Advertisement

आवरण कथा/सिनेमाई अफसाने: परदे पर पीड़ा

हिन्दी सिनेमा में कैंसर पर आधारित कई बेहतरीन फिल्में बनी हैं। इन फिल्मों को देखकर न केवल कैंसर बीमारी...
आवरण कथा/सिनेमाई अफसाने: परदे पर पीड़ा

हिन्दी सिनेमा में कैंसर पर आधारित कई बेहतरीन फिल्में बनी हैं। इन फिल्मों को देखकर न केवल कैंसर बीमारी की पीड़ा और जटिलता का ज्ञान होता है बल्कि जिस जिजीविषा से कैंसर पीड़ित, बीमारी का सामना करते हैं, वह भी अद्वितीय होता है। इन फिल्मों के किरदार जिस तरह कैंसर से लड़ते हैं और जीत हासिल करने के बाद, पूरी ऊर्जा से सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं, उसे देखकर करोड़ों लोगों को प्रेरणा मिलती है। इन्हीं फिल्मों पर डालते हैं एक नजर :

 

 

आनंद (1971)

 

निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म। राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन मुख्य भूमिका में नजर आए। कैंसर के मुद्दे पर बनी सबसे उत्कृष्ट हिन्दी फिल्मों में शामिल। फिल्म का मुख्य किरदार आनंद कैंसर की बीमारी से पीड़ित होता है और उसे स्पष्ट होता है कि उसकी मृत्यु निकट है । बावजूद इसके वह हर क्षण भरपूर आनंद से जीता है और अपने आस पास के सभी लोगों पर प्रेम लुटाता है।

 

सफर (1970)

 

निर्देशक असित सेन की फिल्म। राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर और फिरोज खान मुख्य भूमिका में नजर आए। मुख्य किरदार अविनाश कैंसर की बीमारी से पीड़ित होता है और इस कारण वह नीला से शादी नहीं करना चाहता। नीला, जो अविनाश की प्रेमिका होने के अलावा एक डॉक्टर होती है और अविनाश का इलाज कर रही होती है, वह इस स्थिति को स्वीकार करते हुए शेखर से विवाह कर लेती है। शेखर नीला से प्रेम करता है लेकिन शक के कारण वह अपना और नीला का वैवाहिक जीवन तबाह कर लेता है।

 

 

अनुराग (1972)

 

निर्देशक शक्ति सामंत की फिल्म। अभिनेता विनोद मेहरा, अशोक कुमार, मौसमी चटर्जी, नूतन मुख्य भूमिका में नजर आए। मुख्य किरदार शिवानी नेत्रहीन होती है और उससे राजेश को प्यार हो जाता है। राजेश शिवानी से विवाह करना चाहता है लेकिन शिवानी का नेत्रहीन होना इस संबंध के आड़े आता है। तब शिवानी का मित्र चंदन, जो कि कैंसर की बीमारी के कारण मृत्यु की गोद में समाने वाला होता है, वह नेत्रदान की पेशकश करता है, जिससे राजेश और शिवानी के विवाह के रास्ते खुल जाते हैं।

 

 

मिली (1975)

 

निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म। जया बच्चन, अमिताभ बच्चन मुख्य भूमिका में नजर आए। मुख्य किरदार मिली एक खुशमिजाज लड़की होती है। शेखर एक उदास, गुस्सैल आदमी होता है। मिली से जब शेखर की मुलाकात होती है तो उसके स्वभाव में परिवर्तन आता है। शेखर मिली से प्रेम करने लगता है कि तभी उसे ज्ञात होता है कि मिली कैंसर रोग से पीड़ित है। शेखर के भीतर द्वंद युद्ध चलता है लेकिन अंततः शेखर मिली का साथ देता है।

 

 

अंखियों के झरोखों से (1978)

 

निर्देशक हिरेन नाग की फिल्म। अभिनेता सचिन पिलगांवकर और अभिनेत्री रंजीता मुख्य भूमिका में नजर आईं। मुख्य किरदार अरुण और लिली एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं और शुरुआती नोंक झोंक से शुरु हुआ उनका रिश्ता प्यार में बदल जाता है। दोनों के परिवार वाले उनकी शादी के लिए राजी हो जाते हैं मगर तभी मालूम पड़ता है कि लिली को कैंसर है। लिली की कैंसर से मृत्यु हो जाती है और अरुण लिली की यादों के सहारे जीवन जीता है।

