आज गायक मुकेश की पुण्यतिथि है। 27 अगस्त सन 1976 को मुकेश का निधन हो गया था। मुकेश को हिन्दी सिनेमा में अभिनेता राज कपूर की आवाज की तरह देखा जाता है। आज मुकेश की जिन्दगी से जुड़ा एक ऐसा किस्सा, जिससे उनकी सादगी और महानता का पता चलता है।
बात तब की है, जब ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया की फिल्म "बॉबी" सुपरहिट हो चुकी थी। इस फिल्म से गायक शैलेंद्र सिंह ने अपने फिल्मी गायन करियर की शुरूआत की थी। उनका गाया गीत "मैं शायर तो नहीं" सुपरहिट साबित हुआ था। इसी गाने के लिए उन्हें सम्मानित करने की योजना बनी तो ताज होटल में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में हिन्दी सिनेमा के सभी बड़े कलाकार आए हुए थे। यह गायक शैलेंद्र सिंह के जीवन का सबसे सुंदर पल था।
जब शैलेंद्र सिंह को सम्मानित किया गया तो सभी ने उनसे गीत "मैं शायर तो नहीं" सुनने की इच्छा जताई। शैलेंद्र सिंह सभी की फरमाइश पूरी करना चाहते थे मगर एक दुविधा उनके मन को अशांत कर रही है। दरअसल शैलेंद्र सिंह को साज के साथ गाने की आदत थी। मगर वह मंच पर सम्मान लेने के बाद जिस माहौल में खड़े थे, वहां साज उपलब्ध नहीं था। इस कारण उन्हें गाने में तकलीफ हो रही थी। अतिथियों में शामिल गायक मुकेश यह सब नोटिस कर रहे थे। जब उन्होंने शैलेंद्र सिंह को बेचैन देखा तो उनके पास गए। मुकेश ने शैलेंद्र सिंह से उनकी चिंता का कारण पूछा। शैलेंद्र सिंह ने अबोध बालक की तरह अपने मन की बात गायक मुकेश को कह सुनाई। गायक मुकेश मुस्कुराए और उन्होंने अपने ड्राइवर को बुलाकर कहा कि वह उनकी कार से हारमोनियम लेकर आए।
ड्राइवर ने मुकेश जी के आदेश अनुसार कार से हारमोनियम लाने का काम किया। गायक मुकेश ने शैलेन्द्र सिंह का हौसला बढ़ाते हुए कहा "बेटा, तुम गाओ, तुम्हारे लिए मैं हारमोनियम बजाता हूं।" मुकेश के इस स्वभाव और कृत्य से शैलेंद्र सिंह ने गजब का आत्मविश्वास पैदा हुआ। मुकेश उस समय हिन्दी सिनेमा के वरिष्ठ और सफल गायक थे। उनका इस तरह नए गायक के लिए एक होटल के कार्यक्रम में हारमोनियम बजाना अप्रत्याशित था। यही मुकेश की सरलता भी थी और महानता भी। मुकेश ने शैलेन्द्र के लिए हारमोनियम बजाया और शैलेंद्र ने पूरे मन से महफिल में गीत सुनाया। शैलेंद्र को सभी की तालियां मिलीं। शैलेंद्र मन ही मन जानते थे कि इस सम्मान और तालियों के असली हकदार मुकेश थे।