बदले का रोमांच, वह भी एक नेत्रहीन का अपनी पत्नी की हत्या का बदला अपने आप ही उत्सुकता जगाता है। बदला बॉलीवुड में हमेशा से बिकाऊ विषय रहा है। गजनी में आमिर खान अपनी प्रेमिका का बदला लेते हैं, वह नेत्रहीन नहीं, याददाश्त विहीन रहते हैं। रितिक ने एक नेत्रहीन की भूमिका में विश्वसनीयता जगाने की कोशिश की है। यामी गौतम ने भी ऋतिक के साथ कदमताल की कोशिश की है। राजनीति और पुलिस के बीच पुराने घालमेल, स्थानीय नेता का गुंडा भाई और सीधी-सादी जिंदगी जीने वाले एक लड़के को बदला लेने वाले में बदल देने की कहानी में संवादों पर भले ही दर्शकों ने कम ताली पीटी लेकिन नायक रोहन (ऋतिक रोशन) की बदला लेने की तरकीबों पर वे वाह-वाह कर उठे।
रईस 80 के दशक की मसाला फिल्मों की तरह है, जिसमें एक गरीब बस्ती का बच्चा शानदार डॉन बन जाता है। मनमोहन मार्का इस फिल्म में शाहरूख खान के साथ दर्शकों को नवाजुद्दीन सिद्दकी बोनस के रूप में मिले हैं। गुजरात के एक डॉन (शाहरूख खान) के सामने नवाजुद्दीन सिद्दकी बराबर की टक्कर देते हैं। रईस में पाकिस्तानी कलाकार माहिरा खान को लेकर मचे हो हल्ले और छुटपुट विरोध प्रदर्शन के बाद भी रईस सिनेमा घरों में आखिर आ ही गई।
काबिल और रईस दोनों का ही संगीत औसत रहा लेकिन दर्शकों के सामने जब अपना पसंदीदा स्टार (रईस) हो या उन्हें कहानी में (काबिल) मजा आ रहा हो तो संगीत को कौन पूछता है। राहुल ढोलकिया से फिल्म कहीं-कहीं छूटी है और संजय गुप्ता काबिल के संपादन में चूक गए हैं।