श्रेयस तलपड़े ने अपनी ही मराठी फिल्म को हिंदी में बनाया है। पहली बार निर्देशन करने के लिहाज से यह अच्छा प्रयास है। कहानी सीधी सी है। तीन मर्दों का पोस्टर स्वास्थ्य विभाग ने बिना अनुमति के नसबंदी के पोस्टर पर छाप दिया है। परेशानी हालांकि सिर्फ एक को ही होनी थी जो कुंआरा है। क्योंकि बाकी दोनों के बच्चे हैं। लेकिन समाज की सोच है कि पुरुष नसबंदी कराए तो उसकी मर्दानगी खत्म हो जाती है। इसलिए एक की बहन की शादी टूट जाती है तो दूसरी की पत्नी रूठ कर मायके चली जाती है। इस में एक और संदेश है कि पति को दोनों बेटियां प्यारी हैं लेकिन पत्नी को एक बेटा चाहिए खानदान चलाने के लिए।
सनी देओलो, बॉबी देओल और श्रेयस तलपड़े की तिकड़ी ने अच्छी कोशिश की है। एक्टिंग जैसा तो इस फिल्म में कुछ नहीं है लेकिन फिर भी बॉबी देओल जितनी खराब एक्टिंग कर सकते थे उन्होंने की है। बोलते हुए आधा वाक्य भूल जाने वाले टीचर के रूप में उन्हें अच्छा स्पेस मिलने के बाद भी वह उसका उपयोग नहीं कर पाए हैं। सनी को खुद को दोहराना कठिन नहीं था सो वह यह काम कर पाए हैं। श्रेयस ऐसी तमाम कॉमेडी फिल्मों में आ चुके हैं इसलिए वह वैसे ही लगे हैं जैसे किसी दूसरी फिल्म में थे। श्रेयस की गर्लफ्रेंड के रूप में समीक्षा भटनागर ठीक लगी हैं। कम सीन और डायलॉग के बाद भी सोनाली कुलकर्णी को बहुत दिनों बाद परदे पर देखना सुखद लगता है। यह वीकएंड टाइम पास है, टाइम हो तो पास कर लीजिए। शानदार कॉमेडी, जबर्दस्त एक्शन की मंशा में जाएंगे तो शायद निराश हों। लेकिन जब डैडी जैसा हैवी डोज हो तो पोस्टर बॉएज जैसा हल्का डोज हजम हो जाएगा।
आउटलुक रेटिंग ढाई स्टार