का अंदाजा लगाया जा सकता है। जानकार इसका श्रेय देश के व्यापक हालात में सुधार, वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत में गिरावट और घरेलू निवेशकों से मिलते खरीद समर्थन को देख रहे हैं। इसके अलावा भारतीय शेयर बाजार को अन्य विकसित देशों की अर्थव्यवस्था के विकास से अलग-थलग रखा गया है। कच्चे तेल की कम कीमत यहां के लिए अनुकूल है ञ्चयोंकि भारत के कच्चे तेल की तकरीबन 80 प्रतिशत जरूरत आयात से ही पूरी होती है, जिसका फायदा भारत को हर बार इसकी कीमत में गिरावट के साथ ही मिला है। इससे व्यापार घाटा, चालू खाता और राजस्व घाटे का भी अंतर कम हुआ है।
कई अन्य कारक भी भारत के अनुकूल हैं जो मेक इन इंडिया कार्यक्रम के साथ विनिर्माण क्षेत्र की तरक्की के लिए उत्साहजनक है। राजमार्ग परियोजनाओं और छोटे शहरों की परियोजनाओं के जरिये अधोसंरचना पर भारी-भरकम निवेश के कारण भी भारतीय अर्थव्यवस्था बदलते वैश्विक कारोबार से अलग रही है। यह सही है कि निवेशकों का रुझान कम है और भारत ने अभी खर्च और निवेश शुरू ही किया है लेकिन अब वक्त ही बताएगा कि वह अतिरिक्त क्षमताओं के साथ अर्थव्यवस्था में कितनी राशि के निवेश से शुरुआत करता है जब कच्चे तेल की कीमत भी बढ़ जाएगी।
जीएसटी भी एक बड़ी बाधा है जो एक बार पारित हो जाए तो भारत में और ज्यादा निवेशकों का रुझान बढऩे लगेगा। रिजर्व बैंक के गवर्नर हाल के दिनों में कई बार नीतिगत ब्याज दरों पर एक ही बात कहते आए हैं और ब्याज दर वास्तव में कम हो जाने से पहले वह इसे और कितनी बार दोहराते हैं, यह भी देखना होगा। इसी तरह पेमेंट बैंक स्थापित करने की योजना से भी अर्थव्यवस्था में वित्त प्रबंधन की कार्यकुशलता बढ़ेगी तथा इससे और मदद ही मिलेगी।
निवेशकों के लिए अच्छे दिन
निवेशकों के लिए, मेक इन इंडिया की कहानी का लाभ उठाने के अवसर बढ़े हैं। यदि आप भारतीय बाजारों के ऐतिहासिक प्रदर्शन पर नजर डालें तो बाजार ने पिछले 35 वर्षों के दौरान औसतन 16 प्रतिशत की दर से सालाना आमद दी है, यह इसकी अत्यंत नियंत्रण की स्थिति बताती है। हां, थोड़े समय की बाधाएं जरूर आएंगी लेकिन इनकी वजह बहुत हद तक वैश्विक बाजार का बर्ताव ही मानी जाएगी। हालांकि मेक इन इंडिया का प्रयास असर दिखाना शुरू कर दिया है और कई वैश्विक कंपनियां भारत में परिचालन शुरू करने का वादा कर चुकी हैं। ये प्रतिबद्धताएं अभी कागजों पर ही हैं, इसलिए इस कार्यक्रम को जमीन पर आने में अभी कुछ वर्ष लग जाएंगे।
अमेरिकी फेडरल बैंक ने दरें बढ़ाने पर अभी रोक लगा रखी है, यूरोप अब भी डांवाडोल की स्थिति में है और चीनी अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है, ऐसी स्थितियों को देखते हुए उभरती अर्थव्यवस्थाएं आकर्षक बनी हुई हैं और इनमें में भारत सबसे आकर्षक ठिकाना है। यदि आप निवेश कर रहे हैं तो आपको निवेश करते रहना चाहिए और सबसे अच्छा होगा कि पैनी नजर रखें कि आपका निवेश कितना अनुकूल जा रहा है। आपको चीन के हालात जैसी अल्पकालीन उथल-पुथल से बहुत ज्यादा दबाव में नहीं आना चाहिए।
जो लोग भारतीय बाजार के 17 मई 2004 के काले सोमवार को भूल गए हों, उन्हें याद दिलाना चाहूंगा कि उस दिन सेंसेक्स ने इंट्रा-डे में ही 842 अंकों का गोता लगाया था और वामदलों द्वारा संयुक्त प्रगतिशील (यूपीए) गठबंधन सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान सरकार से समर्थन खींच लेने के कारण एक ही दिन में शेयर बाजार 10 प्रतिशत से अधिक गिर गया था। इस 24 अगस्त की गिरावट सिर्फ आंकड़ों के लिहाज से उससे कम है। चीन का एक पुराना प्रचलित शाप है, ‘ईश्वर आपको दिलचस्प दौर में रखे’ और चीनी बाजार के बिखरने के कारण ही हम वैसे ही दौर से गुजर रहे हैं।