नई नीति के जरिए छोटे शहरोंं को बड़े शहरों से जोड़ने की जो बात कही जा रही है, उसेे व्यवहारिक बनाना एक कठिन कवायद है। जैसे ढाई हजार रुपए की टिकट इस स्कीम के तहत हर रुट पर संभव नहीं है। केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से लगाई जाने वाली ड़यूटी और वैट इसमेंं बाधा खड़ी कर सकते हैं। विमानन नीति के अनुसार टिकटों पर ऐसी छूट केंद्र, राज्य सरकार, एयरपोर्ट अथारटी ऑफ इंडिया और एयरलाइंस को मिलने वाली रियायत और उस पर लगने वाली कर संरचना पर निर्भर है। मसलन एटीएफ पर केंद्र की एक्साइज डयटी 2 फीसदी है। जो तीन साल तक निर्धारित है। स्कीम के कुुछ रुट तो समय रहते शुरु हो जाएंगे लेकिन कुछ रुट के शुरु होने में देर होगी। इसमें तीन साल से ऊपर का समय लग जाएगा। ऐसेे में एटीएफ पर ड़यूटी का लफड़ा होगा और ड़यूटी का लेवल बढ़ सकता है। जिससे टिकट की दर अधिक होगी। केंद्र वायबेलिटी गैप फंडिंग का 80 फीसदी वहन करेगा। राज्य सरकार इसका 20 फीसदी वहन करेगा। यह फंडिंग आपरेटर को दस साल की अवधि के लिए दी जाएगी। एक तरह से इस फंड से स्कीम के रुट पर होने वाले घाटे की अापूर्ति एयरलाइंस आपरेटर को की जाएगी। इस फंडिंग के नए रुटों पर सफल होने की संभावना बहुत कम है।
राजनीति के लिहाज से माननीय मंत्री, सांसद और विधायक अपने शहरों को इस स्कीम के तहत लाने के लिए जोर देंगे। विकास की जरुरत को नजरअंदाज करते हुए कई शहरों को आवश्यकता न होने के बावजूद जोड़ दिया जाएगा। पूरी नीति सरकारी निकायों को मिलने वाली छूट पर निर्धारित है। छूट मनमाने व्यवहार से बेमेल होकर सस्ती टिकट का जायका बिगाड़ सकती है। नियम के मुताबिक एयरलाइंस अपनी कैरियर क्षमता के आधार पर टिकटों में इस तरह की छूट देगी। अगर क्षमता कम है तो सस्ती टिकट मिलना मुश्किल है।