विशाल शुक्ला
निहलानी ने फिल्म के दूसरे ट्रेल में इस्तेमाल किये गए 'इंटरकोर्स' शब्द पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि फिल्म के प्रोड्यूसर्स से इस शब्द को हटाने के लिए कहा गया था, पर अब तक न हटाने के कारण अभी तक हरी झंडी नही दी गई है। अब तक इंटरनेट पर बार देखे जा चुके 'इंटरकोर्स' वाले ट्रेल के बारे में निहलानी का मानना है कि इंटर 'नेट' पर तो उनका बस है नही तो इंटर 'कोर्स' ही सही। हाल फिलहाल 'बैंकचोर' के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, लेकिन बैंकचोर ए सर्टिफिकेट लेकर फ्लॉप की गति को प्राप्त हो चुकी है। जिसका शीर्षक ही स्वयं में डबल मीनिंग है।
भेदभाव
एक ओर जहां मस्तीजादे और क्या सुपर कूल हैं जैसी फिल्में धड़ाधड़ रिलीज़ हो रहीं हैं वहीं दूसरी ओर उड़ता पंजाब, लिपस्टिक अंडर माय बुरका और हैरी मेट सेजल जैसी फिल्मो को रिलीज में नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। हाल फिलहाल देखें तो उड़ता पंजाब को 94 कट्स के साथ रिलीज करने की बात सेंसर बोर्ड ने कही थी। हास्यास्पद तो यह था कि फिल्म से पंजाब, एमपी, एमएलए और पार्लियामेंट जैसे शब्द भी हटाने की बात कही गयी थी।
असली वजह
कहा जा रहा है कि असल में इन प्रतिबंधों के पीछे एक ही किस्म की कुंठित पुरुष वर्चस्व की भावना काम करता है। उसमें भी अगर संवाद सेक्स या इंटर कोर्स जैसे विषयों पर हो तो निहलानी की अंतरात्मा भी उन्हें झकझोरने लगती है। मस्तीजादे और ग्रैंडमस्ती जैसी फिल्में पुरुष प्रधान होने के कारण भौंडे कथानक और कुंठित हास्य से सराबोर होने पर भी पास हो जाती हैं। वहीं जीवन के सबसे खूबसूरत और आन्नददायक क्षणों में से एक सेक्स पर जब एक उन्मुक्त संवाद हम नायिका के मुंह से सुनते हैं तो उसे हम पचा नही पाते हैं।
बता दें कि हाल-फिलहाल डोनाल्ड ट्रंप ने हाल में कहा था कि 'पुरुषों' के बीच इस तरह की बातें चलती हैं।
दलील
निहलानी की दलील है कि 'इंटरकोर्स' शब्द के इस्तेमाल से समाज में गलत संदेश जाएगा।
दोहरापन
लड़का अगर गाली दे तो ' टंग स्लिप', लड़की दे तो 'बिगड़ी हुई' लड़का अगर शराब सिगरेट पिए तो ग़लती हो जाती है और लड़की पिए तो 'हाथ से निकल गयी।' ये स्थापित समाजिक मान्यताएं हमारे सिनेमा में भी पिछले कुछ समय से ज्यों की त्यों लागू होती दिख रहीं हैं या कहिये कि बलपूर्वक लागू की जा रहीं हैं।
विरोधाभास का सफर
समाज से सिनेमा तक: हद दर्जे का विरोधाभास है कि जो समाज स्त्री के खाने-पीने-पहनने यहां तक की उसकी यौन इच्छाओं को भी नियंत्रित और प्रतिबन्धित करता आया है वही अब ये भी तय करना चाहता है कि स्त्री सिनेमाई पर्दे पर कौन सा संवाद बोले या नही।
इसके अतिरिक्त अभिव्यक्ति की आजादी और रचनात्मकता के पक्ष में वह अपनी ही फिल्मो के गीतों के दो मुखड़े सुनाते हैं:-
"खड़ा है....
खड़ा है...
तेरे दर पर आशिक़ खड़ा है।
एक और देखें-
"में हूँ मालगाडी
तू धक्का लगा…