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मशीन : मनोरंजन की उम्मीद न रखें

फिल्म के शीर्षक से दर्शकों को लग सकता है कि यह कोई रोबोट या रा.वन की तरह फिल्म होगी। साइंस फिक्शन की तरह लगने वाली यह फिल्म दरअसल एक प्रेम कहानी है जिसमें फार्मूला प्रेम यानी प्रेम में धोखा और हत्या जैसा मसाला भरपूर उपयोग किया गया है।
मशीन : मनोरंजन की उम्मीद न रखें

अब्बास-मस्तान की जोड़ी सस्पेंस और थ्रिलर बनाने के लिए मशहूर रही है। इस बार इस जोड़ी में से अब्बास के बेटे मुस्तफा के लिए निर्देशक द्वय ने फिल्म बनाई है। रंश (मुस्तफा) और सारा (कियारा आडवाणी) के मार्फत अब्बास-मस्तान ने दर्शकों को तमाम मसाला डाल कर ‘भरमाने’ की कोशिश की है। लेकिन वह खांटी दर्शक ही क्या जो निर्देशक के ऐसे जाल में फंस जाए। शुरुआत के तीन-चार दृश्यों में ही लग जाता है कि फिल्म बाजीगर, खिलाड़ी सहित अब्बास-मस्तान मार्का फार्मूले ही आगे बढ़ेगी। फार्मूला यानी पैसा, षडयंत्र, रेसिंग कारें और प्यार में धोखा।  

कहानी कुछ खास नहीं है, कॉलेज के हंसते-गाते लड़के लड़कियां, नब्बे के दशकनुमा हीरो-हिरोइन के दोस्त, खूबसूरत लोकेशन पर गहरे रंग के झालदार गाउन में सनम, प्यार, इश्क, मुहब्बत नुमां शब्दों के कुछ गाने और अचानक प्यार में हत्या। फिर अचानक एक किरदार का विलेन के रूप में उदय, फिर उस खलनायकी को जस्टिफाई करने के लिए बीस साल पुरानी एक कहानी यानी रेस फिल्म की तरह चौंकाने वाली तयशुदा रणनीति। और इस बीच बिलकुल मशीनी मुस्तफा का अभिनय। न चेहरे पर कोई भाव न संवाद बोलने में अदा। सपाट चेहरा लिए मुस्तफा ने बस ‘काम निपटाने’ के अंदाज में फिल्म की। कियारा उनसे कहीं बेहतर अभिनय कर पाई हैं।

इंटरवेल के बाद तो फिल्म किसी सी ग्रेड की हास्य फिल्म से भी बदतर हो गई है। तो सुनो...टाइप विलेन का कहानी सुनाने का अंदाज दर्शकों को चौंकाता कम हंसाता ज्यादा है! रेस, खिलाड़ी, बाजीगर, ऐतराज जैसी फिल्म बनाने वाले निर्देशकों से इतनी तो उम्मीद थी ही कि वे घर के छोरे को सुनहरे परदे पर उतारने के लिए थोड़ी मेहनत करते। फिल्म देख कर तो ऐसा लगता है कि मुस्तफा ने जिद की, ‘पापा हीरो बनना है’ और पापा ने अपनी पुरानी फिल्मों के जखीरे में हाथ डाला, चार फिल्में खंगाली और खिचड़ी बना कर परोस दी। अब लाख टके का सवाल, फिल्म का नाम मशीन क्यों। इसलिए क्योंकि जब फिल्म में अब्बास साहब ने अपने साहबजादे का अभिनय देखा होगा तो उन्हें वह रोबोट की तरह ही लगा होगा। खैर मजाक की बात अलग है, इसी नाम को जस्टिफाई करने के लिए नायिका अंतिम दृश्य में कहती है, ‘तुम तो बिलकुल मशीन हो, पैसा फीड किय तो पैसा-पैसा बोलने लगे, प्यार फीड किया तो प्यार-प्यार करने लगे, मर्डर फीड किया तो मर्डर कर दिया।’ फिर प्रायश्चित के तौर पर अपनी बलि और फिल्म खत्म। अब यदि ऐसे में आप मशीन से मनोरंजन की उम्मीद करेंगे तो यह मशीन पर ज्यादती ही होगी। 

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