मुख्य कर्ज दर पर फैसला करते हुए वह निम्न मुद्रास्फीति, कमजोर औद्योगिक उत्पादन, सामान्य से कम मॉनसून तथा हाल ही में अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में वृद्धि का फैसला टालने जैसे विभिन्न पहलुओं पर विचार करेंगे। अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए तथा भारत पर चीन की मंदी का असर कम करने के उद्देश्य से केंद्रीय बैंक के गवर्नर पर वित्त मंत्रालय और उद्योग जगत का ब्याज दर कम करने का जबर्दस्त दबाव है। ज्यादातर बैंकर मानते हैं कि अमेरिकी फेडरल बैंक द्वारा अनुकूल मुद्रास्फीति और यथास्थिति से आरबीआई के लिए अल्पकालीन कर्ज यानी रेपो दर में कम-से-कम 0.25 प्रतिशत की कटौती का अच्छा मौका है जो अभी 7 प्रतिशत पर है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी पिछले हफ्ते दावा किया था कि आम समझ यही कहती है कि ब्याज दरों में कटौती होनी चाहिए। जेटली ने कहा था कि महंगाई दर बहुत हद तक नियंत्रण में है और अर्थव्यवस्था में वैश्विक उथल-पुथल के बीच देश ज्यादातर उभरती अर्थव्यवस्था से कहीं ज्यादा अच्छी तरह तैयार है। वैश्विक उथल-पुथल से युआन का अवमूल्यन हुआ है और चीन में विकास की सुस्त रफ्तार का असर भारतीय मुद्रा और शेयर बाजार पर पड़ा है। जहां तक बाजार भाव की स्थिति है तो थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पिछले दस महीनों से नकारात्मक अंक में चलते हुए अभी -4.95 प्रतिशत पर है जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति दर अगस्त में 3.66 प्रतिशत के रिकॉर्ड निचले स्तर पर है। पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद 7 प्रतिशत पर था जो बाजार की अपेक्षा से नीचे था जबकि अप्रैल-जुलाई के दौरान औद्योगिक विकास दर 3.5 प्रतिशत था।
भारतीय स्टेट बैंक जैसे बड़े कर्जदाता बैंक भी आरबीआई से रेपो दर में कटौती की उम्मीद कर रहे हैं। एसबीआई के चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य के मुताबिक ब्याज दर में कटौती की अभी पर्याप्त संभावना है क्योंकि आने वाले महीनों में खाद्य मूल्यों में वृद्धि की संभावना नगण्य है। उन्होंने कहा था, ‘मेरा अब भी विश्वास है कि भारत में ब्याज दर में कटौती की पर्याप्त संभावना है। कितनी कटौती होगी, इस बारे में अभी कहना मुश्किल है।’ यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अरुण तिवारी का कहना है कि आरबीआई द्वारा 0.25 प्रतिशत की कटौती की संभावना है।