8 अगस्त सन 1947 को जयपुर में जन्म लेने वाले दिनेश ठाकुर के पिता हौजरी कारखाने में काम करते थे। जब दिल्ली में उन्होंने अपना कारोबार शुरु किया तो दिनेश ठाकुर भी जयपुर से दिल्ली चले आए।
किरोड़ीमल कॉलेज में की नाटकों से शुरूआत
दिल्ली में स्कूली शिक्षा के बाद दिनेश ठाकुर ने किरोड़ीमल कॉलेज में दाखिला लिया और वहां की ड्रामा सोसाइटी का हिस्सा बने। यहां उन्होंने खूब नाटक किए। नाटककार ओम शिवपुरी की संस्था " दिशांतर" के साथ दिल्ली में नाटक करते हुए दिनेश ठाकुर लोकप्रिय हो गए थे।
बासु भट्टाचार्य के साथ पहली फिल्म
दिनेश ठाकुर, हिन्दी के मशहूर नाटककार मोहन राकेश के नाटक "आधे अधूरे" से जुड़े हुए थे। फिल्म निर्देशक बासु भट्टाचार्य ने जब इस नाटक पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया तो दिनेश ठाकुर उनकी पसन्द बने। फिल्म किसी कारण से रिलीज नहीं हुई लेकिन बासु भट्टाचार्य ने उन्हें अपनी अगली फिल्म "अनुभव" में रोल दिया। इस फिल्म में दिनेश ठाकुर के साथ तनुजा और संजीव कुमार जैसे लोकप्रिय कलाकार शामिल थे। बासु भट्टाचार्य का साथ दिनेश ठाकुर ने हमेशा निभाया। अनुभव से शुरु हुआ रिश्ता, बासु भट्टाचार्य की अंतिम फिल्म "आस्था" तक कायम रहा। दिनेश ठाकुर अभिनय से लेकर संवाद लेखन में सहयोग करते थे।
रजनीगंधा से मिली पहचान
इसे नसीब कहें या विडंबना कि इतनी प्रतिभा होने के बाद भी दिनेश ठाकुर को रजनीगंधा फिल्म से जाना जाता है। हिन्दी लेखिका मन्नू भंडारी की कहानी "यही सच है" पर आधारित बासु चटर्जी की फिल्म रजनीगंधा में दिनेश ठाकुर ने "नवीन" की भूमिका निभाई। इसी फिल्म से जहां अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा बेहद लोकप्रिय होकर अपने फिल्मी करियर के शीर्ष पर पहुंचे, वही दिनेश ठाकुर के हिस्से में वैसी सफलता नहीं आई। खैर सबकी अपनी नियति होती है। रजनीगंधा से एक मशहूर किस्सा जुड़ा है, जिसे फिल्मी लोग सुनते और सुनाते हैं। जब दिनेश ठाकुर फिल्म की शूटिंग के लिए दिल्ली से मुंबई पहुंचने की तैयारी कर रहे थे, तब उनके पास बासु चटर्जी का एक टेलीग्राम पहुंचा। बासु चटर्जी ने टेलीग्राम में लिखा था " कीप ब्रेड"। जब दिनेश ठाकुर के पिता ने टेलीग्राम पढ़ा तो वह बोले " देख रहे हो, बासु चटर्जी ने कहा है कि फिल्म से कुछ नहीं मिलेगा, अपनी डाल रोटी यानी ब्रेड का इंतजाम खुद कर लेना"। दिनेश ठाकुर को कुछ समझ नहीं आया और वह मुंबई पहुंच गए। मुंबई में जब बासु चटर्जी ने दिनेश ठाकुर को देखा तो वह चौंक गए। बासु चटर्जी ने दिनेश ठाकुर से पूछा " अरे, दाढ़ी क्यों कटा ली?"। इस पर दिनेश ठाकुर ने कहा कि उन्हें दाढ़ी के संबंध में तो कोई सूचना नहीं मिली थी। तब बासु चटर्जी ने अपने द्वारा भेजे गए टेलीग्राम का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने जो "कीप ब्रेड" लिखा था, उसका अर्थ दाढ़ी रखे रहना था। खैर अब जो होना था, हो चुका था। दिनेश ठाकुर ने फिल्म में विद्या सिन्हा के साथ कॉलेज में फिल्माए गए सीन बिना दाढ़ी के शूट किए थे। रजनीगंधा इकलौती फिल्म रही, जिसमें दिनेश ठाकुर बिना दाढ़ी के नजर आए।
नाटक को जीवन बना लिया
यह देखने को मिलता है कि नाटक में काम कर रहे अभिनेता फिल्मों में काम करने के लिए लालायित रहते हैं। उन्हें चाहे कैसे भी किरदार मिलें, वह किसी तरह फिल्मों से जुड़े रहना चाहते हैं। दिनेश ठाकुर इसके विपरीत थे। जब उन्हें फिल्मों में मनमाफिक काम और सफलता नहीं मिली तो उन्होंने रंगमंच का रुख किया। दिनेश ठाकुर ने पूरी क्षमता और जोश के साथ नाटक किया। उनके नाटक "हाय मेरा दिल" ने हिंदी नाटकों के इतिहास में अभूतपूर्व सफलता हासिल की। इसके देशभर में 1100 से अधिक शो हुए। दिनेश ठाकुर नाटक की बात करते तो उनकी आंखें चमक उठती थी।
भाषा की शुद्धता पर रहता था जोर
दिनेश ठाकुर ने नाटकों में अभिनय के साथ ही निर्देशन का काम किया। वह अक्सर कहते कि नाटक की जान शब्द में होती है। आज जिस तरह भाषा में मिलावट का दौर आ गया है, उसने नाटकों को बहुत नुक्सान पहुंचाया है। दिनेश ठाकुर का मानना था कि जल्दी शौहरत पाने और ज्यादा से ज्यादा काम करने के चक्कर में कलाकार गुणवत्ता से समझौता करते हैं। फिर वह व्यापारी रह जाते हैं, कलाकार नहीं।