 

 

 

दिल बेचारा (2020)

 

निर्देशक मुकेश छाबड़ा की फिल्म। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत और अभिनेत्री संजना संघी मुख्य भूमिका में नजर आए। मुख्य किरदार किज़्जी थाइरॉइड कैंसर से पीड़ित होती है जबकि मैनी गम्भीर बीमारी से जूझ रहा होता है। उदासी किज्जी का स्वभाव है जबकि मैनी जोश से भरा रहता है। मैनी और किज्जी जब नजदीक आते हैं तो किज्जी के अंदर भी जीवन के प्रति ललक पैदा होती है। दोनों एक साथ मिलकर अपनी बीमारी के दिनों को जीते हैं और एक दूसरे का हौसला बनते हैं।

 

 

 

कल हो न हो (2003)

 

निर्देशक निखिल आडवाणी की फिल्म। मुख्य भूमिका में अभिनेता शाहरूख खान, अभिनेत्री प्रीति जिंटा, अभिनेता सैफ अली खान नजर आए। मुख्य किरदार नैना एक निराशावादी लड़की होती है, जिसका जीवन अमन के आने से बदल जाता है। अमन ऊर्जावान और सकारात्मक व्यक्ति होता है, जो हर क्षण को भरपूर जीता है। नैना अमन से प्यार करने लगती है मगर अमन इस प्यार को स्वीकार नहीं करता। इसका कारण यह होता है कि अमन कैंसर से पीड़ित होता है, जिस कारण वह चाहता है कि नैना का जीवनसाथी ऐसा इंसान बने, जो उसका ध्यान रख सके। अपने अंतिम समय में अमन नैना और रोहित को करीब लाने की कोशिश करता है, जिसके दोनों एक खुशहाल जीवन बिता सकें।

 

 

लुटेरा (2013)

 

निर्देशक विक्रमादित्य मोटवानी की फिल्म। मुख्य भूमिका में अभिनेता रणवीर सिंह और अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा नजर आईं। मुख्य किरदार पाखी एक रईस खानदान की बेटी होती है। वरुण एक पुरातत्व विद्वान के रूप में पाखी से मिलता है और कुछ समय में दोनों में प्रेम हो जाता है। प्रेम के परवान चढ़ने के पहले वरुण धोखा देकर चला जाता है और पाखी अकेली रह जाती है। वरुण कुछ समय बाद लौटता है तो देखता है कि पाखी कैंसर से पीड़ित है और जीवन के प्रति निराश हो चुकी है। वरुण को ग्लानि होती है।वह पाखी की सेवा करता है और उसे जीने की उम्मीद देता है।

 

हरजाई (1981)

 

निर्देशक रमेश बहल की फिल्म। अभिनेता रणधीर कपूर, अभिनेत्री टीना मुनीम मुख्य भूमिका में नजर आए। मुख्य किरदार अजय अपने दोस्तों के साथ कश्मीर घूमने जाना चाहता है और इसी चाहत में वह अपने परिजनों से झूठ बोलता है कि उसे कैंसर है। इस बीच अजय को गीता से प्यार हो जाता है और वह गीता से शादी करना चाहता है। तभी दोनों के परिवार को खबर मिलती है कि अजय को वास्तव में कैंसर है। इस खबर से रिश्तों के समीकरण बदल जाते हैं।

 

 

दर्द का रिश्ता (1982)

 

निर्देशक सुनील दत्त की फिल्म। मुख्य भूमिका में अभिनेता सुनील दत्त, अभिनेत्री रीना रॉय, अभिनेत्री स्मिता पाटिल नजर आईं। मुख्य किरदार रवि और अनुराधा डॉक्टर दंपति होते हैं, जो विदेश में रहकर शोध कार्य करते हैं।रवि को नौकरी के कारण भारत लौटना पड़ता है लेकिन अनुराधा विदेश में रहना चाहती है, जिस कारण उनका तलाक हो जाता है। भारत में रवि की दूसरी शादी आशा से होती है लेकिन आशा भी उनकी बेटी खुशबू को जन्म देकर मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। खुशबू बड़ी होती है तो उसे पता चलता है कि वह कैंसर से पीड़ित है। अनुराधा खुशबू का इलाज करती है और इस दौरान रवि और अनुराधा के बीच के संबंधों में परिवर्तन आता है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad