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तेरे बिन ही ठीक थे लादेन

इस फिल्म का सीक्वेल देखने के बाद इच्छा होती है कि संविधान में संशोधन कर एक नियम डाला जाए कि पकाऊ सीक्वेल बनाने पर सजा का प्रावधान हो।
तेरे बिन ही ठीक थे लादेन

सफलता को भुनाने की चाह बड़ी कष्टकारी होती है। तेरे बिन लादेन डेड या अलाइव इसी कष्ट का उदाहरण है। एक घंटा 50 मिनट में निर्देशक अभिषेक शर्मा ने दर्शकों को पकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पहला भाग तेरे बिन लादेन जितना सफल था दूसरा भाग असफलता के उतने ही रेकॉर्ड कायम करेगा।

पीयूष मिश्रा, सिकंदर खेर, प्रद्युम्न सिंह, मनीष पॉल सभी ने अपनी ऊर्जा और दर्शकों का समय खराब किया है। मनीष पॉल को देख कर तो ऐसा लगता है कि बस अभी थोड़ी देर में वह कह उठेंगे, अलाना प्रेजेंट फलाना कार्यक्रम ढिकाना सीजन...। पुरानी फिल्म का भूत इतना हावी है कि शुरुआत का आधा घंटा अली जाफर के नाम कर दिया गया है। अली को जरूरत से ज्यादा दिखाना शायद इसलिए भी होगा कि दर्शकों को याद आ जाए कि यह वही वाली फिल्म है, जिसे हमने पसंद किया था। पीयूष मिश्रा इस फिल्म में क्यों हैं यह शायद उन्हें खुद पता नहीं होगा। तेरे बिन का दूसरा भाग पहले के पासंग भी नहीं बैठता। आखिर इसे बनाया ही क्यों है।

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