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समीक्षा - निल बटे सन्नाटा

निर्देशक अश्वनी अय्यर तिवारी विज्ञापन फिल्में बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। पहली बार उन्होंने फीचर फिल्म निर्देशित की है। मां-बेटी के रिश्ते को उन्होंने बहुत ही खूबसूरती से दिखाया है।
समीक्षा - निल बटे सन्नाटा

निल बटे सन्नाटा मानक शब्द नहीं है। लेकिन कुछ न होने यानी शून्य की स्थिति पर यह कहावत खूब चलती है। चंदा सहाय (स्वरा भास्कर) का सपना है उसकी बेटी और उसकी बेटी अपेक्षा सहाय (रिया शुक्ला) का कोई सपना नहीं है। और इस सपने के होने न होने से के बीच ही यह फिल्म चलती है।

यह फिल्म पढ़ाई के प्रति अलख और चेतना जगाती है। भयावह दुनिया के बीच पता चलता है कि गणित की दुनिया कितनी आसान है। रिया शुक्ला ने पढ़ने में मन न लगने वाली बच्ची की भूमिका में जान डाल दी है। उनके चेहरे पर कई बार स्वरा से ज्यादा अच्छे तेवर दिखाई दिए हैं।

एक काम बाई कैसे अपनी बेटी के भविष्य के प्रति चिंतित रहती है इस जद्दोजहद में स्वरा भास्कर ने चुनौती को बहुत अच्छे से निभाया है। छोटी सी भूमिका में रत्ना पाठक शाह ने भी छाप छोड़ी है। यह अश्वनी की पहली फिल्म है। पहली फिल्म के हिसाब से उन्होंने गजब के फ्रेम तैयार किए हैं। निर्देशन में कसावट है।  

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