Advertisement

जन्मदिन विशेष: काजोल हिंदी सिनेमा के आधुनिक दौर की सबसे सादगी पसन्द और सशक्त अभिनेत्री

5 अगस्त को हिंदी सिनेमा की सफल अभिनेत्री काजोल का जन्मदिन होता है। काजोल का जन्म 5 अगस्त 1974 को मुंबई में...
जन्मदिन विशेष: काजोल हिंदी सिनेमा के आधुनिक दौर की सबसे सादगी पसन्द और सशक्त अभिनेत्री

5 अगस्त को हिंदी सिनेमा की सफल अभिनेत्री काजोल का जन्मदिन होता है। काजोल का जन्म 5 अगस्त 1974 को मुंबई में हुआ था। काजोल के माता और पिता सिनेमा की दुनिया से जुड़े हुए थे जहां एक तरफ काजोल के पिता शोमू मुखर्जी फिल्म निर्देशक थे, वहीं दूसरी तरफ काजोल की मां तनुजी हिन्दी सिनेमा के सुनहरे दौर की कामयाब अभिनेत्री मानी जाती हैं। काजोल का फिल्मों से पारिवारिक संबंध कुछ गहरा है। काजोल की मौसी नूतन हिन्दी सिनेमा के प्रारंभिक दौर की सबसे अभिनेत्री रही हैं। इतना ही नहीं काजोल की नानी शोभना समर्थ भी हिंदी सिनेमा की काबिल अदाकारा रही हैं। काजोल ने बचपन से ही अपने आस पास फिल्मी और कलात्मक माहौल देखा। जाहिर है कि उनके मन पर इसका गहरा प्रभाव भी पड़ा। यह कहा जा सकता है कि काजोल के अभिनय और व्यवहार में जो सादगी, सरलता और सहजता है, वह अनुवांशिक है। काजोल के भीतर के संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाए गए हैं और बहुत खूबसूरती के साथ उन्हें सहेजा गया है। 

बचपन से ही काजोल के इर्द गिर्द सिनेमा और सिनेमाई वातावरण था। लेकिन काजोल की दिलचस्पी किताबों में अधिक थी। इसका एक बड़ा कारण था। काजोल की मां तनुजा और मौसी नूतन हिन्दी फिल्मों में अधिकतर भावनात्मक किरदार निभाती थीं। उनके किरदार अपनी कोमलता और करुणा के लिए जाने जाते थे। ऐसे में अक्सर तनुजा और नूतन ऑन स्क्रीन आंसू बहाती हुई नजर आती थीं। इनके अभिनय में वो क्षमता थी कि दर्शक भाव विभोर हो उठता था। फिल्म देखते हुए दर्शक की आंखें भीग जाती थीं। जब बचपन में काजोल ने अपनी मां और मौसी की फिल्मों को देखा तो उनकी आंखें भर आईं। उनसे अपनी मां और मौसी को स्क्रीन पर रोते हुए नहीं देखा गया। इसी कारण से काजोल ने हिन्दी फिल्मों में अधिक रूचि नहीं रखी। काजोल अपने इंटरव्यूज में बताती हैं कि उन्हें हिन्दी फिल्मों के नाम पर अमिताभ बच्चन की फिल्में बेहद पसन्द थी लेकिन उनका समय किताबों के साथ अधिक बीतता था।कॉमिक्स से लेकर हर तरह की किताबों में उनकी रूचि थी। 

अपने फिल्मी करियर के बारे में बताते हुए काजोल कहती हैं कि उन्हें लगता है कि वह भाग्यशाली रही हैं। जिस तरह से कलाकारों का हिन्दी सिनेमा में घनघोर संघर्ष रहता है, उसकी तुलना में उनका सिनेमाई सफ़र, शानदार और सुकून से भरा हुआ लगता है। बेहद कम उम्र में बतौर बाल कलाकार फिल्म "बेखुदी" से फिल्मों में कदम रखने वाली अभिनेत्री काजोल की सफलता में उनके व्यक्तित्व का बड़ा हाथ रहा है। काजोल ने हिन्दी सिनेमा में अपनी शर्तो और चुनाव पर काम किया है। काजोल एक सशक्त महिला हैं और यह बात हमें उनके जीवन और फिल्मों में देखने को को मिलती है। 

