16 अगस्त सन 1970 को मनीषा कोइराला का जन्म नेपाल में हुआ था। मनीषा के दादा बिश्वेश्वर प्रसाद कोइराला, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री मंत्री थे। मनीषा कोइराला के परिवार का विस्तृत राजनीतिक इतिहास रहा है। मनीषा कोइराला को भी परिवार के संस्कार विरासत में मिले, जिसने उन्हें एक संवेदनशील, सामाजिक मनुष्य बनाया। मनीषा ने हमेशा शोषितों, वंचितों की आवाज उठाई है। उन्होंने हमेशा ही खुद को ऐसे मुद्दों, संगठनों से जोड़कर रखा है, जो समाज में एक बदलाव लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
मनीषा कोइराला का लंबा समय बनारस में बीता। उन्हें मॉडलिंग पसन्द आई और धीरे धीरे वह अभिनय के क्षेत्र में प्रवेश करती चली गईं। मनीषा कोइराला ने नेपाली फिल्मों में काम किया। दर्शकों ने मनीषा की सुंदरता, सरलता, भोलेपन और मासूमियत को पसंद किया। हिन्दी सिनेमा में मनीषा कोइराला ने सुभाष घई की फिल्म "सौदागर" से कदम रखा। दिलीप कुमार और राज कुमार जैसे शीर्ष अभिनेताओं के बीच मनीषा कोइराला ने जिस तरह अपना अस्तित्व बनाए रखा, यह मनीषा कोइराला के भीतरी आत्म विश्वास का परिचायक है। मनीषा कोइराला के अभिनय सफर को केवल उनकी खूबसूरती से जोड़कर देखना, उनके व्यक्तित्व के साथ नाइंसाफी होगी। मनीषा कोइराला का किरदार और उनका योगदान बड़ा है।
हम जब मनीषा कोइराला की फिल्मों पर नजर डालते हैं तो हमें ऐसी कई फिल्में नजर आती हैं, जहां मनीषा कोइराला का दृढ़ संकल्प, इच्छाशक्ति, कुछ नया करने का प्रयास नजर आता है। मनीषा कोइराला में हमें असुरक्षा नजर नहीं आती। हमें दूर से देखकर एक नाजुक लड़की का किरदार महसूस होता है लेकिन आहिस्ता आहिस्ता हमारे सामने मनीषा कोइराला की मजबूत शख्सियत उभरती है। बॉम्बे, दिल से, लज्जा, खामोशी, गुप्त, 1942 ए लव स्टोरी जैसी फिल्मों में मनीषा कोइराला का अभिनय यह बताता है कि उनमें रिस्क लेने की क्षमता है। वह केवल हीरो के मनोरंजन के लिए फिल्म में नहीं दिखती। उनका अपनी हस्ती, अपनी प्रतिभा नजर आती है। मनीषा कोइराला ने यह मजबूत निर्णय तब लिए, जब पूरी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हीरोइन को केवल खूबसूरत जिस्म समझा जाता था, जिसे देखने दर्शक सिनेमाघर आते थे। तब यह कल्पना करना मुश्किल था कि किसी अभिनेत्री के अभिनय में कोई दिलचस्पी ले सकता है। इस कठिन समय में मनीषा कोइराला ने एक खूबसूरत गुड़िया बनना स्वीकार नहीं किया और चैलेंजिंग किरदार निभाए।
मनीषा कोइराला के सशक्त किरदार की पहचान तब होती है, जब उन्हें कैंसर हुआ। मनीषा कोइराला ने कैंसर की जंग लड़ी, जीती और फिर 5 साल के बाद फिल्मी दुनिया में वापसी की। यह सफर कितना कठिन, पीड़ादायक होगा, इसकी कल्पना भी मुश्किल है। मनीषा कोइराला ने हमेशा से अपनी शर्तों पर काम किया। उन्होंने हमेशा से अपने चुनाव को तरजीह दी। मजबूरी में फिल्में करना उनका स्वभाव नहीं है। यही कारण है कि डियर माया, मस्का, संजू जैसी फिल्मों से मनीषा कोइराला की अभिनय यात्रा आज भी अनवरत रूप से जारी है। मनीषा सामाजिक और प्राकृतिक मुद्दों पर अपनी राय रखती हैं और उन्हें अपनी यह एहसास है कि एक कलाकार, एक मशहूर इंसान होने के कारण उनके दायित्व अधिक हैं। मनीषा कोइराला अपने दायित्व को बखूबी निभाती हुई नजर आती हैं।