कहानी यह है कि एक तेज तर्रार पुलिस वाला हैंडसम टाइप और एक कुपोषण की शिकार लेकिन ग्लैमरस पुलिस वाली में लव-शव है। हीरो एक षडयंत्र का शिकार हो जाता है और फिर अपने खिलाफ षडयंत्र करने वालों से बदला लेता है। बस यही कहानी। अमिताभ बच्चन टाइप एंग्री यंग मैन।
अब इतनी सादी फिल्में तो अब चलती नहीं सो हीरो मरा पर मरा नहीं। सुपरहीरो हो गया। मतलब गायब हो सकता है, एक केमिकल पीने से। सूरज की रोशनी में दिखेगा या सिर्फ नीली लाइट में। अब जब हीरो गायब हो सकता है तो थोड़ा रोमांच बढ़ा। फिल्म थ्रीडी है, तो और थोड़ा रोमांच बढ़ गया। जिन लोगों के दिमाग में लाइफ ऑफ पाइ फिल्म की छवि है तो कृपया उस छवि को बाहर निकाल कर जाएं। इस फिल्म का स्तर उतना ऊंचा नहीं है।
पर हां विक्रम भट्ट भूत-प्रेतों और आत्माओं के जाल से निकल कर इंसान पर काम कर रहे हैं यह तो अच्छी बात है। उनकी यह कोशिश अच्छी है और बच्चों को तो यह फिल्म जरूर अच्छी लगेगी। वैसे भी आजकल बच्चों के लिए तो फिल्में बनती नहीं हैं, सो जो भी बचकानी फिल्में बने वही बच्चों के लिए हो सकती हैं। फिल्म देखते वक्त अगर खूब सारे सवाल दिमाग में आएं तो उन्हें छोड़ दीजिए। फिल्में तो मनोरंजन के लिए होती हैं, सवाल हल करने के लिए नहीं। है न।
निर्देशन अच्छा है। कई जगह निर्देशक की वजह से ही फिल्म अच्छा प्रभाव छोड़ती है। संगीत के मसले पर बात न ही हो तो अच्छा है। इमरान हाशमी टाइप तू है रब जैसे गाने तो खूब हैं पर याद एक भी नहीं रहता। वैसे गाने फिल्म की रिदम को तोड़ते ही हैं। बीच में अच्छी खासी चलती फिल्म में नच बलिए टाइप एक गाना आ जाता है, तो बड़ी कोफ्त होती है।
इमरान अभिनय सीख गए हैं। अब उनके चेहरे पर दो-तीन प्रकार के भाव आ जाते हैं और ज्यादातर सपाट बना रहने वाला उनका चेहरा उतना भावहीन नहीं लगता। अमायरा को तो खूब मेहनत करनी होगी। वैसे उन्हें अभिनय सीखने से पहले कुछ खा-पी कर सेहत भी बनाना चाहिए। अरुणोदय सिंह अपने रोल में जमे हैं। नए ढंग के खलनायक में उनकी जगह तेजी से बनेगी।
सबसे अच्छी बात ‘सीरियल किसर’ के होने के बावजूद इसमें सिर्फ दो ही किस हैं! उदास न हों अमायरा ने लाल बिकनी भी पहनी है। अब अंग्रेजी एक्शन और हिंदी में एक्शन में कुछ तो फर्क होगा न जी।