मोहम्मद रफ़ी बहुत सरल इंसान थे। उनके जीवन में संगीत के अलावा बाक़ी सभी कार्य गैर ज़रूरी थे। रफ़ी साहब के भोलेपन के कई क़िस्से मशहूर हैं। महेन्द्र कपूर ने अपने एक इंटरव्यू में एक खूबसूरत किस्से का जिक्र किया था।
किस्सा कुछ यूं है कि एक बार महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के दिन मोहम्मद रफी को आकाशवाणी केंद्र से प्रोग्राम का न्यौता आया था। तब मोहम्मद रफी ने महेंद्र कपूर से उनके साथ आकाशवाणी केंद्र चलने के लिए कहा। महेंद्र कपूर उस दिन खाली थे इसलिए उन्होंने सहमति जता दी।
महेंद्र कपूर और मोहम्मद रफी आकाशवाणी केंद्र पहुंचे। रफ़ी साहब ने अपनी प्रस्तुति दी। प्रस्तुति के बाद जब मोहम्मद रफी और महेंद्र कपूर वापस जाने लगे तो वहां मौजूद कई युवा नौजवान संगीत प्रेमियों ने रफ़ी साहब को घेर लिया। ये सभी मोहम्मद रफी का ऑटोग्राफ चाहते थे। उधर मोहम्मद रफी ऑटोग्राफ नाम की चीज़ से अनजान थे। मोहम्मद रफी ने महेंद्र कपूर से पूछा " यह लोग क्या चाहते है मुझसे ?"। जवाब में महेंद्र कपूर ने कहा "ये आपका ऑटोग्राफ यानी साइन चाहते हैं"। मोहम्मद रफी इतने भोले थे कि उन्होंने महेंद्र कपूर से कहा "अच्छा, एक काम कर, तू ही दे दे फिर"।
महेंद्र कपूर के लिए मोहम्मद रफी गुरु थे। वह गुरु की बात कैसे टालते। महेंद्र कपूर ने तब सभी युवाओं के काग़ज़ पर "मोहम्मद रफ़ी" लिख दिया। इस घटना के बाद मोहम्मद रफी ने अपने साइन की प्रैक्टिस की। आगे से जब भी कोई उनसे ऑटोग्राफ मांगता तो वह निराश नहीं करते। ऐसी सादगी थी मोहम्मद रफी के व्यवहार में। ऐसा अपनापन था महेन्द्र कपूर और मोहम्मद रफी के बीच।