जिस दौर में अभिनेत्रियां सिर्फ ग्लैमर के लिए हिन्दी फिल्मों में मौजूद होती थीं, उस दौर में काजोल ने फिल्म में अपनी मौजूदगी का महत्व समझाया। काजोल की फिल्मे देखकर यह नहीं लगता कि इन्हें सिर्फ मुख्य हीरो के मनोरंजन के लिए रखा गया है। काजोल की भूमिकाएं अपने आप में स्वतंत्र होती थीं। काजोल के किरदार ऐसे होते थे, जिनकी महिलाओं की महत्वाकांक्षाओं को दिखाया जाता था। फिल्म "दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे" इसका उदाहरण है। जिस तरह से फिल्म में काजोल का किरदार सिमरन अकेले घूमने निकल जाती है, वह आज के दौर में आधुनिक दृष्टि से देखा जाएगा। हमारे समाज में आज भी महिलाओं की सोलो ट्रैवलिंग सामान्य बात नहीं है। इस दृष्टि से हमें काजोल के किरदार आधुनिक और सशक्त दिखाई देते हैं। 

काजोल हिन्दी सिनेमा ऐसी चुनिंदा अभिनेत्रियों में शामिल हैं, जिन्होंने मेक अप से अधिक अपने क्राफ्ट पर ध्यान दिया। अपनी मौसी नूतन की ही तरह काजोल हमेशा सिनेमा के पर्दे पर सहज और सादगी से भरी हुई नजर आईं। कभी भी खुद को ग्लैमरस लुक में रखने या भड़काऊ अंदाज रखकर दर्शकों को थियेटर तक लाने की कोशिश में काजोल नहीं दिखाई दीं। काजोल का कहना है कि हमें कोशिश करनी चाहिए कि जितना मुमकिन हो सादा और नेचुरल रहें। इससे आप ज्यादे सच्चे दिखते हैं। लोग आपसे सहजता से मिल पाते हैं, बात कर पाते हैं। काजोल की यही सोच उनकी विशेषता है। 

काजोल ने 16 साल की उम्र में अब्बास मस्तान की फिल्म " बाज़ीगर" से अपनी शुरुआत की। इस फिल्म में उनके साथ शाहरुख खान थे। इस फिल्म से काजोल और शाहरुख खान की ऐसी जोड़ी बनी, जिसे अगले कई वर्षों तक हिन्दी सिनेमा पर एकछत्र राज किया।" करन अर्जुन", "कुछ कुछ होता है", "कभी खुशी कभी गम", "माय नेम इज खान" में काजोल और शाहरुख खान की केमिस्ट्री देखते ही बनती है। 

काजोल के विषय में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि वह अपने जीवन में हमेशा स्पष्ट दिखाई देती हैं। उनके निर्णय, उनके चुनाव स्वतंत्र नजर आते हैं। काजोल ने हमेशा वही किया, जो उन्हें ठीक लगा। उन्होंने जितने भी निर्णय लिए,चाहें वो सही हों या ग़लत, वो सभी खुद लिए। वह अपनी मर्जी से फिल्मों में आईं, अपनी मर्जी से उन्होंने करियर के शिखर पर विवाह किया और अपनी मर्जी से फिल्मों में ऐसी भूमिकाएं निभाईं, जो हिंदी फ़िल्मों की अभिनेत्रियों द्वारा कम ही निभाई जाती हैं। "गुप्त" और "दुश्मन" जैसी फिल्मों में काजोल द्वारा निभाए किरदार बिलकुल लीक से हटकर हैं। यह हीरोइन की पारंपरिक छवि को तोड़ते हुए दिखते हैं। इसी बदलाव के लिए काजोल को दर्शकों ने खूब पसंद किया गया। काजोल की सफलता इस बात का उदाहरण है कि यदि आप में प्रतिभा है तो बिना किसी झूठ, नकलीपन, भड़काऊ अंदाज के आप कामयाबी के शीर्ष पर पहुंच सकते हैं। 

 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad