एजेंसियाें का कहना है कि भविष्य के लिए यह फैसला अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक है। फायदा किस तरह होगा हालांकि यह कोई बताने को तैयार नहीं। अधिकांश एजेंसियों का मानना है कि फिलहाल तो मांग में कमी होने से उद्योग जगत व अर्थव्यवस्था को काफी चुनौती भरे दिनों का सामना करना पड़ेगा।
प्रतिष्ठित एजेंसी क्रेडिट सुइस ने कहा है कि भारत को बाजार से 14.18 लाख करोड़ रुपये हटाने के बाद प्रचलन में सिर्फ 1.50 लाख करोड़ रुपये की राशि ही बची है। पांच सौ और हजार के 22 अरब नोट चलन से बाहर किए गए हैं। इसके बदले पिछले शुक्रवार तक सिर्फ 150 करोड़ नोट ही छापे गए हैं। बाजार में जो नई करेंसी डाली जा रही है, उनमें 2000 रुपये के नोटों की संख्या यादा है। इससे समस्या को सुलझाने में खास मदद नहीं मिल रही है। रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआइ रोजाना सिर्फ 4-5 करोड़ 500 रुपये के नए नोट ही छाप पा रहा है। यह आंकड़ा जरूरत को देखते हुए बेहद कम है। ऐसे में हालात के सुधरने के आसार कम ही है।
डायचे बैंक ने नोटबंदी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था पर जारी रिपोर्ट में कहा है कि जब रिटेल क्षेत्र में मांग में भारी कमी हो रही है तो यह कहना मुश्किल है कि अर्थव्यवस्था को इससे फायदा होने जा रहा है। नवंबर से अधिकांश उपभोक्ता वर्ग में गिरावट है। रियल एस्टेट क्षेत्र में सबसे यादा कमी देखी जा रही है। बैंक ने अनुमान लगाया है कि भारत में तमाम उपभोक्ता क्षेत्रों में मांग तीन फीसदी तक घट सकती है। इससे अगले छह महीने के भीतर भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर औसतन छह फीसदी रहेगी। केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान 7.6 फीसदी की आर्थिक विकास दर का लक्ष्य तय किया है।
मॉर्गन स्टैनली ने मौजूदा घटनाक्रम को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की विकास दर संबंधी अपने अनुमान को घटाकर 7.3 फीसदी कर दिया है। पूर्व में इस ग्लोबल वित्तीय सेवा फर्म ने देश की जीडीपी 7.7फीसदी बढ़ने की बात कही थी। स्टैनली ने अगले वित्त वर्ष के अनुमान को भी घटाकर 7.7 फीसदी कर दिया है। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने भी नोटबंदी के मद्देनजर चालू वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान कम करते हुए 7.4 फीसदी पर ला दिया है। दुनिया की दो बड़ी रेटिंग एजेंसियां मूडीज और स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि आगे चलकर नोटबंदी का फैसला भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है। मगर इसके तत्कालिक असर काफी परेशान करने वाले होंगे। देश के बड़े उद्योग चैंबर भी ऐसा ही विचार रखते हैं। भारत के आर्थिक सलाहकार संस्थानों की तरफ से भी ऐसी ही बातें सामने आई हैं। घरेलू रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने भी चार तिमाहियों तक मांग में कमी का असर होने की बात कही है।