घरों व मंदिरों में रखे सोने को अर्थव्यवस्था के उपयोग में लाने की योजना पर जनता से मांगी गई प्रतिक्रियाएं अब सरकार के सामने हैं। बजट में योजना के ऐलान के करीब तीन महीने बाद सरकार इसका मसौदा लेकर आई, जिस पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। जिस तरह की यह योजना है, उसमें विभिन्न हितधारकों को देखते हुए व्यापक चर्चा जरूरी भी है। इसके मूल में उपभोक्ता है, जिसके पास सोना है। इसके बाद संग्रहकर्ता एजेंसियां या बैंक हैं। और आखिर में रिफाइनरी, जौहरी और मूल्यांकन विशेषज्ञ मिल-जुलकर इस कड़ी को पूरा करते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है कि जिस आधार पर इस योजना का इतना ढिंढोरा पीटा जा रहा है, वह इतना भी कारगर नहीं है। उदाहरण के लिए, घर का सोना आमतौर पर अाभूषण के रूप में होता है न कि छड़ों या सिक्कों के तौर पर। इसलिए अगर कोई परिवार अपने घरेलू सोने से वास्तव में कुछ पैसा बनाने की सोच रहा है तो वह ऐसा तभी कर सकता है जब आभूषण को गलाकर छड़ों या सिक्कों में बदला जाए।
लेकिन गहनों में इस्तेमाल सोने की गुणवत्ता में अंतर को देखते हुए मूल्यांकन विशेषज्ञ को सोने का वास्तविक मूल्य पता करना होगा। जटिलता को बढ़ाते हुए कुछ लोग यह दावा कर सकते हैं कि उनके जेवरात प्राचीन हैं, इसलिए उसका एंटिक महत्व भी है। लेकिन गहनों का सही दाम तय करने में इस ओर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में लोग अपने आभूषणों की वास्तविक कीमत से वंचित रह जाएंगे। योजना पर आई लोगों की प्रतिक्रियाओं में कई दिलचस्प सुझाव हैं। इसलिए तस्वीर साफ होने में अभी समय लगेगा कि वास्तव में योजना किस तरह काम करेगी और भारतीय घरों में मौजूद स्वर्ण भंडार का इस्तेमाल करने में यह किस प्रकार सक्षम होगी।
योजना का मकसद
• देश में घरों और संस्थानों में जमा सोने का मुद्रीकरण
• देश में रत्न एवं आभूषण क्षेत्र को बढ़ावा देना
• बैंकों से कच्चे माल के तौर पर सोना उधार दिलवाना
• घरेलू मांग को पूरा करने के लिए धीरे-धीरे सोने के आयात पर निर्भरता कम करना