पहले एक भाई पुलिस और एक भाई चोर रहता था। या फिर दो भाई बिछड़ जाते थे और आखरी में भैया...कहते हुए दौड़ कर एक दूसरे को गले लगा लेते थे। लेकिन इस फिल्म में ऐसी कोई गुंजाइश नहीं है। एक भाई दूसरे से इतना जलता है कि तीन घंटे इसी जलन में निकल जाते हैं। निर्देशक विशाल पंड्या कट टू कट सीन लेकर कहानी को एक तरह से दौड़ाते हैं। फिर खुद हांफ जाते हैं तो बेतुकी पर उतर आते हैं। जैसे मनोहर कहानियों में अपराध कथाओं की तरह कागज में लगी पिन पर जहर लगा देना।
उस पर भी यदि फिल्म का पहला सीन गौर से देखा हो तो तुरंत समझ में आ जाता है कि इसका अंत क्या होगा। इतनी महाफालतू किस्म की फिल्म में भी दर्शक अपने लायक कुछ न कुछ निकाल ही लेता है। हर दसवें मिनट में एक सेक्सी बेब का सेंसर की मर्यादा से ज्यादा कपड़े उतार देना और हर तीसरे मिनट में एक जबर्दस्त स्मूच फिल्म में गरमाहट बनाए रखती है।
सिक्के उछालने और शर्ट को उतार कर घुमाने वालों के लिए तो यह झक्कास फिलम है बॉस! इस फिल्म में दो छोरिया हैं, जरीन खान और डेजी शाह। तो मैंने अभी बताया न कि फिल्म का नाम किस और स्मूच हो सकता था तो दोनों छोरियां (इन्हें नायिका कहना चाहें तो आपकी महानता होगी) इसी काम के लिए है। शर्मन जोशी और करण सिंह ग्रोवर इस फिल्म नहीं होते और कोई मातादीन या गया प्रसाद भी इस रोल को कर रहे होते तो भी फिल्म में कोई फर्क नहीं पड़ना था। कोशिश तो पंड्या साहब ने रेस की तरह फिल्म बनाने की की थी। लेकिन यह डिस्को के गानों की फिल्म बन कर रह गई है।
अच्छा हुआ पंड्या जी ने बड़े भाई की भूमिका को दोबारा दिखाने के लिए कोई प्लास्टिक सर्जरी वाला आइडिया नहीं अपनाया, वर्ना एकता कपूर केस ठोक देती (यह उनके धारावाहिकों का स्थायी भाव है) दीन-इमान-धरम के बिना बनी इस फिल्म को आप तभी देख सकते हैं जब सॉफ्ट पोर्न जैसा कुछ देखना चाहें या फिर मेरी तरह समीक्षा लिखने के लिए फंस जाएं।